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अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव का शुभारंभ होते ही पवित्र ब्रह्मसरोवर तट भारतीय शिल्प व लोक कला, संस्कृति एवं अध्यात्म का संगम बन गया है। सुबह से ही जहां गीता श्लोकोच्चारण, मंत्रौच्चारण, पूजा व हवन यज्ञ के साथ पूरा वातावरण अध्यात्मिक व भक्तिमय बन गया तो वहीं शाम को फिर ब्रह्मसरोवर तट पर सांध्यकालीन महाआरती की गई। इसी बीच हरियाणा व पंजाब से लेकर पश्चिमी बंगाल, महाराष्ट्र, असम, त्रिपुरा, मेघालय, लददाख व दिल्ली सहित विभिन्न प्रदेशों की लोक संस्कृति से भी पवित्र ब्रह्मसरोवर तट महक उठा है।
हर राज्य के लोक कलाकार अपने-अपने हुनर के रंग बिखेर रहे हैं तो वहीं चारों ओर अलग-अलग राज्यों के लोक नृत्यों व वाद्य यंत्रों की गूंज है, जिसमें झूम रहे हैं।
महोत्सव में जहां 19 राज्यों से आए शिल्पकार अपनी-अपनी शिल्पकला से पर्यटकों को मोहित कर रहे है, वहीं विभिन्न प्रदेशों के लोक कलाकार पर्यटकों का खूब मनोरंजन कर रहे हैं। महोत्सव में अब देश भर के ही नहीं विदेशी पर्यटक भी पहुंचने लगे हैं। तंजानियां से लेकर उजबेकिस्तान व तजाकिस्तान से आए लोग भी गदगद हो उठे, जिसके साथ ही महोत्सव भी अंतरराष्ट्रीय स्वरूप लेता दिखाई दिया।
वीरवार को मुख्य कार्यक्रम शुरू होने के पहले ही दिन जम्मू एंड कश्मीर, उत्तराखंड, पंजाब, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, वेस्ट बंगाल, महाराष्ट्र, असम, त्रिपुरा, मिजोरम, मेघालय, दिल्ली, लद्दाख सहित कई राज्यों की अदभुत लोक संस्कृति देखने को मिली तो पर्यटक गदगद हो उठे। भले ही इससे पहले शनिवार व रविवार को ही पर्यटकों की भारी भीड़ उमड़ी रही लेकिन मुख्य कार्यक्रमों के पहले दिन भी हजारों पर्यटक पहुंचे, जिससे शिल्पकारों से लेकर दूर-दराज से आए लोक कलाकार भी गदगद दिखाई दिए।
अब 11 दिसंबर तक होंगे मुख्य कार्यक्रम
वीरवार से महोत्सव के मुख्य कार्यक्रम शुरू हुए, जिनमें सहभागी देश तंजानियां व सहभागी प्रदेश ओडिशा के अलावा हरियाणवी पवेलियन के साथ ही राज्य स्तरीय प्रदर्शनी शामिल है। यहीं नहीं उजबेकिस्तान व तजाकिस्तान की शिल्पकला व संस्कृति की झलक भी पर्यटकों को देखने को मिली। वहीं कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय गीता सेमिनार भी शुरू हुआ, जिसमें देश-दुनिया के विशेषज्ञों ने गीता पर मंथन शुरू किया। इसके साथ सांध्यकालीन सांस्कृतिक कार्यक्रम भी पुरूषोत्मपुरा बाग में बनाए मुख्य मंच पर शुरू हुए।
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VIDEO : कुरुक्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में अध्यात्क, शिल्प व संस्कृति का संगम बना ब्रह्मसरोवर