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गुरुद्वारा सिंह सभा भूना में अमृत संचार समागम में गुरसिखों को अमृतपान की शिक्षा- दीक्षा देते हु
भूना। खंडे बाटे दी पौहल तैयार कर गुरुद्वारा सिंह सभा भूना में वीरवार को अमृत संचार समागम में 101 गुर सिखों ने अमृतपान किया। गुरुद्वारा साहिब में कलगीधर पातशाह का विधिवत रूप से दरबार सजा कर शबद कीर्तन के साथ प्रचारक बाबा करतार सिंह जत्थे ने गुरबाणी का प्रसार किया। गुरुद्वारा मुख्य ग्रंथी बाबा करतार सिंह की अगुवाई में पंथ के पंच प्यारों ने अमृत अभिलाखी प्राणियों को स्नान उपरांत पंच ककार धारण करवा कर अमृतपान करवाया।
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इस दौरान बाबा करतार सिंह ने कहा कि अमृतपान कर गुरु के सच्चे सिपाही बनें। सिख संगत की ओर से इस अवसर पर अमृत पान करने वालों पर फूलों की वर्षा करके उनका सम्मान किया। गुरु कलगीधर पादशाह की शिक्षा-दीक्षा के साथ अमृतपान करने वाले अमृत अभिलाखी सिखों को ककार प्रेम स्वरूप भेंट की गई। श्री गुरु ग्रंथ साहिब को पालकी में सुशोभित कर फूलों की वर्षा के साथ सुखासन पर विराजमान किया गया। गुरु ग्रंथ साहिब से हुक्मनामा लिया गया और सरबत दा भला की अरदास की गई। गुरु की संगत में कड़ा प्रसाद व लंगर बरताया गया।
पांच ककार यानि क शब्द से शुरू पांच चीजें :
मुख्य ग्रंथी करतार सिंह ने बताया कि गुरु सिख मर्यादा अनुसार केश, कड़ा, कंगा, कृपाण और कछैरा धारण करने का आदेश दशमेश पिता श्री गुरु गोविंद सिंह ने दिया था जोकि सब गुर सिखों के लिए अनिवार्य है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक सिख के लिए अमृतपान करना जरूरी है। अमृतपान किए बगैर कोई भी गुरु का सच्चा सिपाही नहीं बन सकता। उन्होंने अमृत छकने वाले सभी लोगों से गुरु साहिब के बताए रास्ते पर चलने का आह्वान किया। गुरुद्वारा सिंह सभा भूना के प्रधान हरजीत सिंह मल्ही ने बताया कि एक विशेष पात्र में जल व पताशो को घोल कर खंडे बाटे दी पौहल तैयार की जाती है, जिसे अमृत कहते हैं। अमृत तैयार करते समय पंच प्यारों की ओर से पांच वाणियों का पाठ किया जाता है और उन्हीं के माध्यम से अमृत अभिलाखियों को अमृतपान करवाया जाता है। इसके साथ पांच ककार धारण करवाए जाते हैं। अमृतपान के बाद अमृतधारी लोगों की दिनचर्या बदल जाती है। उन्हें प्रतिदिन अल सुबह उठकर प्रतिदिन पांच वाणियों का पाठ करना होता है और गुरु साहिब की ओर से बताई गए शिक्षाओं पर अमल करना होता है। पंच ककार दी रहत दृढ़ रखना, तंबाकू शराब नशा आदि से दूर रहना, किसी की निंदा-चुगली व द्वेष नहीं रखना, सभी काम श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की ताब्या गुरुवाणी अनुसार करने व सिख धर्म के साथ अन्य धर्मों का भी आदर करने के लिए कहा जाता है।