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कहते हैं कि असली संघर्ष वही होता है जो अपनी सीमाओं को पार कर दूसरों के लिए रास्ते बनाता है। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है लक्षद्वीप के रहने वाले प्रतिष्ठित हेलेन केलर अवार्ड से सम्मानित उमर फारूक ने, जो खुद एक दुर्लभ अस्थि रोग लिओनटियासिस ओसिया से ग्रसित हैं। बावजूद इसके वे न केवल अपने लिए, बल्कि देशभर के दिव्यांगों की भलाई के लिए काम कर रहे हैं।
उमर फारूक अपने दिव्यांग साथी एल. शुकुर, जो पोलियो से पीड़ित हैं, और मनोवैज्ञानिक शाहनवाज के साथ भारत यात्रा पर निकले हैं। इस यात्रा का उद्देश्य है देशभर में दिव्यांगजनों की समस्याओं को नजदीक से समझना, विभिन्न संस्थाओं द्वारा किए जा रहे प्रयासों को देखना, और इन अनुभवों के आधार पर लक्षद्वीप में दिव्यांग बच्चों के लिए ठोस कार्ययोजना बनाना।
अपनी इस यात्रा के दौरान फारूक और उनकी टीम जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हिमाचल, चंडीगढ़ होते हुए हरियाणा के करनाल पहुंचे। यहां निफा करनाल के संयोजन में माता प्रकाश कौर श्रवण एवं वाणी स्कूल में उनका स्वागत किया गया। संस्थान की अध्यक्ष मेघा भंडारी ने फूलों के गुलदस्ते और बच्चों के हाथों से बने उपहारों से अतिथियों का स्वागत कर माहौल को भावुक कर दिया।
इस अवसर पर हरियाणा श्रवण एवं वाणी निशक्तजन कल्याण समिति की चेयरपर्सन मेघा भंडारी ने उमर फारूक के उद्देश्य को पवित्र बताते हुए हरसंभव सहयोग देने का वादा किया। साथ ही, लक्षद्वीप में श्रवण व वाणी की अक्षमता के क्षेत्र में सहयोग को लेकर भी विचार-विमर्श हुआ।
कार्यक्रम में संजीव गोयल, सहायक निदेशक, पंचकूला केंद्र और दिनेश सिंह, सहायक निदेशक, करनाल ने भी भाग लिया और अध्यापकों व बच्चों के साथ अतिथियों का हार्दिक स्वागत किया।
उमर फारूक ने बताया कि उन्होंने कल कुरुक्षेत्र के ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण किया था और आज वे तपन रिहैबिलिटेशन सोसाइटी के विकलांग केंद्र भी गए। वे मानते हैं कि दिव्यांगता रुकावट नहीं, एक नई दिशा है, और उनकी यह यात्रा इसी सोच को साकार कर रही है।

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दिव्यांगों के सशक्तिकरण के लिए भारत भ्रमण पर निकले उमर फारूक, करनाल में हुआ आत्मीय स्वागत