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हिसार के अग्रसेन भवन में आयोजित भक्तमाल कथा में उपस्थित श्रद्धालु।
हिसार। अग्रसेन भवन में चल रही भक्तमाल कथा एवं हरि नाम संकीर्तन के तीसरे दिन कथा व्यास गौरदास महाराज ने प्रवचन देते हुए कहा कि श्रीधाम वृंदावन जहां 525 साल पूर्व झाड़-जंगल था और लुप्त वृंदावन की खोज चैतन्य महाराज ने की थी। उन्होंने कहा कि भगवान जितना भक्ति एवं भजन करने से प्रसन्न होते हैं, उससे भी अधिक संतों एवं भक्तों की सेवा व प्रभु के नाम का प्रचार करने में सहयोग करने पर होते हैं। प्रभु की सारी लीलाएं पूजनीय हैं किंतु हम तो प्रभु की वृंदावन की लीलाओं का ही स्मरण एवं वंदन करते हैं। उन्होंने तीर्थ व धाम का मतलब बताते हुए कहा कि तीर्थ स्थान वह होता है, जहां हम स्नान करके स्वयं को पवित्र करते हैं और धाम वह स्थान होता है, जहां भगवान का वास होता है। धाम के दर्शन करने से मनुष्य धन्य हो जाता है। वृंदावन में जाने वाले का वास होता है इसलिए वहां रहने वाला स्वयं बृज वासी कहता है। उन्होंने कई भक्तों के चरित्र का वर्णन करते हुए भजन भी प्रस्तुत किए।
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