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– पुराने शहर के 182 ट्यूबवेलों के बटन ऑन-ऑफ करने पर हर माह खर्च होंगे 20 लाख रुपये
– स्कॉडा में ऑटोमेटिक सिस्टम से ऑन-ऑफ होने थे नलकूप
जितेंद्र नरवाल
करनाल। स्वचालित तकनीक से नलकूप चलाकर शहरवासियों को पेयजल आपूर्ति करने के लिए 38.50 करोड़ की परियोजना स्कॉडा अब तक शुरू नहीं हो पाई है, इस कारण निगम ने फिर से मैन्युअल तरीके से ये ट्यूबवेल संचालित करने की योजना तैयार कर ली है। नगर निगम इस नई योजना पर साल में 2.31 करोड़ रुपये खर्च करेगा।
यह राशि केवल शहर में लगे 182 ट्यूबवेलों और बूस्टिंग स्टेशन को ऑन-ऑफ करने पर खर्च होगी। इसमें शहरवासियों को पेयजल आपूर्ति वाले इन ट्यूबवेलों को चलाने और बंद करने का काम एजेंसी के माध्यम से कराया जाएगा। जिसके कर्मचारी सुबह, दोपहर और शाम को इन ट्यूबवेलों को चलाने और बंद करने का काम करेंगे। जबकि ये काम स्काॅडा परियोजना के तहत होना था।
मैन्यूअल तरीके से ट्यूबवेलों को ऑन-ऑफ करने का यह काम विशेष तौर पर शहर के 20 वार्डों में होगा। इनमें भी विशेष तौर पर पुराने शहर की आबादी वाले क्षेत्र को शामिल किया गया है। यानी नगर निगम की सीमा के अंदर आने वाले गांव इसमें शामिल नहीं होंगे। इसके अलावा नगर निगम के अंतर्गत आने वाले शहरी विकास प्राधिकरण के सेक्टर भी इसमें शामिल नहीं होंगे। गांवों में पेयजल आपूर्ति का काम दूसरा विभाग देखेगा जबकि सेक्टरों की आपूर्ति शहरी विकास प्राधिकरण की ओर से की जाएगी।
कुल मिलाकर शहर के 20 वार्डों में लगे इन 182 ट्यूबवेलों, बूस्टिंग स्टेशनों को चलाने के लिए हर माह करीब 20 लाख रुपये खर्च होंगे। यानी एक दिन में करीब 64 हजार रुपये का खर्चा आएगा। दूसरी बात ये है कि इस लागत में इन ट्यूबवेलों, बूस्टिंग स्टेशनों आदि की मरम्मत का काम इसमें शामिल नहीं होगा। अगर कोई ट्यूबवेल खराब होता है तो उसके लिए निगम को अलग से खर्च करना होगा। शहरवासियों के लिए यह ट्यूबवेल रोजाना आठ से नौ घंटे तक चलाने की व्यवस्था की जा रही है। यानी एक ट्यूबवेल सुबह, दोपहर और शाम को करीब तीन-तीन घंटे तक चलाया जाएगा। जिससे शहरवासियों को निर्बाध जलापूर्ति मिल सके।
यह थी स्काॅडा योजना
पर्यवेक्षी नियंत्रण और डाटा अधिग्रहण (स्काॅडा) सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर, दोनों की एक केंद्रीकृत प्रणाली है। जो पूरे क्षेत्र की निगरानी और नियंत्रण करती है। पर्यवेक्षी प्रणाली प्रक्रिया से डाटा एकत्र होता है और कमांड नियंत्रण को भेजा जाता है। यह डाटा सिस्टम से जुड़े सेंसर, नेटवर्क और उपकरणों से प्राप्त होता है। सेंसर गति, प्रवाह और दबाव जैसे मापदंडों को मापते हैं।
इस सुविधा से शहर में क्षेत्र अनुसार पानी की पर्याप्त उपलब्धता के साथ-साथ पाइप लाइनों की लीकेज और उसका समाधान सुनिश्चित करना था। नलकूप ऑटोमेटिक सिस्टम से ऑन-ऑफ होने थे। पेयजल में क्लोरीन की संतुलित मात्रा मौजूद रखने और इसकी शुद्धता बनाए रखने का काम स्काॅडा के तहत होना था। इसकी एप्लीकेशन के जरिये पूरे सिस्टम पर ऑनलाइन नियंत्रण रखा जाना था।
एक साल से लंबित, मार्च में होनी थी पूरी: स्काॅडा परियोजना का कार्य अब भी अधर में है। यह मार्च 2025 में पूरी होनी थी। इस व्यवस्था के लागू होने के बाद पाइप लाइनों की लीकेज और उसका समाधान सुनिश्चित होना था। शहर के 182 नलकूप, तीन बूस्टर स्टेशन, चार ओवरहेड टैंक इस परियोजना के तहत चलाए जाने थे। योकोगावा इंडिया लिमिटेड एजेंसी की इन सभी पर उपकरण स्थापित करने की जिम्मेदारी दी थी। परियोजना का काम पूरा होने के बाद इसे एकीकृत कमांड एंड कंट्रोल सेंटर (आईसीसीसी) से जोड़ा जाना था। जिससे एक ही स्थान से रियल टाइम डाटा एकत्र होना था। उपकरणों की निगरानी और उन पर नियंत्रण भी एक ही स्थान से होना तय था। कार्य पूरा करने के बाद करीब पांच साल तक एजेंसी की ओर से ही सभी उपकरणों का संचालन व रख-रखाव की शर्त भी शामिल की गई थी।
शहरवासियों को पेयजल आपूर्ति की सुविधा देने के लिए ट्यूबवेल संचालन का ठेका दिया जाएगा। इस काम पर साल में करीब सवा दो करोड़ रुपये खर्च होंगे। इसमें केवल ट्यूबवेल संचालन का काम होगा, रिपेयरिंग आदि का काम अलग से कराया जाएगा।
– सतीश शर्मा, एक्सईएन, नगर निगम
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Karnal News: स्कॉडा अधूरी, अब 2.31 करोड़ से मैन्यूअल पानी पिलाएगा निगम