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संवाद न्यूज एजेंसी, रेवाड़ी
Updated Tue, 27 Aug 2024 12:16 AM IST
फोटो : 06रेवाड़ी। कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते विद्यार्थी। स्रोत : महाविद्यालय
संवाद न्यूज एजेंसी
रेवाड़ी। चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि महाविद्यालय बावल में गाजर घास उन्मूलन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। प्रिंसिपल डॉ. नरेश कौशिक ने गाजर घास के नियंत्रण के तरीके बताए।
उन्होंने बताया गाजर घास यूनाइटेड स्टेट ऑफ अमेरिका से गेहूं के बीज के साथ सन 1950 में भारत में पहुंचा। 1955 में इसे पूना में देखा गया। शुरुआत में यह सड़कों के किनारे वह खाली मैदान में पाया जाता था। आजकल यह फसलों वाले इलाके में भी पाया जाता है। यह न केवल एक खरपतवार है बल्कि इससे चर्म रोग, अस्थमा जैसी बीमारियां भी फैलती हैं। यह बहुत से हानिकारक कीटों को भी शरण देता है। इसके कारण फसलों से कीटों का उपचार बहुत ही मुश्किल हो जाता है। अगर समय रहते गाजर घास का नियंत्रण नहीं किया गया तो इसकी संख्या इतनी ज्यादा हो जाएगी की हमारी जैव विविधता प्रणाली के लिए भी खतरनाक सिद्ध हो सकता है। यह बीज के द्वारा फैलता है एवं एक पौधे से 5 हजार से 25 हजार तक बीज बनते हैं। इसके बीज 10 साल तक जमीन में रहते हैं। इसके बीजों को जब भी उचित वातावरण मिलता है इनका जमना शुरू हो जाता है। जिसके कारण जब तक सभी लोग एक साथ मिलकर इसका निवारण नहीं करेंगे यह काबू में नहीं आएना। इसलिए इसके रोकथाम के लिए बीज बनने से पहले इसको उखाड़ देना चाहिए।
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Rewari News: गाजर घास नियंत्रण के तरीके बताए