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हरियाणा कांग्रेस नेता।
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
भाजपा के प्रति जनता में नाराजगी से उत्साहित कांग्रेस की दस साल के बाद सत्ता में वापसी की राह उतनी आसान भी नहीं जितनी दिखाई देती है। सत्ता विरोधी वोट एकमुश्त कांग्रेस को न चले जाएं और लड़ाई त्रिकोणीय हो जाए, इसके लिए प्रतिद्वंद्वी पार्टियों ने पूरी ताकत लगाई है। दूसरी ओर, अपने नेताओं की बेरुखी और पार्टी के ही कुछ लोगों के कारनामे कांग्रेस की इस राह में कांटों के समान होंगे। इस सबसे बची तो ही गुल खिला पाएगी कांग्रेस।
टिकटों के बंटवारे में इस बार कांग्रेस ने चतुराई बरती है। भाजपा में उम्मीदवारों की पहली लिस्ट आने के बाद हुई बगावत को देख कांग्रेस ने पहली सेफ सूची सिटिंग विधायकों की दी और उसके बाद नामांकन से एक दिन पहले। इसके बावजूद बगावत उसे भी झेलनी पड़ रही है और 17 बागी मैदान में पार्टी के उम्मीदवारों के खिलाफ ही उतरे हुए हैं। वे कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकते हैं, हालांकि पूर्व मंत्री संपत सिंह जैसे बड़े नेताओं को भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने मैनेज भी कर लिया है।
पिछले चुनावों से सबक लेते हुए कांग्रेस हाईकमान ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा के समर्थक 72 उम्मीदवारों को टिकट दिए हैं, जबकि कुमारी सैलजा व रणदीप सुरजेवाला गुट को केवल 12 । 2019 में सैलजा के 28 समर्थकों को टिकट मिला था, जिनमें से केवल तीन जीत पाए थे। रणदीप सुरजेवाला व किरण दोनों के पांच-पांच समर्थकों को टिकट मिला था, लेकिन सुरजेवाला खुद ही हार गए और किरण सिर्फ अपनी सीट निकाल पाईं थीं। दूसरी ओर, हुड्डा के 23 समर्थक जीते थे। इस बार लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को दस में से पांच सीटें मिलने के बाद हाईकमान ने हुड्डा को और ज्यादा फ्री हैंड दे दिया है।
चुनाव से करीब छह माह पहले जिस तरह से एसआरके (सैलजा, रणदीप व किरण) का गुट हुड्डा को चुनौती देता नजर आता था, वैसी स्थिति अब नहीं है। किरण चौधरी तो भाजपा में जाकर राज्यसभा पहुंच चुकी हैं और सुरजेवाला अपने बेटे समेत कुछ समर्थकों को टिकट दिलाने तक जोर लगाते रहे। सैलजा ने पहले खुद भी चुनाव लड़ने की इच्छा जताई थी और मुख्यमंत्री पद की वह दावेदार भी मानी जाती हैं।
चुनाव तो उन्हें नहीं लड़ाया गया, लेकिन दूसरी दावेदारी उनकी अब भी हो सकती है। राजनीतिक विश्लेषक व वरिष्ठ पत्रकार बलवंत तक्षक कहते हैं कि सीएम का विकल्प भी खुला रखना कांग्रेस हाईकमान की रणनीति का ही हिस्सा है। सैलजा की दावेदारी से दलित वोट खिंचेंगे, जबकि हुड्डा के सीएम बनने की संभावना से जाट वोट। प्रदेश अध्यक्ष उदयभान के होने से भी जाट-दलित गठजोड़ कांग्रेस के लिए फिट बैठ रहा है। यही वोट इस बार निर्णायक होंगे। लेकिन टिकट आवंटन के बाद से जिस तरह से सैलजा ने खुद को प्रचार से दूर कर लिया है, उससे कांग्रेस की चिंता बढ़ने लगी है। आने वाले दिनों में भी अगर वह इसी तरह दूरी बनाए रखती हैं तो उनकी वजह से जितने दलित वोट आने का आकलन कांग्रेस लगाए बैठी है, वह गणित गड़बड़ा सकता है। हुड्डा, सैलजा व सुरजेवाला एक साथ किसी रैली या मंच पर अभी तक नहीं दिखे हैं।
एंटी इंकम्बेंसी का कांग्रेस को लाभ
गुटबाजी व निचले स्तर पर संगठनहीन होने के बावजूद कांग्रेस के पक्ष में सबसे बड़ा फैक्टर है- भाजपा के खिलाफ एंटी इंकम्बेंसी। सत्ता विरोध की लहरों पर उसकी नाव सवार है। इन लहरों का फायदा केवल उसे ही न मिले, इसके लिए भाजपा व दूसरे दल भी जोर लगाए हुए हैं। यानी मुकाबले तो त्रिकोणीय और चतुष्कोणीय बनाकर वोटों के बिखराव की रणनीति। यह तय है कि जितना जाट वोटों (22 प्रतिशत) का ध्रुवीकरण होगा और कांग्रेस के पक्ष में जाएगा, उतना ही कांग्रेस को फायदा होगा। कांग्रेस उसके बाद दलित वोटबैंक (21 प्रतिशत) को टारगेट किए हुए है। जाट वोटबैंक पर भाजपा की पकड़ न के बराबर रही है, इसलिए भाजपा इस वोट बैंक का बिखराव चाहती है। कांग्रेस की चिंता यही है कि पिछली बार जिस तरह से जननायक जनता पार्टी (जजपा) के साथ जाट वोट बंट गए थे उसी तरह इस बार अगर इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के साथ बंटे तो उसे नुकसान हो सकता है। यही नहीं इनेलो का बसपा के साथ गठबंधन होने से दलित वोट भी बंट सकते हैं और भाजपा को फायदा हो सकता है।
