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Rohtak:छोटे गांव से निकल मुक्केबाजी टीम की पहली महिला हेड कोच बनीं अमनप्रीत, मां से प्रेरणा लेकर पार की चुनौती Latest Haryana News

Rohtak:छोटे गांव से निकल मुक्केबाजी टीम की पहली महिला हेड कोच बनीं अमनप्रीत, मां से प्रेरणा लेकर पार की चुनौती  Latest Haryana News

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किसी खिलाड़ी की जीत में सिर्फ खिलाड़ियों का ही नहीं, बल्कि उनके कोच का भी संघर्ष रहता है। एक कोच का असली काम न केवल तकनीकी कौशल सिखाना होता है, बल्कि वह खिलाड़ियों के भीतर आत्मविश्वास, समर्पण और संघर्ष की भावना भी विकसित करता है। ऐसा ही काम भारतीय मुक्केबाजी में जूनियर और यूथ महिला मुक्केबाजी टीम की हेड कोच अमनप्रीत ने किया है। महिला दिवस के उपलक्ष्य में अमनप्रीत ने अपने जीवन के उन पहलुओं को अमर उजाला के साथ साझा किया जो हर महिला के लिए प्रेरणादायक है।

हिमाचल प्रदेश के छोटे से गांव सिहारणी (धर्मपुर) से निकलकर अमनप्रीत भारतीय खेल प्राधिकरण में 2017 में जूनियर मुक्केबाजी टीम की पहली महिला हेड कोच बनीं। उनका यह सफर काफी चुनौतीपूर्ण और प्रेरणादायक रहा है। अमनप्रीत ने बताया कि उनके जीवन में खेल की शुरुआत स्कूल के दौरान ही हो गई थी। उनके पिता श्रवण सिंह एक अध्यापक होने के साथ-साथ कबड्डी के नेशनल लेवल के खिलाड़ी थी। वह उन्हें भी कबड्डी खिलाड़ी या एथलीट बनाना चाहते थे, लेकिन 13 साल की उम्र में सिर से पिता का साया उठ गया। ऐसे में जब वह 9वीं कक्षा में थी तो स्कूल पीटीआई हेमचंद ने उनकी लंबाई को देखते हुए उन्हें बास्केटबॉल टीम में रखा। उन्होंने इंटर यूनिवसिर्टी तक बास्केटबॉल खेला और कॉलेज के समय में रूममेट्स को देखकर बॉक्सिंग खेलने के लिए वह प्रेरित हुईं।

उस समय महिलाओं के लिए बॉक्सिंग नई-नई आई थी और उन्होंने देखा कि उनकी रूम मेट्स जो पहले दूसरे खेल में थी बॉक्सिंग खेल कर आई हैं। अगले ही दिन उन्होंने भी मुक्केबाजी को चुन लिया। बतौर खिलाड़ी वह जितना करना चाहती थीं, वो नहीं कर पाई लेकिन उन्होंने मात्र 23 साल की उम्र में बॉक्सिंग के गुर सिखकर अन्य खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देने की शुरुआत कर दी। इसके बाद उन्होंने सफर जारी रखा और 21 साल के कॅरिअर में मैरी कॉम से लेकर निखत जरीन तक 400 से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय पदक विजेता जूनियर व एलिट महिला मुक्केबाजों के साथ काम किया।




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Amanpreet came from a small village of Rohtak and became the first female head coach of the boxing team

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अमनप्रीत
– फोटो : संवाद


पिता का सपना, बेटी ने किया पूरा

अमनप्रीत कौर के पिता खुद कबड्डी के नेशनल खिलाड़ी थे। उनका सपना था कि उनकी बेटी एक एथलीट बने या फिर कबड्डी खिलाड़ी बने। हालांकि, किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। जब अमनप्रीत 9वीं कक्षा में थीं, तब उनके पिता का निधन हो गया। इस दुखद घटना के बावजूद, अमनप्रीत ने हार नहीं मानी और खेलों में अपनी पहचान बनाने की ठानी।  

बास्केटबॉल से बॉक्सिंग तक का सफर

अमनप्रीत की खेल यात्रा की शुरुआत बास्केटबॉल से हुई थी। कॉलेज के दिनों में उन्होंने बास्केटबॉल खेला और इंटर यूनिवर्सिटी तक अपनी जगह बनाई। इसके बाद, उनके रूममेट्स विधुसी और कमलेश ने बॉक्सिंग शुरू की और उनकी प्रेरणा से ही अमनप्रीत ने बॉक्सिंग को अपनाया। दोनों रूममेट्स ने अन्य खेल छोड़कर बॉक्सिंग को चुना था। इसी से प्रभावित होकर अमनप्रीत ने यह ठाना कि वह भी बॉक्सिंग में खुद को साबित कर सकती हैं। अमनप्रीत ने चंडीगढ़ के स्केटिंग रिंग में जाकर कोच से संपर्क किया और बॉक्सिंग की शुरुआत की। यहां से उनकी यात्रा ने एक नया मोड़ लिया। 


