[ad_1]
{“_id”:”675f2e0c501435f9ec039a95″,”slug”:”we-put-country-first-fatehabad-news-c-127-1-ftb1001-126464-2024-12-16″,”type”:”story”,”status”:”publish”,”title_hn”:”Fatehabad News: कर्नल ने कहा था- जिनको परिवार की फिक्र है वे घर चले जाएं, हमने देश को ऊपर रखा”,”category”:{“title”:”City & states”,”title_hn”:”शहर और राज्य”,”slug”:”city-and-states”}}
फतेहाबाद के गुलाब चंद कंबोज।
राजेश मेहूवाला
फतेहाबाद। भारत-पाकिस्तान के बीच हुए 1971 के युद्ध को 53 वर्ष बीत चुके हैं। इसके बावजूद इस युद्ध में हिस्सा लेने वाले योद्धा पराक्रम, शौर्य, साहस और राष्ट्रभक्ति के उन पलों को अब तक नहीं भूल पाए हैं। जब इस युद्ध के बारे में बात करते हैं तो उनकी आंखों के सामने उस समय की घटनाएं जीवंत हो जाती हैं।
विजय दिवस बांग्लादेश की स्वतंत्रता और पाकिस्तान के दमनकारी शासन से मुक्ति के उत्सव का प्रतीक है। इस युद्ध में पाकिस्तानी सेना ने भारतीय सेना और बांग्लादेश की मुक्ति वाहिनी के सामने आत्मसमर्पण किया था। परिणामस्वरूप 1971 में बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आया था। उस युद्ध का हिस्सा रहे रिटायर्ड सैनिकों ने उस समय के युद्ध की परिस्थितियों, चुनौतियों और सैनिकों के पराक्रम की यादें साझा कीं।
युद्ध में जब गया तब बेटी 3 दिन की थी लौटा तो पैरों पर चलने लगी थी
इस युद्ध में शामिल रहे गांव मेहूवाला निवासी 81 वर्षीय रामकुमार राठौड़ ने बताया कि वे भारतीय सेना में 1964 में भर्ती हुए थे। वे सैनिक रॉयल इंडियन आर्मी सर्विस कोर में हवलदार के पद पर तैनात थे। पिता गणपत राठौड़ भी भारतीय सेना में रहे हैं। उनका काम राशन, हथियार, गाेला बारूद और अन्य जरूरत का सामान सैनिकों तक पहुंचाना था। राठौड़ ने दिमाग पर जोर डालते हुए कहा कि उन्हें याद है कि युद्ध शुरू होने के बाद कर्नल ने सैनिकों को कहा था कि जिसको अपने परिवार या रिश्तेदारों की फिक्र है वह अपने घर जा सकता है और जिसको देश के लिए लड़ाई लड़नी वह यहां रुक सकता है। 1971 का युद्ध शुरू होने के कुछ दिन पहले घर आया था। उस समय मेरी बेटी मात्र 3 दिन की थी। उसके बाद युद्ध शुरू हो गया। युद्ध शुरू होने बाद करीब 18 महीनों के बाद घर लौटा तो वह तब अपने पैरों पर चलनी लगी थी। युद्ध में उनके पास जो बंदूक थी उससे एक समय में मात्र एक ही गोली दागी जाती थी। परंतु आज के सैनिक आधुनिक हथियारों से लैस हैं। अपनी 32 वर्ष के देश सेवा में उन्हें कुल 12 पदक प्राप्त हुए। 1971 की युद्ध में शामिल होने पर तत्कालीन राष्ट्रपति रामास्वामी वेंकटरमन ने 1 अक्तूबर 1987 में सम्मानित किया गया था।
पाकिस्तानी सैनिक से छीना पदक यादगार के तौर पर है मौजूद
सेना सेवानिवृत्त गुलाब चंद कंबोज ने बताया कि वह भारतीय सेना में 21 अगस्त 1964 में भर्ती हुए थे। उनका काम हथियारों की देखरेख करना था। वर्ष 1965 में हुए युद्ध में उनका प्रशिक्षण भी पूरा नहीं हो पाया था। जिसके कारण 1965 के युद्ध में शामिल होने का अवसर प्राप्त नहीं हो सका। साल 1971 के युद्ध में वह राजस्थान में लोंगेवाला चौकी से करीब दो किलोमीटर दूर तैनात था। 3 दिसंबर 1971 युद्ध शुरू होने की रात को 1 बजकर 5 मिनट पर करीब 1000 हजार सैनिक राजस्थान के पोखरण से उदयपुर जा रहे थे। उस समय पाकिस्तान ने 16 टैंकों के साथ हमला कर दिया था। पंजाब की रेजिमेंट ने पाकिस्तान की सेना का डटकर मुकाबले करते हुए एक रात उन्हें रोके रखा था। उस दौरान बीएसएफ के सैनिकों ने उनको पाकिस्तान के द्वारा किए गए हमले की जानकारी दी थी। भारतीय वीरों ने उस युद्ध में अपने शौर्य से पाकिस्तान की सेना के छक्के छुटा दिए और 16 टैंक अपने कब्जे में ले लिए। उस दौरान मैंने पाकिस्तान के एक सैनिक से रक्षा पदक छीना जो कि आज भी उसके पास है। युद्ध के दौरान मैं 4 माह बाद घर लौटा था। 31 अगस्त 1988 को भारतीय सेना से सेवानिवृत्त हुआ था।
[ad_2]