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- Derek O’Brien’s Column Today There Are Mainly Three Types Of Media Platforms Active
डेरेक ओ ब्रायन लेखक सांसद और राज्यसभा में टीएमसी के नेता हैं
जब डोनाल्ड ट्रम्प राष्ट्रपति पद की शपथ ले रहे थे तो उन्होंने एक अप्रत्याशित व्यक्ति को अपनी जीत के लिए धन्यवाद कहा। वे कोई टेक्नोक्रेट, कैम्पेन मैनेजर या डोनर नहीं थे। इसके बजाय वह न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में प्रथम वर्ष का छात्र था।
उनका बेटा, बैरन ट्रम्प। जब 18 वर्षीय बैरन ने अपनी सीट से उठकर हाथ हिलाया, तो अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति ने बताया कि यह बैरन का विचार था कि वे स्वतंत्र प्लेटफॉर्म्स पर इंटरव्यू दें। बताया जाता है कि चुनावों के दौरान ट्रम्प ने कम से कम 14 पॉडकास्ट और इंटरव्यू में हिस्सा लिया था।
किसी में उन्होंने मंगल ग्रह पर जीवन के बारे में बात की, किसी में खेलों पर और किसी में चुनावी धोखाधड़ी पर। कॉमेडियन, पूर्व फुटबॉलर, वैज्ञानिक, यहां तक कि अतीत में ड्रग-एडिक्ट रह चुके लोगों ने भी ट्रम्प का इंटरव्यू लिया। उनकी लोकप्रियता ही इकलौता मापदंड थी। बैरन की रणनीति काम आई। उनके पिता ने युवाओं के वोट 36 अंकों से जीत लिए। क्या भारतीय राजनेताओं के लिए भी इसमें कोई सबक है?
पिछले हफ्ते संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा हुई। विपक्ष के कई सदस्यों ने मजबूत तर्क दिए। सरकार की नीतियों को उजागर करने के लिए इस स्तम्भकार ने दस प्रतिष्ठित फिल्मों का हवाला दिया, जो भारत की ओर से अधिकृत ऑस्कर प्रविष्टियां थीं।
एक मुख्यधारा के अंग्रेजी दैनिक और सभी बंगाली अखबारों ने इस भाषण को रिपोर्ट किया। लेकिन किसी अन्य अखबार में एक लाइन भी नहीं आई। टीवी पर पांच सेकंड भी नहीं। तो फिर विपक्ष का एक राजनेता क्या करे? सबसे पहले तो वह शिकायतें करना बंद करें। और फिर, समाधान खोजे।
तो पहला कदम यह है कि संसद में भाषण देने के बाद (जो संसद टीवी द्वारा लाइव प्रसारित किया जाता है) वीडियो को अपने सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर अपलोड करें, और इसे कई वॉट्सएप ग्रुप्स के साथ साझा करें।
पिछले हफ्ते जो हुआ, वह सुखद आश्चर्य था! मलयालम के एक यूट्यूब चैनल ने भाषण को उठाकर अपलोड किया। उसे 48,000 व्यूज़ मिले। फिर एक बंगाली चैनल ने उसे साझा किया। उसे भी 40,000 व्यूज। एक स्वतंत्र अंग्रेजी प्लेटफॉर्म को उस पर 30,000 व्यूज मिले। आज हम न्यूज-कंटेंट की खपत को मोटे तौर पर तीन प्रकार के मीडिया प्लेटफॉर्म्स में बांट सकते हैं :
1. परम्परागत मीडिया : इसमें अखबार और टीवी चैनल शामिल हैं। इन्हें ‘मुख्यधारा मीडिया’ भी कहा जाता है, लेकिन ‘लेगसी मीडिया’ शब्द अधिक उपयुक्त है। अंतरराष्ट्रीय रुझान बताते हैं कि यह सेगमेंट अभी भी लोगों की धारणाओं को प्रभावित करता है, लेकिन मौजूदा दौर में ‘अपॉइंटमेंट टेलीविजन’ सबसे अधिक प्रभावित हुआ है।
इस वाक्यांश का उपयोग एक ‘निर्धारित समय’ पर टीवी पर एक विशिष्ट कार्यक्रम देखने के लिए किया जाता है। तो क्या टीवी समाचार का दौर अब खत्म हो रहा है? एक बात तय है। 2025 में समाचार-वितरण के लिए फोन वही अहमियत रखता है, जो 2005 में टीवी की थी।
अखबारों में छपे शब्द अभी भी विश्वसनीयता के मानकों पर ऊपर हैं। लेकिन आज अखबारों के लिए चुनौती यह है कि वे अपनी मजबूत ब्रांड इक्विटी का लाभ उठाकर पाठकों/दर्शकों को कई डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर जोड़ें। जो ऐसा कर रहे हैं, वे ही अगले दशक में मीडिया-जगत पर हावी होंगे।
2. इन्फ्लुएंसर्स : ये वे हैं, जिन्होंने तगड़ी रिसर्च और प्रोडक्शन टीमों के दम पर और अपनी व्यक्तिगत ब्रांड-इक्विटी के बूते सोशल और डिजिटल मीडिया पर बड़ी फॉलोइंग बनाई है। इन्फ्लुएंसर्स ऐसी सामग्री साझा करते हैं, जो उनकी व्यक्तिगत ब्रांड छवि के साथ मेल खाती है। अक्सर इन इन्फ्लुएंसर्स की मजबूत व्यक्तिगत राय (पक्षपातपूर्ण?) होती है और वे अपने दर्शक-आधार को खुश करने के लिए कंटेंट बनाते हैं।
3. अनब्रांडेड कंटेंट-प्लेटफॉर्म्स : आज इसी के आधार पर सोशल और डिजिटल मीडिया चलता है। अकसर हम इन अनब्रांडेड प्लेटफॉर्म्स के पीछे के लोगों को नहीं जानते। फंडिंग की कमी के कारण ये डिजिटल विज्ञापनों के माध्यम से अपनी आय अर्जित करते हैं। उनके लिए हर क्लिक और हर व्यू मायने रखता है।
ऐसे में आश्चर्य नहीं कि ये प्लेटफॉर्म्स सबसे आकर्षक सामग्री को क्यूरेट करते हैं। ऐसे प्लेटफॉर्म्स पर संसद में एक लो-प्रोफाइल सांसद द्वारा दिए गए भाषण को भी उतना ही कंटेंट-स्पेस और एयर-टाइम मिल सकता है, जितना कि अखिलेश यादव, राहुल गांधी या अभिषेक बनर्जी को। लेगसी मीडिया और इन्फ्लुएंसर्स दोनों को इससे सावधान रहना होगा। क्योंकि आज कंटेंट ही किंग है।
परम्परागत मीडिया वह नहीं कर सकता, जो इन्फ्लुएंसर्स कर रहे हैं। इन्फ्लुएंसर्स वह नहीं कर सकते, जो अनब्रांडेड प्लेटफॉर्म्स कर रहे हैं। जो दल और राजनेता इन तीनों की ताकत का उपयोग कर सकते हैं, वे आम-धारणा की लड़ाई जीतेंगे। (ये लेखक के अपने विचार हैं। इस लेख की सहायक शोधकर्ता वर्णिका मिश्रा हैं।)
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डेरेक ओ ब्रायन का कॉलम: आज मुख्यत: तीन तरह के मीडिया प्लेटफॉर्म सक्रिय हैं