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अमनप्रीत
– फोटो : संवाद


जीवन में आई चुनौतियां, मां ने दिया हमेशा हौसला

महिला एथलीटों के लिए खेलों की दुनिया में अक्सर अतिरिक्त चुनौतियां होती हैं, और अमनप्रीत के लिए भी यह आसान नहीं था। एक लड़की होकर बॉक्सिंग जैसे खेल में कदम रखना किसी भी महिला के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है। उन्हें समाज में कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा। सुरक्षा और यात्रा संबंधी परिवार की चिंताएं। समाज के दृष्टिकोण और महिलाओं के खेल में शामिल होने पर असहमति जैसी चुनौतियां भी सामने आईं। हालांकि, अमनप्रीत ने अपनी मां सतिंदर पाल कौर के साथ मिलकर इन सभी समस्याओं को पार किया। उनकी मां का समर्थन और प्रेरणा उनके लिए सबसे बड़ा सहारा बनीं। अमनप्रीत ने बताया कि 18 साल की उम्र में उनके रिश्तेदारों व परिवार वालों ने शादी करने की बातें कहनी शुरू कर दी तो उनकी मां ने ही उनका पक्ष लिया कि मेरी बेटी पढ़ेगी, खेलेगी, जीवन में कुछ करेगी। ट्रेनिंग के दौरान बहुत सारी बातें कुछ लोग बोलते थे, लेकिन मां खुद के खर्चों में कटौती कर उनके लिए हमेशा खड़ी रहीं। 

कोचिंग कॉरिअर की शुरुआत और टीम के साथ पाई सफलता

अमनप्रीत ने अपने कोचिंग कॅरिअर की शुरुआत महज 23 साल की उम्र में की थी। वे शुरू में असिस्टेंट महिला कोच के रूप में काम कर रही थीं।  2017 में अमनप्रीत कौर को भारतीय महिला जूनियर बॉक्सिंग टीम की हेड कोच के रूप में नियुक्त किया गया। यह भारतीय बॉक्सिंग के इतिहास में एक महत्वपूर्ण पल था क्योंकि इससे पहले किसी महिला को इस पद पर नियुक्त नहीं किया गया था। उनकी कोचिंग में जूनियर टीम ने एशिया में नंबर 1 स्थान हासिल किया और कई खिलाड़ियों ने ओलंपिक की ओर कदम बढ़ाया। इससे पहले अमनप्रीत ने छह साल तक असिसटेंट कोच के रूप में कार्य किया, क्योंकि उस समय महिला कोच के लिए कोई पद नहीं था।


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टीम
– फोटो : संवाद


खिलाड़ियों में बढ़ाया आत्मविश्वास

अमनप्रीत ने अपनी कोचिंग के दौरान महिला खिलाड़ियों के बीच आत्मविश्वास पैदा किया और उन्हें यह समझाया कि उनका सपना पूरा करने की जिम्मेदारी सिर्फ उन्हीं की है। उनका मानना है कि महिलाओं को कभी भी किसी पर निर्भर नहीं होना चाहिए, बल्कि अपनी दिशा खुद तय करनी चाहिए। ऐसे में चुनौतियां भी आती हैं, लेकिन खुद ही पार करनी हैं। उन्होंने बताया कि उन्होंने कई खिलाड़ियों का उनकी शादी के बाद भी कमबैक कराया है, लेकिन यह उनके हौसले के बाद ही संभव है। 

महिला बॉक्सिंग में उनका योगदान और भविष्य

अमनप्रीत कौर का योगदान भारतीय महिला बॉक्सिंग टीम में बहुत बड़ा रहा है। वह 400 से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय पदक विजेता खिलाड़ियों को प्रशिक्षण दे चुकी हैं। उनका मानना है कि यदि कोई महिला सपना देखती है, तो उसको पूरा करना उसी की जिम्मेदारी है। सपने को साकार करने के लिए दिल से मेहनत करनी जरूरी है। कोई भी चुनौती मेहनत को रोक नहीं सकती। सरकार की खेलों इंडिया जैसी योजनाएं भी खिलाड़ियों को बढ़ावा दे रही हैं और महिलाएं खेलों में अपनी जगह बना रही हैं।


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अमनप्रीत
– फोटो : संवाद


अमनप्रीत चौधरी ने इन मुक्केबाजों को दिया प्रशिक्षण 

अमनप्रीत चौधरी ने वैसे तो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के सैंकड़ों खिलाड़ियों को प्रशिक्षण दिया है। उनके लिए हर खिलाड़ी एक समान है। उनसे प्रशिक्षण लेने वालों में अरुंधति चौधरी, माही राघव, विश्व की सर्वश्रेष्ठ मुक्केबाज निकिता चंद, अर्जुन अवॉर्डी मैरी कॉम, एल. सरिता देवी, कविता चहल, सोनिया लाठर, निखत जरीन, स्वीटी बूरा, ओलंपियन पूजा रानी कुछ प्रमुख नाम हैं।  

मां बनने के बाद आई बड़ी चुनौती

अमनप्रीत चौधरी ने बताया कि महिलाओं को समाज में कई मुश्किलें रहती हैं। जब मैं मां बनीं तो वापसी करने में मुश्किलें आई। 2017 में फरवरी में मैं मां बनी और सितंबर में वापसी की। उससे पहले मैं एलिट वुमन टीम के साथ बतौर कोच कार्य कर रहीं थी, लेकिन वापसी के बाद कैंप में जगह नहीं मिली। इसके बाद मैंने अपने शरीर और मानसिक मजबूती पर बहुत काम किया। फिर सितंबर में जूनियर हेड कोच के रूप में मुझे जिम्मेदारी मिली। ऐसे में मैं यूक्रेन टीम के साथ गईं और इस दौरान कई शारीरीक बदलावों का सामना करना पड़ा। लेकिन मैं टूटी नहीं, इसे बखुबी पूरा किया।


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