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अंबाला। सरकार से करोड़ों रुपये फंड लेने के बावजूद विकास कार्य लंबित हैं। इन विकास कार्याें और खर्चे की जानकारी लेने के लिए जब मंगलवार सुबह पूर्व गृहमंत्री अनिल विज नगर परिषद पहुंचे तो अधिकारी कोई संतुष्ट जवाब नहीं दे पाए। वे खर्च से संबंधित कोई सूची नहीं दिखा सके।
पूर्व मंत्री के गुस्से से बचने के लिए नगर परिषद के अधिकारियों ने खानापूर्ति के नाम पर एक आधी-अधूरी सूची थमा दी। इसमें न तो विकास कार्यों की सही जानकारी थी और न ही सरकारी फंड का जिक्र। कितना पैसा खर्च हुआ और कब-कब और किस-किस कार्य पर लगा इसकी तक जानकारी नहीं थी। सूची देखते हुए पूर्व गृहमंत्री को गुस्सा आ गया और उन्होंने लिस्ट को जमीन पर पटक दिया। चेतावनी देते हुए अधिकारियों को तीन दिन का समय दिया कि वो अपने खातों और सूची को सही कर लें, अन्यथा परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहें।
खर्च का नहीं दिया ब्योरा
पूर्व गृहमंत्री ने अधिकारियों से जवाब तलब करते हुए कहा कि उन्होंने छावनी की जनता को सुविधाएं देने और उनकी परेशानियों को दूर करने के लिए सैकड़ों विकास कार्यों के लिए फंड दिया, जिससे कि गली, सड़कें और नालियों का निर्माण हो सके लेकिन यह फंड कहां खर्च हुआ, इसकी कोई सूची नगर परिषद ने नहीं बनाई। सिर्फ और सिर्फ एक सूची हाथ में थमा दी कि ये विकास कार्य हुए हैं। जबकि इनमें से भी अभी कई लंबित पड़े हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि जब पूर्व गृहमंत्री ने फंड दिलाया तो वो पैसा कहां गया और इससे कौनसे दूसरे विकास कार्य पूरे करवाए गए।
विज बोले- गेट पर लगा दो ताला
पूर्व गृहमंत्री ने रोष जताते हुए नप अधिकारियों से कहा कि अगर वो लोगों को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं करा सकते तो क्यों न गेट पर ताला लगा दें, जिससे कि लोगों पर टैक्स का बोझ कम हो सके। लोग नगर परिषद कार्यालय आकर धक्के खाते हैं और उनके काम नहीं होते। उन्हें दूसरों से जानकारी मिलती है कि धर्मशाला सहित अन्य निर्माण पूरा हो गया है और वो कब उद्घाटन करने आ रहे हैं जबकि इसकी जानकारी नप अधिकारियों को उन्हें देनी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा।
अभी 457 दुकानें जांच के दायरे में
वहीं सरकार की मालिकाना हक की योजना पर भी पूर्व गृहमंत्री ने नप अधिकारियों की खिंचाई की। जब उन्होंने मालिकान हक से संबंधित सूची देखी तो उन्हें गुस्सा आ गया। इसमें 457 दुकानों को अभी जांच के दायरे में दिखाया था। यानी न तो अभी इन दुकानों के दस्तावेज तैयार हो पाए और न ही कोई आगामी कार्रवाई। जब उन्होंने तहबाजारी के तहत दुकानों के मालिकाना हक को लेकर पूछताछ की तो विभागीय अधिकारी चुप्पी साध गए क्योंकि अभी नगर परिषद की किराए की दुकानों का ही मालिकाना हक लटका है, ऐसे में तहबाजारी की दुकानों का नंबर आना काफी मुश्किल लग रहा है।
वर्जन
कुछ निर्धारित विकास कार्यों के लिए फंड लिया जाता है, लेकिन न तो यह विकास कार्य पूरे हुए और फंड कहां गया, इसकी भी जानकारी नहीं है। मालिकाना हक को लेकर भी काफी धीमी कार्रवाई चल रही है जबकि इसके लिए पुरजोर प्रयास किया गया था। इसलिए नप अधिकारियों को तीन दिन का समय दिया गया है ताकि वो अपना रिकॉर्ड दुरुस्त कर लें, अन्यथा उन्हें सख्त परिणाम भुगतने पड़ेंगे।
अनिल विज, पूर्व गृहमंत्री ।
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