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हिसार। आम का तेला या फुदका के बचाव के लिए किसानों को सतर्क रहना चाहिए। हरे-मटमैले रंग के यह कीट आम के पेड़ पर बौर, कलियाें, फूल की डंडियों एवं नई पत्तियों से रस चूसते हैं, जिससे ये मुरझाकर सूख जाती हैं। शिशु व प्रौढ़ पत्तियाें की निचली सतह पर रहकर ज्यादा हानि करते हैं, जिस कारण पत्तियां व काेपल में मुड़ी हुई दिखाई देती हैं। यह कीट पत्तियों पर एक मीठा रस भी छोड़ता है, जिससे पत्तियां चिकनी दिखती हैं। इस चिकनाई युक्त पदार्थ के कारण पत्ताें पर काली फफूंद की परत बन जाती है, जिससे पौधा अपना भोजन पूर्ण मात्रा में नहीं बना पाता है। साल में इस कीट की दाे पीढ़ियां होती हैं। पहली बौर के समय के आखिरी सप्ताह से मार्च-अप्रैल के मध्य तथा दूसरी गर्मी और बरसात के मौसम में जून के दूसरे पखवाड़े से अगस्त के पहले पखवाड़े तक। पहली पीढ़ी से ज्यादा हानि पहुंचाती है। इस कीट के शिशु व प्रौढ़ पेड़ के तने व टहनियों पर घूमते हुए आसानी से पहचाने जा सकते हैं।

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Hisar News: कृषि सलाह- आम का तेला- फुदका के बचाव के लिए किसान सतर्क रहें