{“_id”:”67b8ca26fc10a3570d039554″,”slug”:”free-health-check-up-camp-on-mahashivratri-festival-ambala-news-c-36-1-amb1002-138007-2025-02-22″,”type”:”story”,”status”:”publish”,”title_hn”:”Ambala News: महाशिवरात्रि पर्व पर निशुल्क स्वास्थ्य जांच शिविर”,”category”:{“title”:”City & states”,”title_hn”:”शहर और राज्य”,”slug”:”city-and-states”}}
अंबाला शहर में रामनगर स्थित गद्दी टिल्ला श्री गुरु गोरखनाथ मठ। स्वयं
अंबाला सिटी। महाशिवरात्रि पर्व पर जगाधरी गेट के समीप रामनगर स्थित गद्दी टिल्ला श्री गुरु गोरखनाथ मठ में 26 व 27 फरवरी बुधवार व वीरवार को निशुल्क स्वास्थ्य जांच शिविर लगाया जाएगा। इस दौरान मरीजों को दवाइयां भी वितरित की जाएंगी। शिविर में डॉक्टर ओपी आर्य, डॉक्टर विकास नागी मरीजों की आंखों, शुगर व अन्य बीमारियों की जांच करेंगे। शिविर सुबह 10 से दोपहर 1 बजे तक लगेगा। ये जानकारी सेवादार सूरज ने दी है।
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गद्दी टिल्ला श्री गुरु गोरक्षनाथजी की महत्ता
भारत एक धर्म प्रधान देश है यहां कई प्रकार के साधू रहते हैं। अधिकांश साधू योगियों की श्रेणी में आते हैं। इन योगियों में जो हठ योगी को मानते हैं वह नाथपंथी कहलाते हैं। इन योगियों को कई नामों से पुकारा जाता है। कुछ लोग इनकी नाथ पंथी, गोरखनाथ पंथी, कनफटा योगी अथवा दर्शनी योगी कहकर पुकारते हैं। प्राचीन काल से ही श्री टिल्ला शिवपुरी मठ भारत में योगियों का परम पावन तीर्थस्थल माना जाता रहा है।
भारत में नाथ पंथियों के अनेकों मठ में से श्री टिल्ला शिवपुरी मठ का स्थान सर्वोत्तम माना जाता है। कहा जाता है कि पूर्वकाल में जब मां सती का दूसरे जन्म में भगवान शिवजी से विवाह हुआ था तो शिव की बारात इसी श्री टिल्ला शिवपुरी मठ से चली थी। इसी प्रकार वर्तमान पाकिस्तान में स्थित झेलम नमक जिले के पहाड़ी क्षेत्र में स्थित श्री टिल्ला शिवपुरी मठ का ऐतिहासिक एवं पौराणिक महत्व भी अद्वितीय है।
पाकिस्तान से अंबाला आकर टिल्ले की गद्दी की थी स्थापित
पीर कला नाथ जी सन 1920 में टिल्ले की गद्दी पर आसीन हुए। उन्हीं के समय में वर्ष 1947 में भारत व पाकिस्तान का विभाजन हुआ। भारत आने के पश्चात उन्होंने अंबाला शहर की सब्जी मंडी के निकट एक भवन वर्ष 1951 में खरीदा जोकि टिल्ले की गद्दी का स्थान माना जाता है।
अंबाला के ऐतिहासिक मंदिर में फिर से महाशिवरात्रि व गुरू पूर्णिमा का त्योहार बड़े धूम-धाम से मनाया जाने लगा। 26 मई 1952 को पीरकला नाथ जी ब्रह्मलीन हो गए और उन्हें हरिद्वार में जल समाधि दे दी गई। उसके पश्चात पीर समुद्रनाथ फिर पीर श्रद्धानाथ ने अपनी जिम्मेदारियां निभाईं। इनके ब्रह्मलीन होने के बाद पीर पारसनाथ को गद्दीनशीन किया गया।