Chandigarh: कीमो और रेडियोथेरेपी एक साथ देने से बढ़ा कैंसर के मरीजों का जीवनकाल, PGI के शोध में साबित


कैंसर

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– फोटो : प्रतीकात्मक

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चंडीगढ़ पीजीआई ने पित्ताशय की थैली के कैंसर के एडवांस स्टेज के मरीजों की सरवाइवल दर बढ़ाने में सफलता हासिल की है। संस्थान के विशेषज्ञों ने पित्ताशय की थैली के कैंसर से जूझ रहे 88 मरीजों पर इलाज की तकनीक में बदलाव कर यह कामयाबी पाई है। कीमो और रेडियोथेरेपी एक साथ देने से मरीजों की सरवाइवल दर में 15 से 20 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। बता दें कि जो मरीज पहले 8 से 10 महीने तक ही जी पाते थे वे अब 15 से 18 महीने तक जी रहे हैं। इससे जहां एक तरफ इलाज में एक नई उपलब्धि हासिल हुई है, वहीं उन मरीजों को आशा की एक किरण मिली है।

पीजीआई के रेडियोथेरेपी और ओंकोलॉजी व टेरटरी कैंसर सेंटर के प्रमुख व शोध के प्रमुख अन्वेषक प्रो. राकेश कपूर ने बताया कि इस कैंसर के मरीजों में शुरुआती दौर में मर्ज का पता लगाना बेहद मुश्किल होता है क्योंकि लक्षण एडवांस स्टेज में सामने आते हैं। ऐसे में जिन मरीजों की शुरुआती दौर में सर्जरी नहीं हो पाती वे एडवांस स्टेज में पहुंच जाते हैं। इसके बाद उन्हें कीमो दिया जाता था जिससे कैंसर वाले ट्यूमर को बढ़ने से रोकने में ज्यादा सफलता नहीं मिल पाती थी। ऐसे में वे मरीज 8 से 10 महीने तक ही जीवित रह पाते हैं लेकिन शोध में इलाज की तकनीक में किए गए बदलाव से बेहतर परिणाम सामने आए। इस शोध को रेडिएशन ओंकोलॉजी जरनल में प्रकाशित किया गया है।

कीमो और रेडिएशन को मिलाया तो आश्चर्यजनक परिणाम आया

प्रो. राकेश कपूर ने बताया कि पित्ताशय की थैली के कैंसर के 88 मरीजों को दो वर्गों में बांटकर शोध किया गया। इसमें एक वर्ग को सिर्फ कीमोथेरेपी दी गई जबकि दूसरे वर्ग में शामिल मरीजों को रेडिएशन और कीमो एक साथ दी गई। इस तकनीक को पेलिएटिव कीमोरेडिएशन थेरेपी कहा जाता है। इस तकनीक के बाद उन मरीजों में पाया गया कि कैंसर की कोशिकाएं तेजी से बढ़ने के बजाय धीमी रफ्तार से बढ़ रही हैं। यानि संयुक्त तकनीक से मिले इलाज ने कैंसर की रफ्तार कम कर दी जबकि दूसरे वर्ग के मरीजों में कोशिका वृद्धि पर धीमी गति से काबू मिल रहा था। ऐसे में इस वर्ग में शामिल मरीज 8 से 10 महीने तक ही जीवित रह पाए जबकि संयुक्त तकनीक वाले वर्ग के मरीजों को जीवनकाल 15 से 18 महीने तक पहुंच गया।

पित्ताशय की थैली का कैंसर इसलिए गंभीर

पित्ताशय की थैली में कैंसर कोशिकाओं की असामान्य वृद्धि को पित्त का कैंसर या पित्ताशय का कैंसर कहा जाता है। पित्त के कैंसर की पहचान कर पाना काफी मुश्किल होता है। पित्ताशय की थैली के कैंसर का अधिकांश मामले में पता देर से चलता है, जब तक कैंसर की पहचान की जाती है तब तक स्थिति काफी खराब हो चुकी होती है इसलिए इसके मरीजों की सरवाइवल दर 8 से 10 महीने तक होती है।

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