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- Rashmi Bansal’s Column Is A Person Who Lives According To His Own Will Happier?
रश्मि बंसल, लेखिका और स्पीकर
बराती, बैंड-बाजा, नाच-गाना, खाना-शाना… शादी-ब्याह में ही तो मौके होते हैं दूर के रिश्तेदारों से मिलने के। लेकिन, नई पीढ़ी घर की चार दीवारों वाले तमाशे देखकर तंग आ चुकी है। ये रोज की किट-किट, मिनी महाभारत जो जमाने से चली आ रही है। एक घर में रहकर या तो झगड़ा, या अलग-अलग कमरों में चुपचाप ‘एक साथ’ जिंदगी जो आप बिता रहे हैं, ये नाटक और नहीं चलेगा।
ना जी, अब वो कह रहे हैं, हमें शादी करनी ही नहीं। आपने शादी करके कौन-सा तीर मार लिया? आप कहेंगे, बच्चों के खातिर तो शादी करनी पड़ती है। जवाब मिलेगा, बच्चे? बिलकुल नहीं चाहिए। आबादी वैसे ही बहुत ज्यादा है। इस सड़े-गले माहौल में क्यूं हम एक और जीवन को पैदा करके दु:खी करें?
लेकिन शादियां हो तो रही हैं ना? पिछले हफ्ते ही कुकु बुआ के बेटे की बेटी की शादी हुई। वैसे उनकी बड़ी बेटी 34 की हो गई है और उसने तो इस झमेले में पढ़ने से इनकार कर दिया है। एमबीए के बाद बड़ी कम्पनी में जॉब लग गया। अच्छे-खासे पैसे कमाने लगी। अब भला मां-बाप की बातें क्यूं सुनेगी?
वैसे पिछले साल जॉब भी छोड़ दी, अपना कुछ कर रही है। अगर पूछो, बेटा कौन-सा बिजनेस चला रही हो, फट से जवाब आता है, अंकल बिजनेस नहीं, आई एम रनिंग अ स्टार्टअप। मतलब, वेबसाइट? जैसे बंसल ब्रदर्स ने शुरू की थी? नो नो अंकल, वो भाई थोड़े ही थे, ओनली काम में पार्टनर्स। और अब तो वो भी नहीं।
उन्होंने अपनी कम्पनी किसी अमरीकी को बेचकर काफी ज्यादा पैसे कमा लिए। आप सोचेंगे, ये कौन-सा बिजनेस है, जिसमें इतना प्रॉफिट होता है। ना ना अंकल, वो तो लॉस में ही चल रही थी, लेकिन उसका वैल्युएशन बहुत बड़ा था। ये बात हमारे बिलकुल पल्ले ना पड़ी। और कम्पनी बेचकर उन पैसों का उन्होंने किया क्या? कुछ भी कर सकते हैं अंकल। अपनी मर्जी का कुछ भी।
तो असली बात ये है- मेरी मर्जी। काम में, घर पे, मुझे और किसी की सुननी ना पड़े। अगर ऐसे विचार हैं तो कतई शादी न करें। क्यूंकि वहां कहासुनी तो होगी। और बच्चे? वो आपको सुनाएंगे भी और आपकी सुनेंगे नहीं।
क्या अपनी, और सिर्फ अपनी मर्जी से जीने वाला इंसान ज्यादा खुश है? मुश्किल है कहना। लेकिन इंसान को किसी के साथ की जरूरत तो है ना, बेटे? अंकल, मैं अकेली नहीं… फोन में स्वाइप करते हुए बोलती है, सी माय बेबी। ओह हो हो, योर डॉगी।
यही नया ट्रेंड है। कुत्ता हो या बिल्ली, उसे आप पालो, एक बच्चे की तरह। पेट-पैरेंट अपने इस बेबी को दुनिया की हर खुशी देने को तैयार हैं। अब वो बात अलग है कि कुछ लोगों को ये पसंद नहीं। इसलिए पेट-लवर्स और पेट-हेटर्स के बीच झगड़े चलते रहते हैं।
तो लौट-फिरकर यह पता चलता है कि कुछ भी करो, दूसरों से थोड़ी अनबन, थोड़ा अपनापन तो होने ही वाला है। घर में नहीं तो ऑफिस में, बाजार में, बस में। तो क्या करें? हिमालय पर जाकर एक गुफा में बैठ जाएं? चलो कुम्भ, पुण्य कमाकर मोक्ष पा लें? वो आप जरूर करिए, लेकिन दुनियादारी से भी ना डरिए। जिंदगी के मेले में भी ढूंढो मन की शांति, वही है असली आध्यात्मिक क्रांति। (ये लेखिका के अपने विचार हैं)
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रश्मि बंसल का कॉलम: क्या अपनी मर्जी से जीने वाला इंसान ज्यादा खुश है?