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महाकुंभ नगर संगम तट पर स्नान करने पहुंचे श्रद्धालु की भारी भीड़. – फोटो : संवाद
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कुंभ मेला वर्षों से अपनी भव्यता के साथ ही कुदरती घटनाओं से सबका ध्यान खींचता रहा है। ऐसा ही रोचक वाकया 1977 में हुए कुंभ में देखने को मिला था। तब मकर संक्रांति के स्नान की रात से ही 500 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला ‘गंगा द्वीप’ विलुप्त होना शुरू हो गया था। हालांकि इसे शुभ माना गया था, क्योंकि इससे गंगा स्नान के लिए ज्यादा स्थान मिल गया था।
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तब आगरा से प्रकाशित अमर उजाला ने 16 जनवरी 1977 के अंक में इस अद्भुत कुदरती घटना का विवरण प्रकाशित किया था। इसके मुताबिक यमुना नदी से मिलने के पहले ही गंगा की धारा दो हिस्सों में विभक्त होकर बहने लगी थी। इन दो धाराओं के बीच में करीब 500 हेक्टेयर क्षेत्रफल में बालू का एक द्वीप जैसा बन गया था। श्रद्धालुओं ने इसे ‘गंगा द्वीप’ का नाम दिया था।
पांच जनवरी से ही कुंभ में आने वाले कई परिवारों और साधुओं ने इसी द्वीप पर रुकने का स्थान बना लिया था और इसके दोनों तरफ बह रही गंगा की धाराओं में स्नान-ध्यान कर रहे थे। प्रशासन को उम्मीद थी कि कुंभ बीतने के बाद और ठंड कम होने पर गंगा में पानी बढ़ेगा तब धीरे-धीरे यह द्वीप सिमटने लगेगा।
लेकिन, आश्चर्यजनक रूप से मकर संक्रांति के प्रथम कुंभ स्नान के बाद 14 जनवरी की रात से ही प्राकृतिक रूप से बना ‘गंगा द्वीप’ सिकुड़ने लगा और श्रद्धालुओं ने देखा कि करीब 10 मीटर चौड़ाई में गंगा का प्रवाह बढ़ गया।
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Mahakumbh: …जब कुंभ शुरू होते ही विलुप्त होने लगा ‘गंगा द्वीप’, इस रात में एक होने लगी थीं गंगा की दो धाराएं