[ad_1]
- Hindi News
- Opinion
- N. Raghuraman’s Column Respect For The Person Should Be Excellent, Not The Profession
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
यह दृश्य अधिकांश लोगों के लिए बहुत परिचित होगा। दरवाजे की घंटी बजती है। मां रविवार के स्वादिष्ट लंच के लिए आटा गूंधने में व्यस्त हैं। वे अपने बालों को हाथ के पिछले हिस्से से पीछे करती हैं और 15 वर्षीय बेटे से कहती हैं, “देखना बेटा, कौन आया है।’ बेटा मुंह बनाता है, वीडियो गेम को पॉज करता है और दरवाजा खोलता है।
बाहर से आवाज आती है, “कचरा।’ बच्चा तुरंत कहता है, “मम्मी, कचरे वाला आया है, कचरा दे दो।’ रसोई से आवाज आती है, “मैं आटा गूंध रही हूं बेटा। तुम प्लीज इसे बाहर रख दो और उससे पूछो कि आज वह इतनी जल्दी क्यों आया है?’ बेटा रिमोट को सोफे पर उछाल देता है, रसोई में आता है, प्लेटफॉर्म के नीचे सिंक की ओर झुकता है, बकेट उठाता है, और मुख्य दरवाजे पर पहुंचता है।
वह पाता है कि कचरा उठाने आया व्यक्ति किसी अन्य फ्लैट मालिक से बात कर रहा है, जो इस बात पर नाराज हो रहा है कि हाउसकीपिंग स्टाफ सीढ़ियों की सफाई ठीक से क्यों नहीं कर रहा है। उनकी लंबी बातचीत से चिढ़कर बेटा जोर से कहता है, “कचरा ले लो।’ जवाब आता है, “हां जी, आप रख दो, मैं ले लेता हूं।’
लड़का बकेट को दरवाजे के किनारे रखकर दरवाजा बंद कर देता है। फिर से रसोई से आवाज आती है, “इससे पहले कि तुम फिर वीडियो गेम में लग जाओ, जाकर हाथ धो लो।’ लड़का मुंह बनाता है, लेकिन वह मना नहीं कर सकता।
वह बाथरूम के बजाय रसोई के सिंक में जाकर हाथ धोता है और मां की साड़ी के पल्लू में हाथ पोंछने की कोशिश करता है। मां फिर से चिल्लाती हैं, “साबुन से धोओ और मेरी साड़ी को खराब मत करो।’ लड़का अपना वीडियो गेम फिर से शुरू करने के लिए भाग जाता है।
लेकिन हममें से कितने लोगों ने अपने बच्चों को यह सिखाया है कि जो आदमी हमारे घर पर रोजाना कूड़ा उठाने आता है, वह “कचरे वाला’ नहीं है? उसका कोई नाम है- राजू या रामू या कुछ और। मैं हमेशा सोचता हूं कि जब हमारे बच्चे इस तरह से बोलते हैं तो हममें से कई लोग उन्हें क्यों नहीं समझाते? बच्चों को ऐसी स्थिति में कहना चाहिए कि “मम्मी, राजेश अंकल (या उनका जो भी वास्तविक नाम हो) कूड़ा लेने आए हैं।’
ऐसा इसलिए है, क्योंकि वे दुनिया भर के उन हजारों अनौपचारिक कचरा संग्राहकों में से एक हैं, जिनकी अकसर अनदेखी कर दी जाती है। औपचारिक कचरा प्रबंधन प्रणाली के बाहर काम करने के कारण उनके साथ दुर्व्यवहार भी किया जाता है। लेकिन ये कर्मचारी हर शहर के रीसाइक्लिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के एक महत्वपूर्ण हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं।
आपने चाहे उन्हें देखा हो या नहीं, लेकिन उन्होंने शायद हमारे द्वारा उत्पन्न कुछ कचरे को रीसाइकिल करने में मदद ही की है। जब मैं इन लोगों के काम को दूर से देखता हूं तो उनके काम का वर्णन करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली हमारी भाषा पर विचार करना शुरू कर देता हूं।
मुझे लगता है कि वे उन बोतलों, डिब्बों और कचरे के “उद्धारक’ हैं, जिन्हें हमारा समाज कुछ रीसाइक्लिंग केंद्रों में फेंक आता है। क्या आपने कभी इन संग्राहकों को किसी रीसाइक्लिंग केंद्र में सहकर्मियों के रूप में एकत्रित होते देखा है?
उनकी पहली बातचीत हमेशा किसी ऐसे साथी कर्मचारी के बारे में होती है, जो पिछले दिन कचरा इकट्ठा करते समय बीमार पड़ गया था और वे यह पता लगाने की कोशिश करते हैं कि उसके साथ नगरपालिका के डॉक्टर के पास कौन गया था।
इस रविवार को, आइए हम अपनी बिल्डिंग के कचरा संग्राहक का नाम पूछें और उसे उस नाम से पुकारें। फिर देखें कि वह सीढ़ियों और हमारे घर के सामने की सफाई कैसे करता है। उसका काम बेदाग होगा।
ऐसा इसलिए है क्योंकि जब कोई व्यक्ति हमारे मुंह से अपना नाम सुनता है, तो यह उसके कानों को अच्छा लगता है और उसका दिल खुशी से ज्यादा रक्त पंप करने लगता है, जिससे उसका काम आसान और कम थकाऊ हो जाता है।
फंडा यह है कि हमारे समाज को आगे बढ़कर ऐसे लोगों के काम का सम्मान करना चाहिए, जो कि हमारे लिए इतना महत्वपूर्ण है।
[ad_2]
एन. रघुरामन का कॉलम:पेशे की नहीं इंसान की कद्र लाजवाब हो