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साल 2025 की पहली अमावस्या (मौनी अमावस्या) पर श्रद्धालुओं ने तीर्थ पर स्नान किया। पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान कर तर्पण किया। धार्मिक मान्यताओं में मौनी अमावस्या को विशेष महत्व दिया गया है। मौनी अमावस्या जहां पितरों को खुश करने के लिए विशेष महत्व रखती है।
वहीं, पितृ दोष भी दूर किया जा सकता है। पिंड तारक तीर्थ के संबंध में किवदंती है कि महाभारत युद्ध के बाद पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पांडवों ने यहां 12 वर्ष तक सोमवती अमावस्या की प्रतीक्षा में तपस्या की। बाद में सोमवती अमावस्या के आने पर युद्ध में मारे गए परिजनों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया। तभी से यह माना जाता है कि पांडू पिंडारा स्थित पिंड तारक तीर्थ पर पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष मिल जाता है।
महाभारत काल से ही पितृ विसर्जन की अमावस्या, विशेषकर सोमवती अमावस्या पर यहां पिंडदान करने का विशेष महत्व है। जयंती देवी मंदिर के पुजारी नवीन शास्त्री ने बताया कि मौनी अमावस्या के दिन पवित्र नदियों में स्नान करने की परंपरा है।
अमावस्या के दिन पितरों को जल अवश्य अर्पित करना चाहिए। ऐसा करने से पितरों का आशीर्वाद हमारे जीवन पर बना रहता है। इस दिन पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। वहीं, मौनी अमावस्या के दिन चावल का दान करने का विशेष महत्व रखता है। मान्यता है कि ऐसा करने से सुख व समृद्धि आती है। मौनी अमावस्या के दिन तिल या तिल के लड्डू का भी दान किया जा सकता है। मौनी अमावस्या के दिन वस्त्र और कंबल के दान कर सकते हैं।
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