Rajasthan: राजस्थान में बदलेगा 30 सालों का सियासी ट्रेंड, गहलोत को टक्कर देना भाजपा के लिए बन रही है कड़ी चुनौती


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राजस्थान में भले ही चुनाव में अभी वक्त हो, लेकिन भाजपा के लिए सीएम अशोक गहलोत के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर नहीं बना पाना बड़ी चुनौती बन रहा है। 2018 में गहलोत सरकार के सत्ता पर काबिज होने के बाद जिला परिषद के चुनावों को छोड़कर सभी चुनावों में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा है। विधानसभा उपचुनाव हो या फिर राज्यसभा चुनाव हर समय सीएम गहलोत का जादू देखने को मिला है। केंद्र से लेकर राज्य तक के भाजपा के नेताओं के माथे पर चिंता सता रही है कि कांग्रेस सरकार को साढ़े तीन साल से ज्यादा का वक्त गुजर चुका है कि लेकिन सत्ता विरोधी लहर नहीं बन पा रही है। राजस्थान में पिछले 30 साल से सियासी ट्रेड रहा है कि 5-5 साल भाजपा और कांग्रेस राज करती रही है।

ऐसे बढ़ रहा है कांग्रेस का ग्राफ

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कांग्रेस सरकार के तीन साल पूरा करने पर कहा था कि सरकार के खिलाफ किसी तरह की एंटी इंकम्बेंसी नहीं है। राजस्थान में हमारे कामों से अच्छा माहौल बना है। तीन साल बाद भी सत्ता विरोधी लहर पैदा नहीं हुई है। मुझे यकीन है कि यही माहौल रहा तो अगली बार सरकार वापस कांग्रेस की ही बनेगी। इसी रूप में हम रात-दिन काम करते रहेंगे। कोरोना में भी हमने एक दिन भी आराम नहीं किया।
 

कांग्रेस सरकार आने के बाद गहलोत का जादू सभी चुनावों देखने को मिला। पंचायती राज चुनावों में भाजपा ने जोड़-तोड़ करके 18 जिला प्रमुख बनाए। जबकि कांग्रेस के 15 जिला प्रमुख बने। इसके बाद नगर निगम के चुनावों में कांग्रेस के चार और भाजपा के दो ही महापौर चुने गए। जबकि आठ विधानसभा उपचुनावों में छह पर कांग्रेस ने बाजी मारी तो भाजपा को केवल दो ही सीट मिली। 196 नगर निकायों के चुनावों में 125 पर कांग्रेस और 64 पर भाजपा ने जीत दर्ज हुई की। 353 पंचायत समिति के प्रधानों में कांग्रेस के 182 और भाजपा के 139 प्रधान बने। कुल 7500 पार्षदों में से कांग्रेस के 3036 और भाजपा के 2676 पार्षद हैं। राज्यसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने चार में से तीन सीट जीतकर भाजपा को पटखनी दी।

भाजपा में हावी है गुटबाजी

राजस्थान भाजपा से जुड़े सूत्रों ने अमर उजाला को बताया कि राजस्थान की भाजपा इकाई में गुटबाजी हावी है। पार्टी की आंतरिक गुटबाजी पर लगाम कसना केंद्रीय नेतृत्व के लिए बड़ी चुनौती है। चुनाव से पहले ही मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा इसे लेकर खींचतान जारी है। हाल ही में कोटा में हुई भाजपा की कार्यसमिति की बैठक में भी गुटबाजी देखने को मिली। पूर्व सीएम वसुंधरा राजे भाषण दिए बगैर ही बैठक से चली गईं। पूर्व सीएम का गुट लगातार उन्हें सीएम चेहरा घोषित करने की मांग कर रहा है। लेकिन राजस्थान के प्रदेश भाजपा प्रभारी अरूण सिंह पहले ही साफ कर चुके हैं कि आगामी विधानसभा चुनाव पीएम मोदी के चेहरे पर ही लड़ा जाएगा। प्रदेश में लगातार भाजपा के कमजोर होने से पार्टी प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया के नेतृत्व पर ही सवाल खड़े हो रहे हैं। वसुंधरा गुट भी अब खुलकर प्रदेश अध्यक्ष को हटाने की मांग कर रहा है।

पूर्वी राजस्थान में भाजपा का नहीं एक भी विधायक

राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग करने पर भाजपा से बाहर की गई धौलपुर विधायक शोभारानी कुशवाह के बाद अब पूर्वी राजस्थान में भाजपा के पास अपना कोई विधायक नहीं रह गया है। पूर्वी राजस्थान में भाजपा का एक भी विधायक नहीं है। भरतपुर, करौली और सवाई माधोपुर में भाजपा 2018 के विधानसभा चुनाव में एक भी विधायक नहीं जीता पाई थी। धौलपुर से अकेली शोभारानी चुनाव जीतीं थीं। क्रॉस वोटिंग के चलते उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है। जबकि पूर्वी राजस्थान में गहलोत सरकार में आधा दर्जन मंत्री शामिल हैं। वहीं कई निगमों और बोर्डों में जिम्मेदारी देकर गहलोत सरकार ने इस इलाके में अपनी पकड़ कमजोर मजबूत कर रखी है।

