[ad_1]
कुरुक्षेत्र। सेक्टर-13 स्थित श्री महेश्वर हनुमान मंदिर में श्री गो गीता गायत्री सत्संग सेवा समिति के तत्वावधान में आयोजित सात दिवसीय श्री शिव महापुराण का समापन हवन-यज्ञ के साथ हुआ। संस्थापक अध्यक्ष कथा वाचक अनिल शास्त्री ने रुद्राक्ष उत्पत्ति की कथा सुनाई। भगवान शिव ने रुद्राक्ष उत्पत्ति की कथा पार्वती को कही है। एक समय भगवान शिवजी ने एक हजार वर्ष तक समाधि लगाई। समाधि में से जाग्रत होने पर जब उनका मन बाहरी जगत में आया, तब जगत के कल्याण की कामना वाले महादेव ने अपनी आंखें बंद कीं। तब उनके नेत्र में से जल के बिंदु पृथ्वी पर गिरे। उन्हीं से रुद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हुए और वे शिव की इच्छा से भक्तों के हित के लिए समग्र देश में फैल गए। उन वृक्षों पर जो फल लगे वे ही रुद्राक्ष हैं।
अनिल शास्त्री ने कहा कि वे पापनाशक, पुण्यवर्धक, रोगनाशक, सिद्धिदायक तथा भोग मोक्ष देने वाले हैं। रुद्राक्ष जैसे ही भद्राक्ष भी हुए। रुद्राक्ष श्वेत, लाल, पीले तथा काले वर्ण वाले होते हैं। ब्राह्मण क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों को श्वेत आदि के क्रम से ही पहनने चाहिए। रुद्राक्ष फलप्रद हैं। जितने छोटे रुद्राक्ष होंगे उतने ही अधिक फलप्रद हैं।
वे अष्टि को दूर करके शांति देने वाले हैं। कथा वाचक अनिल शास्त्री ने कहा की रुद्राक्ष की माला धारण करने से पाप और रोग नष्ट होते हैं। साथ ही सिद्धि मिलती है। भिन्न-भिन्न अंगों में भिन्न-भिन्न संख्यावाले रुद्राक्ष धारण करने से लाभ होता है।
शिव पुराण में इसका विस्तृत विवेचन है। भस्म, रुद्राक्ष धारण करके नमः शिवाय मंत्र का जप करने वाला मनुष्य शिव रूप हो जाता है। भस्म रुद्राक्षधारी मनुष्य हो देखकर भूत प्रेत भाग जाते हैं, देवता पास में दौड़ आते हैं, उसके यहां लक्ष्मी और सरस्वती दोनों स्थायी निवास करती हैं, विष्णु आदि सब देवता प्रसन्न होते हैं। अतः सब वैष्णवों को नियम से रुद्राक्ष धारण करना चाहिए।
[ad_2]
Kurukshetra News: … जब महादेव के नेत्र से पृथ्वी पर गिरे जल के बिंदू से उत्पन्न हुए वृक्ष
