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Haryana Assembly Election 2024: गठबंधन बेअसर, दलित वोटरों का भाजपा पर बढ़ा भरोसा, 17 सीटें हैं आरक्षित Latest Haryana News

Haryana Assembly Election 2024: गठबंधन बेअसर, दलित वोटरों का भाजपा पर बढ़ा भरोसा, 17 सीटें हैं आरक्षित Latest Haryana News

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पवन खरखौदा को जीत के बाद कंधे पर उठा कर खुशी मनाते कार्यकर्ता।
– फोटो : संवाद

विस्तार


हरियाणा में दलित वोटरों का भरोसा भाजपा पर बढ़ा है। विधानसभा चुनाव के नतीजे यही बताते हैं। हालांकि कांग्रेस की पैठ भी दलितों में कम नहीं है मगर दलितों का जजपा से किनारा कांग्रेस के लिए भी फायदे का सौदा साबित हुआ है। उधर भाजपा ने भी कांग्रेस के दलित वोट बैंक में सेंधमारी की है। वर्ष 2019 के चुनाव में चार आरक्षित सीटें जीतने वाली जजपा का अबकी बार सूपड़ा साफ हो गया है। एक सीट आजाद प्रत्याशी ने जीती थी मगर इस बार वे भी हार गए।

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हरियाणा में करीब 21 प्रतिशत दलित वोटर हैं। जाट और जाट सिख बिरादरी के करीब 29 प्रतिशत मतदाताओं के बाद दलित ही सूबे में दूसरा बड़ा वोट बैंक हैं। हालांकि इनकी आबादी सभी हलकों में हैं मगर 90 में से 17 सीटों एससी प्रत्याशियों के लिए आरक्षित की गई हैं।

इस बार भी जाट और गैर जाट मतदाताओं की राजनीति में दलित वोटरों को साधना सभी दलों के लिए बड़ी चुनौती रहा। अब तक कांग्रेस इन्हें अपना मजबूत वोट बैंक बताती आई है मगर नतीजे यदि देखें तो अबकी दलित वोटरों को काफी हद तक रिझाने में भाजपा भी कामयाब रही है।

इस बार 17 आरक्षित सीटों में से आठ सीटें भाजपा ने जीती हैं, जबकि पिछली बार भाजपा को पांच सीटों मिली थी। कांग्रेस ने भी अपनी पैठ को कायम रखते हुए दो सीटों के इजाफे के साथ नौ आरक्षित सीटें जीती हैं। चार सीटें जीतने वाली जजपा और एक सीट जीतने वाले आजाद प्रत्याशी अबकी कुछ हाथ नहीं लगा है।

उधर, दलित वोटरों को साधने के लिए जजपा और इनेलो ने सोशल इंजीनियरिंग का कार्ड खेला था। इसके लिए इनेलो ने बहुजन समाज पार्टी से और जजपा ने आजाद समाज पार्टी से गठबंधन किया था। दोनों दलों को उम्मीद थी कि जाट और दलित मतदाताओं को एक साथ लेकर कई सीटें जीतीं जा सकती हैं मगर यह रणनीति काम नहीं आई और दलित वोटरों पर इन गठबंधनों का बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं दिखा।

इस चुनाव में मुलाना, साढौरा, शाहाबाद, गुहला, कलानौर, कालांवली, उकलाना, रतिया और झज्जर सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की तो वहीं नीलोखेड़ी, इसराना, खारखौदा, बवानीखेड़ा, नरवाना, बावल, पटौदी व होडल सीट भाजपा ने अपने पाले में ली। वर्ष 2019 की स्थिति यदि देखें तो शाहाबाद, गुहला, नरवाना और उकलाना ये चारों सीटें जजपा के पास थीं। इस बार शाहाबाद, उकलाना और गुहला सीट पर कांग्रेस व नरवाना सीट पर भाजपा ने कब्जा किया। आजाद विधायक वाली नीलोखेड़ी सीट भी कांग्रेस के खाते में गई यानी इन सीटों पर जजपा का अधिकतर वोट बैंक कांग्रेस की ओर खिसका।

