Rohtak News: खून में वायरस का स्तर शून्य तक पहुंचाने में 95 प्रतिशत सफल रहा पीजीआई


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प्रदेश के सबसे बड़े चिकित्सा केंद्र पीजीआईएमएस के नाम एक और उपलब्धि दर्ज हो गई है। यह उपलब्धि एचआईवी या एड्स रोगियों में वायरल लोड का 95 प्रतिशत तक लक्ष्य प्राप्त करने की है। इसे यूं भी समझ सकते हैं कि खून में वायरस का स्तर शून्य तक पहुंचाने में संस्थान के चिकित्सक 95 प्रतिशत सफल रहे हैं। पीजीआई के एआरटी सेंटर में आने वाले मरीजों की जांच में यह खुलासा हुआ है। एड्स दिवस को लेकर अमर उजाला से बातचीत में एआरटी सेंटर के मेडिकल अधिकार डॉ. हितेष कौशिक ने संस्थान की इस उपलब्धि से परिचित कराया।
उनका कहना है कि एड्स लाइलाज बीमारी है। इससे पीड़ित का जीवन पूरी तरह प्रभावित होता है। ऐसा मरीज सही समय पर सही इलाज लेकर काफी हद तक सामान्य जीवन जी सकता है। बीमारी के बढ़ने से पहले वह खुद पर ध्यान दे तो वायरस को ज्यादा फैलने से पहले ही उसे नियंत्रित करना संभव है। इसके लिए मरीज का समय पर जांच कराना व दवा लेना जरूरी है। पीजीआई के एआरटी सेंटर की कार्यप्रणाली के चलते यहां आने वाले मरीजों में वायरल लोड का 95 प्रतिशत लक्ष्य प्राप्त किया गया है। यह बड़ी उपलब्धि है।
एचआईवी की सेल्फ टेस्टिंग बढ़ी, मिल रहे संक्रमित
एचआईवी (वायरस) व एड्स (सिंड्रोम) को लेकर जागरूकता असर दिखाने लगी है। लोग इस बीमारी की पहचान के लिए खुद आगे आने लगे हैं। इसके तहत सेल्फ टेस्टिंग बढ़ रही है। इसमें एचआईवी संक्रमित केस सामने आ रहे हैं। इनका समय रहते इलाज भी किया जा रहा है। पहले लोग गंभीर स्थिति में दूसरे रोगों से पीड़ित होकर ही अस्पताल पहुंचे थे। ऐसी स्थिति में चिकित्सक भी उनकी मदद करने में अक्षम होते थे।
मरीजों को दिया जा रहा 250 रुपये प्रोत्साहन
एड्स रोगियों को बीमारी से संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। दवा के जरिये मरीज को बेहतर जीवन जीने के लिए भी तैयार किया जा रहा है। इसके लिए सरकार प्रत्येक मरीज को दवा खाने के लिए प्रति माह 2250 रुपये प्रोत्साहन राशि भी दे रही है। सोशल बेनीफिट स्कीम के तहत यह राशि सीधे उनके खाते में भेजी जा रही है। पूरा परिवार संक्रमित हो तो राशि भी परिवार के सदस्यों के हिसाब से बढ़ा कर दी जाती है।
वर्ष 2021 के बाद की दवाओं से मिल रहे बेहतर परिणाम
एचआईवी या एड्स रोग के शिकार को पहले से ज्यादा आराम मिलने लगा है। इसकी वजह वर्ष 2021 के बाद आई नई दवाइयां बताई जा रही हैं। दवाओं में बदलाव से मरीजों के स्वास्थ्य में भी बेहतर सुधार दर्ज किया गया है। यह दावा पीजीआई के एआरटी सेंटर के आंकड़ों में किया गया है।
गर्भवती मां से बच्चे भी सुरक्षित
एचआईवी या एड्स रोग से नई पीढ़ी काफी हद तक सुरक्षित है। पीजीआई के एआरटी सेंटर का दावा है कि संक्रमित मां से उसके शिशु में वायरस या संक्रमण की संभावना न के बराबर पाई गई है। मां से उसके बच्चे में संक्रमण का खतरा एक प्रतिशत से भी कम पाया गया है। यही नहीं मां के स्तनपान से भी बच्चे में 45 प्रतिशत तक संक्रमण पहुंचने का खतरा रहता है। यह भी दवाओं के जरिये एक प्रतिशत से कम आंका गया है। या यूं कहें कि बच्चों को संक्रमित मां से सुरक्षित रखना काफी हद तक संभव हो गया है।
पीजीआई में एड्स रोगियों का ब्योरा
वर्ष कुल संख्या महिला पुरुष ट्रांसजेंड
2021 1053 355 678 04
2022 370 90 217 00
एचआईवी या एड्स के मरीजों को सेंटर में बेहतर इलाज दिया जा रहा है। यहां सभी तरह की जांच व दवा की सुविधा मुहैया कराई जा रही है। पहले से बेहतर दवाएं आने से मरीजों को ज्यादा लाभ हो रहा है। नई दवाओं के बेहतर परिणाम मिल रहे हैं। वायरल लोड का लक्ष्य भी 95 प्रतिशत प्राप्त करने में सफलता मिली है। गर्भवती महिलाओं से उनके बच्चों में संक्रमण का खतरा एक प्रतिशत से भी कम पाया गया है। सेल्फ टेस्टिंग से समय रहते बीमारी की पहचान व इलाज संभव हुआ है। -डॉ. हितेष कौशिक, मेडिकल ऑफिसर, एआरटी सेंटर, पीजीआई।

