– लोग बोले – किस जाति और किस बिरादरी से कितनी और कैसे मिल सकती है वोट, सियासी दलों का इसी पर मुख्य फोकस
– चुनाव में नहीं हो रही स्थानीय समस्याओं और सुविधाओं की बात, इससे नाराज हैं मतदाता
– हरियाणा में यूपी मॉडल लागू करने की भी हो रही चर्चा, रोजगार के लिए हर जिले में औद्योगिक विकास भी बड़ा मुद्दा
मोहित धुपड़
असंध/बजीदा रोड़ान/काछवा/करनाल। हर चुनाव में नेताजी हमारे गांव में आते हैं। कई लोगों से मिलते हैं, हमारी समस्याएं भी बहुत ध्यान से सुनते हैं। समस्याओं के समाधान और क्षेत्र के विकास का वादा भी किया जाता है मगर ये वादे वफा नहीं हो पाते। जीत जाने के बाद तो कोई आकर सुध तक नहीं लेता। यह पीड़ा है असंध के बजीदा रोड़ान गांव के रहने वाले दीपक की।
वह बताते हैं कि उनका गांव करीब ढाई सौ साल पुराना है मगर आज भी कई समस्याओं से घिरा है। उन्होंने बताया कि गांव की ओर आने वाला मुख्य रास्ता कई सालों से खराब था। इसके लिए गांववासी नेताओं से लेकर अफसरों तक भटकते रहे। मई में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले इस रास्ते की मरम्मत कर दी गई मगर अब ये फिर जर्जर हो रहा है। दरअसल, इस सड़क का पुनर्निर्माण होना है मगर जिम्मेदारों को कोई सुध नहीं।
आंबेडकर भवन में मौजूद प्रेम सिंह कहते हैं कि क्या नेताओं का फर्ज नहीं बनता कि एक बार गांव में आकर हालात देखें। वोट मांगने के लिए सालों बाद एक बार तो जरूर आते हैं। हाथ जोड़ते हैं और बुजुर्गों के पैर छूकर उनसे जीत का आशीर्वाद भी लेते हैं। उसके बाद कोई नजर नहीं आता। आप जाकर गांव के प्राइमरी स्कूल का हाल देख लीजिए… पांच कक्षाएं हैं वहां और कमरे तीन। कंडम कमरों को पंचायत ने बच्चों की सुरक्षा के लिहाज से गिरा दिया था मगर शिक्षा विभाग ने नए कमरे नहीं बनवाए। नए बने तीन कमरों में से दो कमरे तो यहां मंदिर की कमेटी ने और एक कमरा पंचायत ने बनवाया है। तब जाकर बच्चे छत के नीचे पढ़ पा रहे हैं।
गांव के ही युवा शेखर बीए करने के बाद नौकरी की तलाश में हैं। उनका कहना है कि उन्हें गांव के दूसरे युवकों की तरह रोजगार के लिए गांव छोड़कर बाहर जाना पड़ेगा, क्योंकि न तो इस क्षेत्र में कोई बड़ा उद्योग है और न ही कोई प्लांट, जहां रोजगार मिल सके। वह बताते हैं कि इस क्षेत्र में परिवहन सुविधा भी नहीं है। मंजूरा व काछवा गांव से बस पकड़नी पड़ती है। हायर एजुकेशन के लिए बच्चों को शहर तक जाना पड़ता है मगर सुलभ परिवहन सुविधा के बिना ये कितना मुश्किल है, इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता।
काछवा गांव के परमजीत सिंह क्षेत्र में अपेक्षित विकास न होने की वजह से नाराज हैं। काछवा भी करीब डेढ़ सौ साल से पुराना गांव हैं। कई पुराने धार्मिक स्थल यहां मौजूद हैं और यह बड़ी आबादी का क्षेत्र है। प्रत्याशियों की नजर भी यहां के मतदाताओं पर बराबर बनी रहती है। परमजीत कहते हैं कि काछवा जितना पुराना और महत्वपूर्ण गांव हैं, उस लिहाज से इसका विकास नहीं हुआ। यहां चुनाव के दौरान विकास की बात कम होती है, जात-बिरादरी की ज्यादा। क्षेत्र की समस्याएं और मुद्दे तो गौण हो जाते हैं।