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राजस्थान में भले ही चुनाव में अभी वक्त हो, लेकिन भाजपा के लिए सीएम अशोक गहलोत के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर नहीं बना पाना बड़ी चुनौती बन रहा है। 2018 में गहलोत सरकार के सत्ता पर काबिज होने के बाद जिला परिषद के चुनावों को छोड़कर सभी चुनावों में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा है। विधानसभा उपचुनाव हो या फिर राज्यसभा चुनाव हर समय सीएम गहलोत का जादू देखने को मिला है। केंद्र से लेकर राज्य तक के भाजपा के नेताओं के माथे पर चिंता सता रही है कि कांग्रेस सरकार को साढ़े तीन साल से ज्यादा का वक्त गुजर चुका है कि लेकिन सत्ता विरोधी लहर नहीं बन पा रही है। राजस्थान में पिछले 30 साल से सियासी ट्रेड रहा है कि 5-5 साल भाजपा और कांग्रेस राज करती रही है।

ऐसे बढ़ रहा है कांग्रेस का ग्राफ

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कांग्रेस सरकार के तीन साल पूरा करने पर कहा था कि सरकार के खिलाफ किसी तरह की एंटी इंकम्बेंसी नहीं है। राजस्थान में हमारे कामों से अच्छा माहौल बना है। तीन साल बाद भी सत्ता विरोधी लहर पैदा नहीं हुई है। मुझे यकीन है कि यही माहौल रहा तो अगली बार सरकार वापस कांग्रेस की ही बनेगी। इसी रूप में हम रात-दिन काम करते रहेंगे। कोरोना में भी हमने एक दिन भी आराम नहीं किया।

 

कांग्रेस सरकार आने के बाद गहलोत का जादू सभी चुनावों देखने को मिला। पंचायती राज चुनावों में भाजपा ने जोड़-तोड़ करके 18 जिला प्रमुख बनाए। जबकि कांग्रेस के 15 जिला प्रमुख बने। इसके बाद नगर निगम के चुनावों में कांग्रेस के चार और भाजपा के दो ही महापौर चुने गए। जबकि आठ विधानसभा उपचुनावों में छह पर कांग्रेस ने बाजी मारी तो भाजपा को केवल दो ही सीट मिली। 196 नगर निकायों के चुनावों में 125 पर कांग्रेस और 64 पर भाजपा ने जीत दर्ज हुई की। 353 पंचायत समिति के प्रधानों में कांग्रेस के 182 और भाजपा के 139 प्रधान बने। कुल 7500 पार्षदों में से कांग्रेस के 3036 और भाजपा के 2676 पार्षद हैं। राज्यसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने चार में से तीन सीट जीतकर भाजपा को पटखनी दी।

भाजपा में हावी है गुटबाजी

राजस्थान भाजपा से जुड़े सूत्रों ने अमर उजाला को बताया कि राजस्थान की भाजपा इकाई में गुटबाजी हावी है। पार्टी की आंतरिक गुटबाजी पर लगाम कसना केंद्रीय नेतृत्व के लिए बड़ी चुनौती है। चुनाव से पहले ही मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा इसे लेकर खींचतान जारी है। हाल ही में कोटा में हुई भाजपा की कार्यसमिति की बैठक में भी गुटबाजी देखने को मिली। पूर्व सीएम वसुंधरा राजे भाषण दिए बगैर ही बैठक से चली गईं। पूर्व सीएम का गुट लगातार उन्हें सीएम चेहरा घोषित करने की मांग कर रहा है। लेकिन राजस्थान के प्रदेश भाजपा प्रभारी अरूण सिंह पहले ही साफ कर चुके हैं कि आगामी विधानसभा चुनाव पीएम मोदी के चेहरे पर ही लड़ा जाएगा। प्रदेश में लगातार भाजपा के कमजोर होने से पार्टी प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया के नेतृत्व पर ही सवाल खड़े हो रहे हैं। वसुंधरा गुट भी अब खुलकर प्रदेश अध्यक्ष को हटाने की मांग कर रहा है।

पूर्वी राजस्थान में भाजपा का नहीं एक भी विधायक

राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग करने पर भाजपा से बाहर की गई धौलपुर विधायक शोभारानी कुशवाह के बाद अब पूर्वी राजस्थान में भाजपा के पास अपना कोई विधायक नहीं रह गया है। पूर्वी राजस्थान में भाजपा का एक भी विधायक नहीं है। भरतपुर, करौली और सवाई माधोपुर में भाजपा 2018 के विधानसभा चुनाव में एक भी विधायक नहीं जीता पाई थी। धौलपुर से अकेली शोभारानी चुनाव जीतीं थीं। क्रॉस वोटिंग के चलते उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है। जबकि पूर्वी राजस्थान में गहलोत सरकार में आधा दर्जन मंत्री शामिल हैं। वहीं कई निगमों और बोर्डों में जिम्मेदारी देकर गहलोत सरकार ने इस इलाके में अपनी पकड़ कमजोर मजबूत कर रखी है।

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