सैलजा पर टिप्पणी ने फंसाया
अति उत्साह में गलतियां होती हैं और कांग्रेस को भी इसी का डर है। सैलजा पर हाल ही में एक कांग्रेस समर्थक की ओर से की गई टिप्पणी को दलित विरोधी बताते हुए भाजपा व अन्य दलों ने भुनाने की कोशिश की। रक्षात्मक हुए भूपेंद्र सिंह हुड्डा को सैलजा को अपनी बहन कहकर सफाई देनी पड़ी कि यह किसी की चाल है। अभी यह मामला ठंडा नहीं पड़ा है कि दो उम्मीदवारों के वीडियो वायरल हो गए हैं जिनमें एक वोट के बदले नौकरी दिलाने और दूसरा सरकार बनने पर अपना घर भरने की बात कह रहा है। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी समेत तमाम भाजपा नेताओं ने इसे मुद्दा बना दिया है कि कांग्रेस सरकार आई तो फिर पर्ची-खर्ची (सिफारिश व पैसे) से नौकरियां दी जाएंगी। नौकरियों में धांधली और भ्रष्टाचार के मुद्दों पर कांग्रेस घिर सकती है। उसके पांच प्रत्याशी ऐसे हैं जो ईडी या भ्रष्टाचार के अन्य मामलों में घिरे हुए हैं।
अभी तक आक्रामक कांग्रेस नैरेटिव गढ़ रही है और भाजपा को उसके मद्देनजर अपनी रणनीति बनानी पड़ रही है। किसानों, पहलवानों व जवानों के मुद्दे को कांग्रेस ने इतने बड़ा बना दिया कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से लेकर उम्मीदवारों तक को इन तीन वर्गों को लेकर अति सजग व रक्षात्मक होना पड़ा है। इन तीन वर्गों के इर्द-गिर्द ही सभी दलों का पूरा प्रचार व मुद्दे घूम रहे हैं। दूसरी ओर, अग्निवीरों को रोजगार, एमएसपी की कानूनी गारंटी और सरकारी कर्मचारियों को ओल्ड पेंशन स्कीम जैसे वादों के साथ कांग्रेस ने जनता की दुखती रग पर हाथ रखने की कोशिश की है। किसानों व पहलवानों के मुद्दे को ओलंपियन पहलवान विनेश फोगाट के कांग्रेस में आने व चुनाव लड़ने से और हवा मिली है।
वोट बंटने से रोकना होगा चुनौती
कांग्रेस अब यह नैरेटिव सेट करने की पुरजोर कोशिश में है कि इनेलो-बसपा गठबंधन भाजपा की ही बी टीम है। इन्हें दिया गया वोट भाजपा के ही पक्ष में जाएगा, क्योंकि ये नतीजों के बाद एक हो जाएंगे। कांग्रेस के सभी नेता यही बात अपनी सभाओं में प्रचारित कर रहे हैं। इसके पीछे दो कारण हैं- एक तो यह कि भाजपा से दूर रहने वाला जाट वोट कई जगह न बंट जाए। दूसरा, मुकाबला सीधा कांग्रेस व भाजपा में ही रहे, बहुकोणीय न हो जाए। कांग्रेस को वोट बंटने का खतरा अब इनेलो-बसपा गठबंधन ही नहीं, आम आदमी पार्टी से भी है, जिसने सभी 90 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं। जाट और दलित वोटों के गठजोड़ से सत्ता में भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए ही जजपा ने भी आजाद समाज पार्टी से गठबंधन किया है।
प्रचार में पिछड़ी कांग्रेस
कांग्रेस प्रचार में भाजपा से पिछड़ गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की हरियाणा में तीन रैलियां हो चुकी हैं। तीन और होंगी। कांग्रेस में राहुल गांधी, प्रियंका या किसी अन्य राष्ट्रीय नेता की रैली की तारीख अभी तय नहीं है। प्रचार में केवल भूपेंद्र सिंह हुड्डा, सांसद दीपेंद्र हुड्डा व उदयभान ही इकट्ठे नजर आ रहे हैं। भूपेंद्र व दीपेंद्र ही मैदान में धुआंधार प्रचार कर रहे हैं। अमेरिका यात्रा से लौटे राहुल शुक्रवार को अचानक करनाल के एक गांव में पहुंचे और थोड़ी देर में लौट भी गए। कांग्रेसियों को अब उनके प्रचार में आने का इंतजार है।
- 1967 से अब तक कांग्रेस ने सात बार बनाई हरियाणा में सरकार। जब-जब 35 प्रतिशत से अधिक वोट पाए, सत्ता में आई कांग्रेस।
वर्ष और मत प्रतिशत
- 1967- 41
- 1968- 43
- 1972 – 46
- 1982 – 37.58
- 1991 – 38.73
- 2005 – 42.46
- 2009 – 35.08
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