[ad_1]
आजकल स्मार्टफोन कंपनियों के लिए नया ट्रेंड बन गया है, IP रेटिंग दिखाना, खासकर IP68 और अब IP69 तक. बड़े-बड़े बैनर, चमकदार वीडियो और टैगलाइन में ये रेटिंग इतनी बार दोहराई जाती है कि जैसे बिना इसके फोन फोन ही न हो. लेकिन, सवाल ये है कि क्या वाकई इस रेटिंग से आपको कोई बड़ा फायदा होता है?
अगर आपके फोन में IP68 लिखा है तो समझिए कि वो ‘धूल के कणों से पूरी तरह महफूज’ है और पानी में डूब जाए तो भी कुछ मिनट तक कुछ नहीं होगा. आमतौर पर कंपनियां कहती हैं कि 1.5 मीटर गहराई में 30 मिनट तक ठीक रहेगा. लेकिन बस इतना ही. इससे ज़्यादा भरोसा आप नहीं कर सकते.
IP68 और IP69 का झुनझुना
अब आता है नया नाम, IP69 का सुनने में तो लगता है कि ये IP68 से कहीं ज्यादा दमदार होगा और कुछ मामलों में है भी. जैसे कि तेज प्रेशर वाले पानी के जेट, भाप से सफाई और थोड़ी ऊंची गर्मी को ये बेहतर सहन कर पाता है, लेकिन जरा सोचिए, क्या आप अपने फोन को प्रेशर वॉशर से साफ करते हैं? या उसे भाप के कमरे में ले जाकर नहाते हैं?
असल में IP69 रेटिंग का इस्तेमाल तो उन मशीनों में होता है जिन्हें रोज तेज पानी से धोना पड़ता है, जैसे कारखाने की मशीनें, खेतों में इस्तेमाल होने वाले औजार, अस्पताल के उपकरण वगैरह. स्मार्टफोन इनकी लाइन में कैसे आ गया?
स्मार्टफोन कंपनियों का नया मार्केटिंग दांव
कंपनियां बस एक नया ‘मार्केटिंग पॉइंट’ ढूंढ लेती हैं और उसे बेचने लगती हैं. मजेदार बात तो ये है कि चाहे फोन IP68 हो या IP69, अगर वो पानी में गिरकर खराब हो जाए, तो कंपनी आपको ‘वारंटी में कुछ नहीं देने वाली’ तो फिर ये रेटिंग किस काम की?
दिक्कत ये नहीं कि IP रेटिंग है, दिक्कत ये है कि उसे एक ‘गारंटी’ की तरह बेचा जाता है, जबकि असल में ये सिर्फ एक ‘लैब टेस्ट की रिपोर्ट’ है. वो भी कई बार बिना पक्के सबूत के. आप कहें कि ‘फोन तो वाटरप्रूफ है’, लेकिन कंपनी बोलेगी- ‘हां, लेकिन आपकी गलती से खराब हुआ, वारंटी नहीं मिलेगी.’
तो अगली बार जब कोई नया फोन खरीदें और उस पर IP68 या IP69 लिखा हो, तो उस रेटिंग से ‘ज्यादा उम्मीद मत रखिए’. पानी में तैराना है तो बोट को तैराइए, फोन को नहीं.
[ad_2]
IP68 या IP69? फोन की ये रेटिंग सिर्फ दिखावा है या वाकई में काम की चीज?

