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कुरुक्षेत्र। गांव कमोदा स्थित काम्यकेश्वर तीर्थ।
कुरुक्षेत्र। कमोदा गांव स्थित काम्यकेश्वर महादेव मंदिर एवं तीर्थ पर 11 अगस्त को रविवारीय शुक्ला सप्तमी मेला आयोजित होगा, जिसमें श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ने की उम्मीद जताई जा रही है। इसके लिए तैयारी शुरू कर दी गई है। मेले को लेकर ग्रामीणों में भी जोरदार उत्साह बना हुआ है। मान्यता है कि इस दिन तीर्थ में स्नान करने से पुण्य का 100 गुणा ज्यादा फल मिलेगा और मोक्ष प्राप्त होगी। मान्यता के अनुसार रविवारीय शुक्ल सप्तमी के दिन तीर्थ में स्नान करने से मोक्ष व पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है।
महर्षि पुलस्त्य जी और महर्षि लोमहर्षण ने वामन पुराण में काम्यकवन तीर्थ की उत्पत्ति का वर्णन करते हुए बताया है कि इस तीर्थ की उत्पत्ति महाभारत काल से पूर्व की है। एक वार नैमिषारण्य के निवासी बहुत ज्यादा संख्या में कुरुक्षेत्र की भूमि के अंतर्गत सरस्वती नदी में स्नान करने हेतु काम्यक वन में आए थे। वे सरस्वती में स्नान न कर सके। उन्होंने यज्ञोपवितिक नामक तीर्थ की कल्पना की और स्नान किया, फिर भी शेष लोग उसमें प्रवेश न पा सके तब से मां सरस्वती ने उनकी इच्छा पूर्ण करने के लिए साक्षात् कुंज रूप में प्रकट होकर दर्शन दिए और पश्चिम-वाहनी होकर बहने लगी। इसलिए वनवास के समय पांडवों ने इस धरा को तपस्या हेतु अपनी शरणस्थली बनाया।
तीर्थ को लेकर हैं कईं मान्यताएं
ग्रामीण सुमिंद्र शास्त्री व सुखदेव ने बताया कि मंदिर में 11 अगस्त को रविवारीय शुक्ला सप्तमी मेला लगेगा। उनके अनुसार इसी पावन धरा पर पांडवों को सांत्वना एवं धर्मोंपदेश देने हेतु महर्षि वेदव्यास, महर्षि लोमहर्षण, नीतिवेत्ता विदुर, देवर्षि नारद, संजय एवं महर्षि मार्कंडेय जी पधारे थे। पांडवों को दुर्वासा ऋषि के श्राप से बचाने के लिए और तीसरी बार जयद्रथ द्वारा द्रौपदी हरण के बाद सांत्वना देने के लिए भी भगवान श्रीकृष्ण काम्यकेश्ववर तीर्थ पर पधारे थे। पांडवों के वंशज सोमवती अमावस्या, फल्गु तीर्थ के समान शुक्ला सप्तमी का इंतजार करते रहते थे।
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Kurukshetra News: काम्यकेश्वर तीर्थ, जहां शुक्ला सप्तमी पर स्नान करने से मिलता है मोक्ष