प्रदेश के सबसे बड़े चिकित्सा केंद्र पीजीआईएमएस के नाम एक और उपलब्धि दर्ज हो गई है। यह उपलब्धि एचआईवी या एड्स रोगियों में वायरल लोड का 95 प्रतिशत तक लक्ष्य प्राप्त करने की है। इसे यूं भी समझ सकते हैं कि खून में वायरस का स्तर शून्य तक पहुंचाने में संस्थान के चिकित्सक 95 प्रतिशत सफल रहे हैं। पीजीआई के एआरटी सेंटर में आने वाले मरीजों की जांच में यह खुलासा हुआ है। एड्स दिवस को लेकर अमर उजाला से बातचीत में एआरटी सेंटर के मेडिकल अधिकार डॉ. हितेष कौशिक ने संस्थान की इस उपलब्धि से परिचित कराया।

उनका कहना है कि एड्स लाइलाज बीमारी है। इससे पीड़ित का जीवन पूरी तरह प्रभावित होता है। ऐसा मरीज सही समय पर सही इलाज लेकर काफी हद तक सामान्य जीवन जी सकता है। बीमारी के बढ़ने से पहले वह खुद पर ध्यान दे तो वायरस को ज्यादा फैलने से पहले ही उसे नियंत्रित करना संभव है। इसके लिए मरीज का समय पर जांच कराना व दवा लेना जरूरी है। पीजीआई के एआरटी सेंटर की कार्यप्रणाली के चलते यहां आने वाले मरीजों में वायरल लोड का 95 प्रतिशत लक्ष्य प्राप्त किया गया है। यह बड़ी उपलब्धि है।

एचआईवी की सेल्फ टेस्टिंग बढ़ी, मिल रहे संक्रमित

एचआईवी (वायरस) व एड्स (सिंड्रोम) को लेकर जागरूकता असर दिखाने लगी है। लोग इस बीमारी की पहचान के लिए खुद आगे आने लगे हैं। इसके तहत सेल्फ टेस्टिंग बढ़ रही है। इसमें एचआईवी संक्रमित केस सामने आ रहे हैं। इनका समय रहते इलाज भी किया जा रहा है। पहले लोग गंभीर स्थिति में दूसरे रोगों से पीड़ित होकर ही अस्पताल पहुंचे थे। ऐसी स्थिति में चिकित्सक भी उनकी मदद करने में अक्षम होते थे।

मरीजों को दिया जा रहा 250 रुपये प्रोत्साहन

एड्स रोगियों को बीमारी से संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। दवा के जरिये मरीज को बेहतर जीवन जीने के लिए भी तैयार किया जा रहा है। इसके लिए सरकार प्रत्येक मरीज को दवा खाने के लिए प्रति माह 2250 रुपये प्रोत्साहन राशि भी दे रही है। सोशल बेनीफिट स्कीम के तहत यह राशि सीधे उनके खाते में भेजी जा रही है। पूरा परिवार संक्रमित हो तो राशि भी परिवार के सदस्यों के हिसाब से बढ़ा कर दी जाती है।

वर्ष 2021 के बाद की दवाओं से मिल रहे बेहतर परिणाम

एचआईवी या एड्स रोग के शिकार को पहले से ज्यादा आराम मिलने लगा है। इसकी वजह वर्ष 2021 के बाद आई नई दवाइयां बताई जा रही हैं। दवाओं में बदलाव से मरीजों के स्वास्थ्य में भी बेहतर सुधार दर्ज किया गया है। यह दावा पीजीआई के एआरटी सेंटर के आंकड़ों में किया गया है।

गर्भवती मां से बच्चे भी सुरक्षित

एचआईवी या एड्स रोग से नई पीढ़ी काफी हद तक सुरक्षित है। पीजीआई के एआरटी सेंटर का दावा है कि संक्रमित मां से उसके शिशु में वायरस या संक्रमण की संभावना न के बराबर पाई गई है। मां से उसके बच्चे में संक्रमण का खतरा एक प्रतिशत से भी कम पाया गया है। यही नहीं मां के स्तनपान से भी बच्चे में 45 प्रतिशत तक संक्रमण पहुंचने का खतरा रहता है। यह भी दवाओं के जरिये एक प्रतिशत से कम आंका गया है। या यूं कहें कि बच्चों को संक्रमित मां से सुरक्षित रखना काफी हद तक संभव हो गया है।

पीजीआई में एड्स रोगियों का ब्योरा

वर्ष कुल संख्या महिला पुरुष ट्रांसजेंड

2021 1053 355 678 04

2022 370 90 217 00

एचआईवी या एड्स के मरीजों को सेंटर में बेहतर इलाज दिया जा रहा है। यहां सभी तरह की जांच व दवा की सुविधा मुहैया कराई जा रही है। पहले से बेहतर दवाएं आने से मरीजों को ज्यादा लाभ हो रहा है। नई दवाओं के बेहतर परिणाम मिल रहे हैं। वायरल लोड का लक्ष्य भी 95 प्रतिशत प्राप्त करने में सफलता मिली है। गर्भवती महिलाओं से उनके बच्चों में संक्रमण का खतरा एक प्रतिशत से भी कम पाया गया है। सेल्फ टेस्टिंग से समय रहते बीमारी की पहचान व इलाज संभव हुआ है। -डॉ. हितेष कौशिक, मेडिकल ऑफिसर, एआरटी सेंटर, पीजीआई।

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