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संजय कुमार का कॉलम: इंडिया गठबंधन में सामंजस्य कम और मतभेद अधिक हैं Politics & News

संजय कुमार का कॉलम:  इंडिया गठबंधन में सामंजस्य कम और मतभेद अधिक हैं Politics & News

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3 घंटे पहले

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संजय कुमार, प्रोफेसर व राजनीतिक टिप्पणीकार

2024 के लोकसभा चुनाव में अच्छे प्रदर्शन के बाद इंडिया गठबंधन सहयोगियों का जो हौसला बुलंद हुआ था, वो अब फीका पड़ता दिख रहा है। राज्यों के चुनावों में पराजय के बाद इंडिया के सहयोगी दल अब एक-दूसरे पर हार का ठीकरा फोड़ रहे हैं।

हरियाणा में हार को शुरू में अकेला झटका माना गया था, क्योंकि उसके साथ ही जम्मू-कश्मीर और झारखंड में इस गठबंधन के सहयोगी-दलों ने जीत भी दर्ज की थी। लेकिन महाराष्ट्र में करारी हार ने इंडिया गठबंधन के मनोबल को बड़ा झटका दिया। रही-सही कसर दिल्ली में मिली हार ने पूरी कर दी।

अगर इन तमाम पराजयों के लिए गठबंधन सहयोगियों का जमीन पर खराब प्रदर्शन जिम्मेदार होता तो कोई बात न थी। लेकिन हरियाणा में कांग्रेस की हार बहुत मामूली अंतर से हुई थी, जिसमें भाजपा और कांग्रेस के वोट शेयर में 1 प्रतिशत से भी कम का अंतर था। दिल्ली में भी आप और भाजपा के बीच वोट शेयर का अंतर मात्र 3 प्रतिशत था।

हरियाणा में कांग्रेस ने अपनी हार के लिए आप को जिम्मेदार ठहराया था और दिल्ली में आप के नेताओं को लगता है उनकी हार का कारण कांग्रेस रही है। गठबंधन-सहयोगियों के बीच इस तरह की बढ़ती खटास के कारण इंडिया में समन्वय और सौहार्द्र बनाना दूर की कौड़ी लगने लगा है।

बिहार में इसी साल अक्टूबर में चुनाव होने वाले हैं। यहां इंडिया गठबंधन सहयोगियों के बीच कोई सीधा टकराव नहीं है। लेकिन हाल के चुनावों में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन को देखते हुए शायद राजद कांग्रेस को ज्यादा सीटें देने के लिए तैयार न हो। बिहार में राजद प्रमुख गठबंधन सहयोगी है।

जम्मू-कश्मीर, झारखंड और महाराष्ट्र में कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत ही खराब था और दिल्ली में तो वह लगातार तीसरी बार अपना खाता भी नहीं खोल पाई। इसके चलते राजद कांग्रेस के साथ तगड़ी बार्गेनिंग करने के मूड में आ सकती है और हो सकता है कांग्रेस इसे पसंद न करे। बिहार में सीट-शेयरिंग का फॉर्मूला बनाना आसान नहीं होगा।

फिर अगले साल की शुरुआत में दक्षिण और पूर्व के पांच राज्यों में चुनाव होंगे : तमिलनाडु, केरल, पुडुचेरी, पश्चिम बंगाल और असम। असम और पुडुचेरी में कांग्रेस अपने इंडिया गठबंधन सहयोगियों की तुलना में प्रमुख खिलाड़ी है, इसलिए वहां सीट-बंटवारे में दिक्कत नहीं होगी।

तमिलनाडु में द्रमुक कांग्रेस का प्रमुख गठबंधन सहयोगी है। पिछले कई चुनावों से वहां पर द्रमुक और कांग्रेस के बीच सीट-शेयरिंग का फॉर्मूला स्थिर है, लेकिन अब द्रमुक भी कांग्रेस को समायोजित करने के लिए तैयार नहीं हो सकता है। बहरहाल, असली चुनौती बंगाल और केरल में होगी।

केरल में कांग्रेस और लेफ्ट हमेशा से ही एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ते आए हैं, लेकिन वो तब की बात है, जब वहां भाजपा की मौजूदगी नहीं थी। लोकसभा चुनावों में भाजपा ने केरल में अपना दखल बढ़ाया था।

वह कांग्रेस और लेफ्ट दोनों को चुनौती देने की हरसम्भव कोशिश करेगी। कांग्रेस और लेफ्ट की आपसी मुठभेड़ भाजपा के सामने उन दोनों की ताकत को थोड़ा कमजोर करेगी। अगर भाजपा ने केरल में बेहतर प्रदर्शन किया तो कांग्रेस-लेफ्ट में दोषारोपण शुरू हो जाएगा।

पश्चिम बंगाल में भाजपा टीएमसी के खिलाफ पूरी ताकत झोंक देगी। लोकसभा चुनाव में इंडिया के दलों ने लगभग सभी राज्यों में गठबंधन किया था, लेकिन पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और टीएमसी के बीच गठबंधन नहीं हो सका था।

2021 के विधानसभा चुनाव में भी टीएमसी अपने दम पर अकेले लड़ी थी, जबकि कांग्रेस ने लेफ्ट का साथ दिया था। तब टीएमसी ने 213 सीटें जीती थीं, लेकिन भाजपा ने भी 38% वोट शेयर के साथ 77 सीटें जीतने में सफलता पाई थी।

वैसे तो बंगाल में चुनाव में अभी एक साल से ज्यादा का समय बाकी है, लेकिन कोई नहीं कह सकता कि इस बार भी टीएमसी अपनी जमीन मजबूत बनाए रखेगी या फिर उसमें कुछ कमी आएगी। आखिरकार हमने देखा है कि बहुत लोकप्रिय सरकारें भी अगले चुनाव में सत्ता से बाहर हो जाती हैं। ताजा उदाहरण दिल्ली का है।

टीएमसी कांग्रेस के साथ गठबंधन करने के लिए तैयार नहीं हो सकती और लेफ्ट के साथ गठबंधन के बारे में तो वह सोच भी नहीं सकती। यानी पश्चिम बंगाल में एक बार फिर इंडिया गठबंधन के दो सदस्य एक-दूसरे के खिलाफ मैदान में होंगे। विपक्षी दलों को इंडिया गठबंधन के हितों को ध्यान में रखने के लिए कुछ त्याग करने की जरूरत है। लेकिन क्या वे ऐसा करने के लिए तैयार हैं? हाल-फिलहाल तो ऐसा नहीं लगता।

विपक्षी दलों को इंडिया गठबंधन के व्यापक हितों को ध्यान में रखने के लिए कुछ त्याग करने की जरूरत है। लेकिन क्या वे ऐसा करने के लिए तैयार हैं? हाल-फिलहाल की घटनाएं तो संकेत देती हैं कि वे इसके लिए तैयार नहीं हैं। (ये लेखक के अपने विचार हैं।)

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