इतना ही नहीं इस बार भाजपा ने इसराना व खारखौदा सीट कांग्रेस के कब्जे से छीनी, तो वहीं कांग्रेस ने भी रतिया सीट भाजपा से कब्जाई। इस सीट से भाजपा ने पिछली बार विधायक रहे लक्ष्मण नापा का टिकट काटकर पूर्व सांसद सुनीता दुग्गल को दिया था मगर वे रतिया में कमल नहीं खिला पाईं। मुलाना, साढौरा, कलानौर, कालांवली और झज्जर ये सीटें पहले भी कांग्रेस के पास थी और इस बार भी कांग्रेस के खाते में ही गईं।

नरवाना व साढौरा सीट पर इनेलो-बसपा गठबंधन ने भाजपा और कांग्रेस प्रत्याशियों का ग णित जरूर बिगाड़ा। नरवाना से भाजपा के कृष्ण कुमार बेदी 59474 वोट लेकर जीते, वहीं कांग्रेस प्रत्याशी सतबीर डबलेन को 47975 वोट मिले। इनेलो-बसपा गठबंधन की विद्या रानी दनोदा ने 46303 वोट प्राप्त कर कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया। इसी तरह साढौरा सीट पर कांग्रेस की रेनु बाला 57534 वोट लेकर विजयी रहीं। भाजपा के बलवंत सिंह को 55835 वोट मिले। यहां भी बसपा-इनेलो प्रत्याशी बृजलाल ने 55496 मत हासिल कर भाजपा का खेल खराब कर दिया।

उधर राजनीतिक मामलों के जानकार रमेश बंसल बताते हैं कि भाजपा ने दलित वोटरों को साधने के लिए शुरू से ही अपनी रणनीति मजबूत रखी। भाजपा ने इस चुनाव में मिर्चपुर और गोहाना कांड की याद ताजा कर दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी रैली में इन दोनों घटनाओं का जिक्र किया। बंसल के अनुसार भाजपा ने यह कार्ड खेलकर एक तरह से दलितों को इशारों में यह चेतावनी दे दी थी कि अगर कांग्रेस सत्ता में आई तो उनके समुदाय पर अत्याचार का दौर फिर शुरू हो सकता है।

प्रोफेसर जेएस नैन के अनुसार भाजपा ने अपने कार्यकाल में प्रदेश की करीब 30 विमुक्त घुमंतू अनुसूचित जातियों व जनजातियों को सूचीबद्ध किया है। इनके कल्याण के लिए एक अलग निदेशालय खोलकर उन्हें सरकारी नीतियों का लाभ सुनिश्चित करवाने का सकारात्मक प्रयास किया गया। इससे भी इन जातियों का भरोसा भाजपा की नीतियों के प्रति बढ़ा और इसका लाभ निश्चित तौर पर भाजपा को मिला है।

डा. आरआर मलिक सांसद सैलजा की अनदेखी को भी दलित वोटरों की नाराजगी का एक कारण मानते हैं। उनके अनुसार इस चुनाव में हुड्डा गुट हावी दिख रहा था और कांग्रेस की प्रदेश में बड़ी दलित नेता सैलजा हाशिये पर थी। राहुल गांधी ने मंच पर सैलजा और हुड्डा का हाथ मिलवाकर भले ही कांग्रेस में एकजुटता का संदेश देने का प्रयास किया था लेकिन सैलजा के समर्थकों की नाराजगी पूरी तरह दूर नहीं हो पाई। नतीजतन कई सीटों पर सैलजा गुट के समर्थकों ने चुनाव प्रचार से दूरी बनाए रखी। जिसका नुकसान कांग्रेस को झेलना पड़ा।

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