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सिरसा। बेसहारा पशुओं का जमावड़ा हर साल बार विधानसभा चुनावों में मुद्दा बनता है। इस मुद्दे के समाधान को लेकर हर बार बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं। सरकार ने भी पांच साल में बेसहारा पशुओं के स्थायी समाधान की दिशा में कार्य किया। यह कार्य आज भी नाकाफी है। शहर के हर कोने और गली में बेसहारा पशु नजर आते हैं। रात के समय हादसों का खतरा कई गुणा बढ़ जाता है और कई बार हादसे हो जाते हैं। इनमें कई लोगों की जान भी पिछले 10 सालों में जा चुकी है।
पिछले पांच साल के आंकड़ों पर गौर करते तो नगर परिषद प्रशासन और सरकार ने प्रयास जरूर किए है। बेसहारा पशुओं का टेंडर देकर गोशालाओं में दो हजार के करीब पशुओं को पहुंचाने का कार्य किया है। बावजूद इसके इतनी ही संख्या में आज सड़कों पर पशु ओर नजर आते है। इन पशुओं की न खत्म होने वाली संख्या सरदर्द बनती जा रही है। नगर परिषद के अधिकारियों की माने तो हर माह एक लाख रुपये नंदीशाला में भेजे गए पशुओं के चारे के लिए जाती है।
लोगों में जागरूकता की कमी बन रही आफत
सड़कों पर घूमने वाले बेसहारा पशुओं में दुधारू पशुओं की संख्या ज्यादा है। इन पशुओं को शहर के अलग अलग कौने में बसे पशु पालक दूध निकालने के बाद छोड़ देते है। इन लोगों के नियमित रूप से नगर परिषद ने चालान भी किए। लेकिन डेयरी प्रोजेक्ट के सिरे नहीं चढ़ने के कारण इनका स्थाई समाधान किया जाना संभव नहीं है। ऐसे में प्रशासन की ओर से समय समय पर लोगों को जागरुक जरूर किया गया है, ताकि लोग अपने दुधारू पशुओं को सड़कों पर न छोड़े।
यह जानना जरूरी
1- हर साल तीन से चार लोगों की होती है मौत।
2 – 500 पशु हाईवे व अन्य हादसों में होते है घायल।
3- 100 से ज्यादा लोग पशुओं के कारण हादसों में होते है घायल।
4 – प्रतिमाह 20 के आस पास पशुओं की विभिन्न कारणों से होती है मौत।
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Sirsa News: मुद्दा – सरकारें बदलती गई, सड़कों पर बेसहारा पशुओं की संख्या में कमी नहीं