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Chandigarh: PU सीनेट और सिंडिकेट भंग, सीएम मान ने किया विरोध, बोले- फैसले के खिलाफ कोर्ट जाएंगे Chandigarh News Updates

Chandigarh: PU सीनेट और सिंडिकेट भंग, सीएम मान ने किया विरोध, बोले- फैसले के खिलाफ कोर्ट जाएंगे Chandigarh News Updates

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पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ की 59 साल पुरानी चुनाव प्रणाली अब इतिहास बन गई है। यूनिवर्सिटी की सर्वोच्च नीति निर्धारण संस्था सीनेट और सिंडिकेट को पूरी तरह भंग कर दिया गया है। अब इन दोनों संस्थाओं के सदस्य सरकार और कुलपति की ओर से नामित (नॉमिनेटेड) किए जाएंगे। इस बड़े बदलाव को केंद्र सरकार ने पंजाब यूनिवर्सिटी एक्ट, 1947 में संशोधन कर लागू किया है।

केंद्र सरकार के इस फैसले पर पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने ऐतराज जताया है। मुख्यमंत्री भगवंत मान ने सीनेट भंग करने के फैसले का विरोध किया है। उन्होंने कहा कि यह असंवैधानिक फैसला है जिसके खिलाफ हम कोर्ट जाएंगे। कानूनी विशेषज्ञों की राय ले रहे हैं।

बता दें कि पहले यूनिवर्सिटी की सीनेट में 90 सदस्य होते थे लेकिन अब केवल 31 सदस्य रहेंगे। अब साधारण ग्रेजुएट का कोई प्रतिनिधित्व नहीं होगा। यानी ग्रेजुएट वोटर अब सीनेट चुनावों में भाग नहीं ले सकेंगे। सिंडिकेट में भी कोई चुनाव नहीं होगा। इसके सभी सदस्य कुलपति और चांसलर की ओर से नामित किए जाएंगे।

अब सांसद, चीफ सेक्रेटरी, हाईकोर्ट के जज भी होंगे सदस्य

नई व्यवस्था में चंडीगढ़ के सांसद, यूटी के मुख्य सचिव और शिक्षा सचिव को सीनेट व सिंडिकेट में जगह दी गई है। वहीं, पंजाब के मुख्यमंत्री, पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और पंजाब के शिक्षा मंत्री अब पदेन सदस्य होंगे। सभी नियुक्तियों के लिए चांसलर की मंजूरी अनिवार्य होगी। इन संस्थाओं का कार्यकाल चार वर्ष तय किया गया है।

2021 में बनी समिति की सिफारिशों पर लागू हुआ बदलाव

यह पूरी व्यवस्था 2021 में बनी विशेष समिति की सिफारिशों पर आधारित है। समिति का गठन तत्कालीन उपराष्ट्रपति और पीयू के चांसलर एम. वेंकैया नायडू ने किया था। इसमें पंजाब यूनिवर्सिटी, सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ पंजाब (बठिंडा) और गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी (अमृतसर) के कुलपति शामिल थे। समिति ने 2022 में रिपोर्ट दी जिसे अब नए चांसलर सीपी राधाकृष्णन ने मंजूरी दी है।

अब नहीं होगी यूनिवर्सिटी में राजनीति, केंद्र की पकड़ होगी मजबूत

इस फैसले के बाद यूनिवर्सिटी में चुनावी राजनीति का अध्याय समाप्त हो गया है। नई व्यवस्था से केंद्र सरकार की पकड़ मजबूत होगी, वहीं विश्वविद्यालय प्रशासन में योग्यता और दक्षता को प्राथमिकता दी जाएगी। हालांकि, ग्रेजुएट वोट खत्म होने से छात्रों और आम नागरिकों की भागीदारी घटेगी। 1966 के बाद यह पहला मौका है जब पंजाब यूनिवर्सिटी की गवर्निंग बॉडी को पूरी तरह नया रूप दिया गया है। इसे शैक्षणिक शासन की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।

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