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Shradh 2025: श्राद्ध में गाय, कौवा और कुत्ते क्यों गायब होते हैं? जानें वजह Haryana News & Updates

Shradh 2025: श्राद्ध में गाय, कौवा और कुत्ते क्यों गायब होते हैं? जानें वजह Haryana News & Updates

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सनातन धर्म में श्राद्ध के समय गाय, कौवे और कुत्ते को भोजन अर्पित करने की परंपरा है, जिससे पितर तृप्त होते हैं और आशीर्वाद देते हैं. गाय को पवित्र, कौवे को यमराज का संदेशवाहक और कुत्ते को काल भैरव की सवारी माना गया है. लेकिन, शहरीकरण, प्रदूषण और कीटनाशकों के कारण कौवों की घटती संख्या अब चिंता का विषय बन गई है. आइए जानते है श्राद्ध में इनके गायब होने की बड़ी वजह….

सनातन धर्म में श्राद्ध का विशेष महत्व है. इस दौरान पितरों की तृप्ति के लिए भोजन बनाकर गाय, कुत्ता और कौवे को अर्पित किया जाता है. माना जाता है कि इन जीवों को भोजन देने से पूर्वज प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं.

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महंत स्वामी कामेश्वरानंद वेदांताचार्य बताते हैं कि पितृ पक्ष में तीन जीवों गाय, कुत्ता और कौआ को खास महत्व दिया गया है. इनके माध्यम से भोजन पितरों तक पहुंचता है और उनकी आत्मा को शांति मिलती है. यह परंपरा शास्त्रों में वर्णित है.

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हिंदू धर्म में गाय को सबसे पवित्र माना जाता है. पितृ पक्ष में गाय को गुड़ या हरा चारा खिलाने से सभी पितर तृप्त होते है. शास्त्रों में गाय को 33 करोड़ देवी-देवताओं का निवास माना गया है, इसलिए इसे पूजनीय माना गया है.

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गरुड़ पुराण में कौवे को यमराज का संदेशवाहक बताया गया है. श्राद्ध के समय कौवे को भोजन अर्पित करना आवश्यक माना गया है. मान्यता है कि यदि कौआ भोजन ग्रहण कर ले, तो पितरों की आत्मा तृप्त होकर आशीर्वाद देती है. कौवे पितृ के रूप में आते हैं.

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कुत्ते को पितृ पक्ष में भोजन देना शुभ माना जाता है. कुत्ता यमराज का दूत और काल भैरव की सवारी है. इसे अन्न खिलाने से पितरों का मार्ग सुरक्षित होता है और अकाल मृत्यु का दोष भी दूर हो जाता है.

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आज शहरों में कौवे लगभग गायब हो चुके हैं. पहले श्राद्ध पक्ष में वे हर घर की छत पर दिखाई देते थे, लेकिन अब शहरीकरण और प्रदूषण के कारण उनकी संख्या घटती जा रही है. यह स्थिति गंभीर चिंता का विषय बन गई है.

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विशेषज्ञों के अनुसार कीटनाशकों का प्रयोग, मोबाइल टावर की किरणें और घटती हरियाली कौवों के गायब होने के बड़े कारण हैं. प्राकृतिक आवास नष्ट होने से उनकी प्रजनन क्षमता भी प्रभावित हो रही है. इसका असर पर्यावरण और कृषि दोनों पर पड़ रहा है.

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कौवे खेतों के छोटे कीड़े-मकोड़े खाकर फसल की रक्षा करते हैं. वे और गिद्ध मृत पशुओं को खाकर वातावरण को स्वच्छ रखते हैं. उनकी संख्या घटने से न केवल फसलें प्रभावित होती हैं, बल्कि बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है.

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