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राधेश्याम बताते हैं कि वर्ष 1974 में न्यूजीलैंड के क्राइस चर्च शहर में कामनवेल्थ प्रतियोगिताएं हो रहीं थी। वह भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए कुश्ती के लिए गए थे। यहां उन्हें 48 किलोग्राम भारवर्ग में कुश्ती लड़नी थी। क्वालीफाइंग मुकाबले से लेकर आखिर तक सभी मुकाबलाें में उन्होंने सामने वाले देश के खिलाड़ियों को मात दी मगर फाइनल मुकाबले में वजन बढ़ने से उन्हें निराशा हाथ लगी।
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उस समय वजन बढ़ने पर नियंत्रण पाने के लिए राधेश्याम ने कुछ भी नहीं खाया। खूब दौड़ लगाई और अपने बाल तक कटवा लिए, इसके बाद भी उनका वजन 100 ग्राम अधिक पाया गया। ऐसे में आखिर में वह फाइनल मुकाबला नहीं खेल सके। उन्होंने बताया कि बड़ी प्रतियोगिताओं में वजन को नियंत्रित रखना एक चुनौती बन जाता है।
ओलंपिक में हुआ था चयन पर नहीं गए
राधेश्याम बताते हैं कि उस समय वह कक्षा पांच तक ही पढ़े थे। ऐसे में कुश्ती खेल में तकनीकि के आधार पर उनका खेल काफी मजबूत था, मगर उन्हें पता नहीं था कि ओलंपिक का कितना महत्व है। वर्ष 1972 में म्यूनिख में ओलंपिक होना था, जिसके लिए महाराष्ट्र पुणे में कुश्ती का कैंप लगाया गया था। यहां पर राधेश्याम का प्रदर्शन सबसे अच्छा रहा था, मगर कुश्ती में चयन होने के बाद वो अपने घर अंबाला आ गए थे। उनका कहना है कि तब उन्हें इतनी जानकारी नहीं थी कि ओलंपिक में प्रतिभाग करने का क्या मतलब होता है। इसके बाद रेलवे की कुश्ती की टीम में राधेश्याम का चयन हो गया। रेलवे की टीम की तरफ से कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं में प्रतिभाग करते रहे।
सेवानिवृत्त होने के बाद 71 वर्षीय राधेश्याम चला रहे अखाड़ा
राधेश्याम ने बताया कि वह अब 71 वर्ष के हो गए हैं। वह अपने खेल के दाव पेच को नई पीढ़ी को सिखा रहे हैं। इसके लिए वह अंबाला छावनी में हनुमान अखाड़ा चला रहे हैं।
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