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दुष्यंत चौटाला और चंद्रशेखर आजाद
– फोटो : संवाद
विस्तार
पिछले विधानसभा चुनाव में किंगमेकर बनी जननायक जनता पार्टी (जजपा) का फोकस अपने परंपरागत गढ़ पर ही रहा। जिन दस सीटों पर पिछली बार जीते और दूसरे या तीसरे स्थान पर रहे थे, सबसे ज्यादा जोर वहीं लगाया। इन सीटों में शाहाबाद, उचाना, नरवाना, टोहाना, उकलाना, जुलाना, बाढड़ा, गुहला-चीका, नारनौंद के अलावा 23 और सीटें रहीं। हालांकि, जजपा वर्ष 2019 की तरह प्रचार को आक्रामकता नहीं दे पाई क्योंकि खुद दुष्यंत चौटाला उचाना कलां में अपनी सीट पर फंसे रहे। इस बीच चुनाव प्रचार की कमान दुष्यंत की मां नैना चौटाला व जजपा अध्यक्ष अजय चौटाला ने संभाली।
दुष्यंत सबसे ज्यादा 30 हलकों में पहुंचे। 22 हलकों में अजय व 16 में नैना पहुंचीं। उनके साथ गठबंधन में रही आजाद समाज पार्टी (एएसपी) प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ने उचाना से उम्मीदवार दुष्यंत चौटाला, जजपा महासचिव डबवाली से उम्मीदवार दिग्विजय चौटाला के साथ कई जिलों में रैलियां और रोड शो किए। चंद्रशेखर ने भी अंबाला, गुरुग्राम, फरीदाबाद, यमुनानगर, जींद, सिरसा, कुरुक्षेत्र, हिसार जिले में ताबड़तोड़ रैलियां की हैं। इस दौरान गठबंधन के नेताओं ने किसान, जवान, महिलाओं और अग्निवीर के अपने प्रमुख उठाने के साथ भाजपा-कांग्रेस और इनेलो की घेराबंदी की। इस चुनाव में जजपा से दुष्यंत चौटाला और एएसपी से चंद्रशेखर आजाद ही बड़े चेहरे रहे।
विरोध और विवाद से करना पड़ा सामना
कई जगह जजपा उम्मीदवार और दुष्यंत चौटाला का जनता ने किसान आंदोलन के समय भाजपा के साथ रहने पर विरोध किया। इस बात को दुष्यंत चौटाला ने खुले मंच पर माना कि किसान आंदोलन में भाजपा के साथ खड़े रहना उनके जीवन की बड़ी गलतियों में एक थी। इसी तरह चुनाव प्रचार के दौरान दुष्यंत से सवाल करने के बाद पहलवान काला हरिगढ़ पर हमले और बाद में दुष्यंत-चंद्रशेखर के काफिले पर भी हमला हुआ।
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