Rajasthan Students Union Election: पता चल गया अशोक गहलोत की यूथ ब्रिगेड कितने पानी में


जयपुर: राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत के राजनीतिक सफर की शुरुआत छात्र राजनीति से हुई है। वह कांग्रेस के छात्र संगठन NSUI के पहले स्टेट प्रेजिडेंट भी रह चुके हैं। लिहाजा माना जाता है कि गहलोत छात्र राजनीति को बहुत अच्छी तरह समझते हैं, बावजूद इसके शनिवार को राजस्थान छात्रसंघ चुनाव का जो परिणाम आया है, उसने गहलोत की युवा टीम की स्थिति जगजाहिर कर दी है। राजस्थान छात्रसंघ चुनाव में NSUI को करारी शिकस्त मिली है। किसी भी यूनिवर्सिटी में NSUI के प्रतिनिधि का अध्यक्ष नहीं बन पाया है और अब अशोक गहलोत की नेतृत्व पर भी सवाल उठा रहा है।


सियासी संकट के दौरान किए गए बदलाव असर तो नहीं
राजनीति के जानकार एनएसयूआई की करारी हार को अशोक गहलोत बनाम सचिन पायलट की राजनीति से भी जोड़कर देख रहे हैं। दरअसल साल 2020 में सचिन पायलट की ओर से बगावत किए जाने के बाद सीएम गहलोत की सिफारिश पर पार्टी ने सरकार से लेकर संगठनों तक में बदलाव कर दिए थे। इसके तहत जहां सचिन पायलट को प्रदेश कांग्रेस संगठन के अध्यक्ष पद से हटाया गया था। उनकी जगह पर गोविंद सिंह डोटासरा को प्रदेशाध्यक्ष चुना गया। वहीं यूथ कांग्रेस और NSUI तक में बदलाव कर पायलट समर्थक मुकेश भाकर की जगह गणेश घोघरा और अभिमन्यू पूनिया की जगह गहलोत के गृह जिले से आने वाले अभिषेक चौधरी को संगठनों की कमान सौंपी गई थी।

राजनीति के जानकारों का कहना है कि इस तरह हुए अचानक बदलाव का मैसेज संगठन में काम करने वाले कार्यकर्ताओं के बीच सही नहीं गया। इस दौरान संगठनों में गुटबाजी हावी होने और निचले स्तर तक दो फाड़ होने की खबर मिली, जिसका असर अब छात्रसंघ चुनाव में सामने आ गया है। लिहाजा अब कहा जा रहा है कि पार्टी संगठन को एकजुट कर पार्टी के दिग्गज नेताओं को मजबूत छवि पेश करनी होगी।

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राजस्थान यूनिवर्सिटी में पायलट समर्थक मार गया बाजी
राजनीति के जानकार छात्रसंघ चुनाव के ट्रेंड को सचिन पायलट समर्थक की जीत के जरिए भी देख रहे हैं। प्रदेश के सबसे बड़ी राजस्थान यूनिवर्सिटी में सचिन पायलट को अपना आदर्श मानने वाले निर्मल चौधरी ने अध्यक्ष पद पर जीत हासिल की है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार निर्मल को पूर्व यूथ कांग्रेस अध्यक्ष मुकेश भाकर और युवा कांग्रेस विधायक रामनिवास गावड़िया का समर्थन मिला हुआ था, जिससे उनकी सुनिश्चित हो पाई। मुकेश भाकर और रामनिवास गावड़िया भी राजस्थान यूनिवर्सिटी से निकलकर ही विधायक तक की कुर्सी तक पहुंचे हैं। वर्तमान में पायलट गुट के बड़े समर्थक के तौर पर जाने जाते हैं।

रितु बराला से आगे रही निहारिका
राजस्थान यूनिवर्सिटी में जो समीकरण बने, उसे राजनीति के जानकार बड़ी बारिकी के साथ देख रहे हैं। यहां बड़ी बात यह रही है कि साल 2018 में महारानी की प्रेसिडेंट रही एनएसयूआई कैंडिडेट रितु बराला रनरअप के तौर पर भी जगह नहीं बना पाई। यहां जीत का परचम निर्दलीय निर्मल चौधरी ने लहराया। वहीं दूसरे स्थान पर मंत्री मुरारी लाल मीणा की बेटी निहारिका जोरवाल रही। मंत्री मुरारी लाल मीणा भी पायलट गुट के बड़े नेता के तौर पर अपनी पहचान रखते हैं।

चुनावी परिणाम माने जा रहा है विधानसभा चुनाव का ब्लूप्रिंट
पूरे राजस्थान में कांग्रेस के छात्रसंगठन के करारी हार के बाद जहां पार्टी में नेताओं में भी खलबली मची हुई है। वहीं इस परिणाम को राजनीति के पंडित साल 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव से भी जोड़कर देख रहे हैं। राजनीति के जानकारों का कहना है कि सीएम अशोक गहलोत की योजनाओं और उनके दावे और वादे युवा वोटर्स पर कोई प्रभाव नहीं डाल सके हैं। यहां तक कि सीएम की ओर से अगला बजट युवाओं पर फोकस करने की घोषणा भी काम नहीं आई है। इधर करारी हार के बाद विपक्ष ने प्रदेश में एक बार फिर एंटी इंकमबेंसी होने का दावा कर दिया है। केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने इस हार को परिवाद से जोड़ते हुए कटाक्ष किया है।

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हालांकि राजनीति के जानकारों का यह भी कहना है कि विधानसभा चुनावों के समीकरण, मुद्दे और वोटिंग पैटर्न इन चुनावों से पूरी तरह अलग होते हैं, लेकिन कांग्रेस के छात्र संगठन के प्रदेशभर में सुपड़ा साफ हो जाना की इस स्थिति ने प्रदेश कांग्रेस के सामने बड़ी तस्वीर खींच दी है, जिस पर पार्टी नेताओं को मंथन करना होगा। जानकारों का कहना है कि अक्सर देखने में आता है कि यूथ वोटर्स का जिधर रुझान होता है, सत्ता उसी तरफ मूड जाती है, लिहाजा कांग्रेस को विधानसभा चुनाव से पहले इस समीकरण को समझते हुए नई रणनीति तैयार करनी होगी।

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