इसी गांव के खुशवंत हरियाणा में यूपी मॉडल की बात करते हैं। वह इस बात से नाराज हैं कि गांव में स्ट्रीट लाइटें नहीं हैं। वह कहते हैं कि एक योजना के तहत यहां स्ट्रीट लाइटें लगनी थीं मगर उस योजना का क्या हुआ, क्या स्ट्रीट लाइटें खरीदी गईं, यदि खरीदी तो कहां लगी… आज तक कुछ नहीं पता। उनका मानना है कि यूपी में भाजपा सरकार अच्छा काम कर रही है और यही मॉडल हरियाणा में भी लागू होना चाहिए।
युवा कंवल रोजगार के अवसर बढ़ाने की बात करते हैं। उनका कहना है कि… हम भी जानते हैं कि सरकारी नौकरियां सीमित हैं, तो सरकारें सभी जिलों में बड़ी औद्योगिक इकाइयां क्यों नहीं स्थापित करती, क्यों युवाओं को रोजगार के लिए अपना गांव, शहर व जिला छोड़कर पलायन करना पड़ता है। वोट मांगने के लिए आने वाले नेताओं और जीतने के बाद सरकार को इस पर गंभीरता से विचार करना पड़ेगा। आज समय की मांग है कि हर जिले का औद्योगिक विकास होना बहुत जरूरी है, तभी गांवों व शहरों से युवाओं का पलायन रोका जा सकेगा।
प्रिंस गांवों में खेल स्टेडियमों के हालात पर चिंतित हैं। वे कहते हैं कि… थोड़ी ही दूरी पर काछवा का खेल स्टेडियम है, चलिए चलकर देखते हैं… उनके कहने पर अमर उजाला की टीम स्टेडियम में पहुंची। यहां बना शानदार इंडोर हाॅल और चहारदीवारी के दायरे में कई एकड़ में फैले विभिन्न खेलों के मैदान… सब बेहाल पड़े हैं। यहां घास और झाड़ियों का साम्राज्य है। इंडोर हाॅल के दरवाजे, खिड़कियां व शीशे टूट चुके हैं। बिजली के बोर्ड उखड़ चुके हैं। प्रशिक्षक हैं नहीं, इसलिए यहां खिलाड़ी भी नहीं आते। अच्छे शौचालय और ड्रेसिंग रूम मगर आज तक किसी ने इस्तेमाल ही नहीं किए। बताया गया कि खेल महकमे ने करोड़ों रुपये खर्च कर यह स्टेडियम तो बनवा दिया मगर युवाओं को मैदान तक ले जाने के लिए किसी ने न तो जागरूक किया और न ही प्रोत्साहित। प्रिंस कहते हैं कि जब कोच होंगे, खेल नर्सरियां होंगी, तभी गांव के युवा खेल मैदान तक पहुंचेंगे। बहुत से युवा खेलों में आगे बढ़ना चाहते हैं, मगर उन्हें प्रोत्साहन देने वाला कोई नहीं है।
रविंद्र भाटिया चुनाव में जातिवाद को बढ़ावा देने के बढ़ते कल्चर से चिंतित हैं। उनका कहना है कि राजनीतिक दल स्थानीय समस्याओं और मुद्दों पर फोकस करें, तो ज्यादा बेहतर होगा। वे जातिवाद को बढ़ावा न दें। उनके अनुसार हमारे क्षेत्र में गंदगी और जलभराव की भी बड़ी समस्या है। सफाई कर्मी आते नहीं, आते हैं तो सुनते नहीं। क्षेत्र के जो जिम्मेदार हैं, उन्हें शायद लोगों की इस समस्या से कोई लेनादेना ही नहीं है।
असंध के बहलोलपुर गांव के सघनजीत सिंह गांव में परिवहन सुविधा न होने से खफा हैं। उनका कहना है कि हैरत की बात है कि डेढ़ साै साल से ज्यादा पुराने उनके गांव में आज तक बस सेवा ही नहीं है। स्कूल पांचवीं तक है। आज तक अपग्रेड नहीं हुआ। स्कूल के साथ ही बने तालाब में ही गांव का गंदा पानी छोड़ा जा रहा है। गंदे पानी की निकासी के बारे में आज तक किसी ने नहीं सोचा। अच्छा होता चुनावी माैसम में बातचीत विकास, रोजगार, सुविधाओं, समस्याओं के समाधान और महंगाई को काबू करने की होती पर यहां तो नेताजी की चिंता यह है कि बस जीतना कैसे है, भले ही इसके लिए जो वादा करना पड़े, खुले दिल से किया जाए, उसे पूरा करने की बात बाद में… ।
Karnal News: वफा नहीं होते वादे, बस जातियों के गणित में उलझ रहे नेताजी