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पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट
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याचिकाकर्ता की ओर से सात साल पहले हमला करने व आईटी एक्ट सहित अन्य प्रावधानों में दर्ज एफआईआर की जांच पूरी न होने के मामले में एसपी को अदालत में गलत तथ्य देना और एसएसपी को हलफनामा दाखिल करना भारी पड़ गया। हाईकोर्ट ने इस मामले में एसएसपी, एसपी व जांच अधिकारी को स्पष्टीकरण देने का आदेश दिया है। साथ ही इस मामले को लेकर डीजीपी से भी जवाब मांगा है।
इस मामले में आरोपी याचिकाकर्ता गुलशन कुमार ने एफआईआर रद्द करने की मांग की थी। 5 अगस्त, 2024 को हाईकोर्ट ने इस मामले में चंडीगढ़ के एसपी को हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया था। जब मामला सुनवाई के लिए पहुंचा तो एसएसपी के स्थान पर एसपी केतन बंसल ने हलफनामा दाखिल किया गया। इस मामले में 7 साल में भी जांच पूरी न होने का कारण बताया गया कि शिकायतकर्ता से बार-बार संपर्क करने का प्रयास किया गया, लेकिन वह जांच में शामिल होने के लिए नहीं आया।
हाईकोर्ट ने इस पर कड़ा रुख अपनाते हुए पूछा कि जब एसएसपी को हलफनामा दाखिल करने के लिए कहा गया था तो उन्होंने कदम पीछे क्यों खींचे। जो एसपी का हलफनामा है उसके अनुसार शिकायतकर्ता कई बार संपर्क करने के बाद भी जांच में शामिल नहीं हुआ। हालांकि केस डायरी के अवलोकन से पता चलता है कि वर्ष 2020 में केवल एक बार शिकायतकर्ता को जांच में शामिल होने के लिए सूचित किया गया था।
एफआईआर 17 नवंबर, 2017 की है। सात साल बीत गए और जांच लंबित है। जो तथ्य बताए गए हैंं वे गलत हैं और रिकॉर्ड के विपरीत हैं। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने हरियाणा में सतर्कता विभाग के ओएसडी को बुलाया और केस डायरी को सील करके सुरक्षित रखने का निर्देश दिया। इसके बाद चंडीगढ़ के डीजीपी को पुलिस द्वारा की जा रही जांच की निगरानी में एसएसपी, एसपी व जांच अधिकारी की जिम्मेदारियों को लेकर हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है। साथ ही एसएसपी, एसपी व जांच अधिकारी को स्पष्टीकरण के रूप में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है।
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Chandigarh: एफआईआर में सात साल से जांच लंबित; गलत तथ्य देकर एसपी फंसे, डीजीपी से जवाब तलब