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फतेहाबाद के राजकीय महिला महाविद्यालय मेंछछात्राओं को पढ़ाते हुए प्रोफेसर
फतेहाबाद। हिंदी मातृभाषा है, इसको बढ़ावा देने के लिए स्कूलों और महाविद्यालयों में ज्ञान दिया जाता है लेकिन नई शिक्षा नीति (एनईपी) महाविद्यालयों में लागू होने के बाद वहां हिंदी भाषा की अनिवार्यता ही खत्म कर दी गई है। विद्यार्थी खुद की इच्छा से भाषा चुन सकता है। जहां पहले स्नातक में हिंदी विषय की सीटें निर्धारित थी लेकिन अब ऐसा नहीं है। इसका असर ये है कि विद्यार्थी हिंदी भाषा के बजाय अन्य विषय चुन रहे हैं। ये ही हालात स्नातकोत्तर में दाखिले के लिए है। कई महाविद्यालयों में 50 फीसदी तक सीटें खाली हैं।
राजकीय महिला महाविद्यालय भोडियाखेड़ा में स्नातक में हिंदी विषय में पहले 400 सीटें निर्धारित थी लेकिन अब 150 ही रह गईं हैं। यहां एमए हिंदी विषय में 40 में से 36 दाखिले हुए हैं। एमएम कॉलेज में हिंदी संकाय में 40 में से 18 ही दाखिले हो पाए हैं।
महाविद्यालयों में एमए हिंदी के सीटों की स्थिति
एमए हिंदी सीटें
राजकीय महिला महाविद्यालय भोडियाखेड़ा 40
राजकीय महिला महाविद्यालय रतिया 60
राजकीय महाविद्यालय भूना 60
एमएम कॉलेज फतेहाबाद 40
डिफेंस कॉलेज टोहाना 60
सरकारी कार्यालयों अंग्रेजी में पत्राचार, नाम पट्टिका तक अंग्रेजी में
सरकारी दफ्तरों में हिंदी को महत्व नहीं दिया जा रहा है। यहां पर पत्राचार हिंदी की जगह अंग्रेजी में हो रहा है। डीसी-एसपी से लेकर सभी सरकारी विभागों में अंग्रेजी में ही पत्र लिखे जा रहे हैं। यहां तक कि दफ्तरों के बाहर लगी नाम पट्टिका भी अंग्रेजी में ही लगी है।
महाविद्यालयों में हिंदी भाषा चुनने की अनिवार्यता खत्म कर दी गई है। इससे नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। हिंदी पढ़ने वाले विद्यार्थी कम हुए हैं। हिंदी के लिए मेरी राय ये है कि इस भाषा का स्वाभिमान से प्रयोग करें, संकोच न रखें। भावों को व्यक्त करने की सबसे अच्छी भाषा हिंदी है। इसका प्रचार-प्रसार होना चाहिए। -डॉ. रमेश कुमार, विभागाध्यक्ष हिंदी, राजकीय महिला महाविद्यालय भोडियाखेड़ा।
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महाविद्यालयों में हिंदी अनिवार्य विषय नहीं रहा है हालांकि विद्यार्थियों ने अंग्रेजी से ज्यादा हिंदी को ही चुना है। नुकसान ये है कि हिंदी का प्रयोग पहले कम किया जा रहा था लेकिन अब और भी कम हो जाएगा। – डॉ. छोटूराम, प्रोफेसर, राजकीय महाविद्यालय, भूना।
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विद्यार्थियों का रुझान अन्य भाषाओं से ज्यादा हिंदी में ही है। ऐसी व्यवस्था महाविद्यालय की तरफ से की गई है। हिंदी हमारी मातृभाषा है। पंजाब में हिंदी दूसरी राजभाषा है लेकिन फिर भी वहां पर एमए हिंदी की जाए तो अच्छी मान्यता मिलती है। ऐसी स्थिति यहां भी होनी चाहिए। – मीनाक्षी कोहली, विभागाध्यक्ष, हिंदी, एमएम कॉलेज।
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साहित्यकार बोले रुचि बढ़ाने के लिए स्कूलों में पुस्तकालय तक नहीं
बच्चों का हिंदी के लिए रुझान कम हो रहा है। इसके पीछे दो बड़े कारण हैं। पहला कारण ये है कि विद्यार्थियों को हिंदी विषष के प्रति रुचिकर करके नहीं पढ़ाया जा रहा है। इससे बच्चों में हिंदी के प्रति रुझान बढ़ सके। दूसरा कारण ये है कि बच्चों के पढ़ने के लिए अच्छे साहित्य और पत्रिकाएं उपलब्ध नहीं हैं। स्कूलों में पुस्तकालय की व्यवस्था नहीं है। विद्यार्थियों को विभाग अच्छे साहित्य उपलब्ध ही नहीं करवा पा रहा है। – ओमप्रकाश कादयान, शिक्षाविद एवं साहित्यकार, फतेहाबाद।
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