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अंबाला। अखाड़ों में होने वाली कुश्ती में पहलवान दांवपेच लगाकर अपने प्रतिद्वंदी को धूल चटा देते हैं। लेकिन कई बार यही पहलवान डाइट पूरी नहीं होने के कारण पहलवानी छोड़ जाते हैं। कुश्ती सीखने के साथ-साथ पहलवानों को डाइट के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है।
इन पहलवानों को सरकारी की ओर से भी कोई मदद नहीं मिलती। इससे कि पहलवान अपनी डाइट पर ध्यान दे सकें। पुराने पहलवानों का कहना है कि इस ओर खेल विभाग को विशेष ध्यान देने की जरूरत है। साथ ही प्रतियोगिताओं में भी इनाम की राशि बढ़ानी चाहिए। दांवपेच के साथ डाइट के लिए भी संघर्ष : पहलवान रॉक्सी ने बताया कि उसने 2010 में पहलवानी शुरू की थी और अभी भी वह कुश्ती के दांवपेंच सीख रहा है। पिता पुजारी है और वहीं डाइट का इंतजाम करते हैं, कई बार स्थिति ऐसी होती है कि डाइट पूरी नहीं होती है। सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिलती है। वहीं पहले के दौर में कई दंगल हुआ करते थे।
इन दंगल में पहलवान कुश्ती लड़ते थे और अपनी डाइट का खर्चा निकाल लेते थे। जिला में वह 2012 में चैंपियन रहा है, राज्य स्तर पर दो से तीन पदक आ चुके हैं, 2016 में मेवात में इंटर कुमार अखाड़ा रहा। वहीं मेवात में 2017 में आयोजित खेलमहाकुंभ में ब्रांच मेडल जीता, 2019 में जिला कुमार, 2019 में सोनीपत खरखौंदा में स्कूल स्टेट खेल में दो कैटेगरी में कुश्ती की।
जिसमें फ्री स्टाइल में दूसरा स्थान, ग्रीको में तीसरा स्थान हासिल किया और अभी वह हनुमान अखाड़ा में कुश्ती के दांवपेंच सीख रहा है। विभाग को पहलवानी की ईनाम राशि को भी बढ़ाना चाहिए ताकि खिलाड़ी अपनी डाइट को पूरा कर सके।ी
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