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- Rajdeep Sardesai’s Column Will There Be A Good Coordination Between Modi And Trump This Time?
राजदीप सरदेसाई वरिष्ठ पत्रकार
सितम्बर 2019 में टेक्सास में आयोजित एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘अबकी बार ट्रम्प सरकार’ का नारा लगाया था। कुछ महीने बाद फरवरी 2020 में अहमदाबाद के ‘नमस्ते ट्रम्प’ नामक विशाल कार्यक्रम मोदी और ट्रम्प एक बार फिर मिले।
अति-उत्साह कहें या गलत आकलन, लेकिन जब ट्रम्प अप्रत्याशित रूप से 2020 का चुनाव हार गए, तब भारतीय नेतृत्व ने इस सबके कारण खुद को असहज स्थिति में पाया। लेकिन अब जब ट्रम्प और भी आश्चर्यजनक रूप से लौट आए हैं, तो क्या मोदी और ट्रम्प के बीच वही पुरानी केमिस्ट्री फिर से जगेगी?
मोदी ने हाल ही में ट्रम्प से टेलीफोन पर हुई बातचीत के बाद उन्हें अपना ‘डियर फ्रेंड’ कहा। कभी-कभी इन दोनों नेताओं की शैली आश्चर्यजनक रूप से समान लगती है। दोनों ही मजबूत राजनेता हैं, जिनके पास लोकलुभावन भाषण-कला और प्राइम टाइम शोमैनशिप का हुनर है।
दोनों ही आकर्षक नारों और साउंडबाइट्स की ताकत को समझते हैं। ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ अगर ट्रम्प का नारा है तो मोदी ने भी 2047 तक भारत को विकसित बनाने के लिए ‘अमृत काल’ का वादा किया है। दोनों उदारवादी आम-सहमति पर दक्षिणपंथी राष्ट्रवाद की जीत का प्रतिनिधित्व करते हैं।
यदि मोदी ने लुटियंस के कुलीनों पर प्रहार किया है, तो ट्रम्प ने कैपिटल हिल प्रतिष्ठान को निशाना बनाया है। ट्रम्प की इमिग्रैंट्स-विरोधी लफ्फाजी भारत में अंदरूनी शत्रुओं का हवाला देने वाली विचारधारा से मेल खाती है। लेकिन मोदी और ट्रम्प में अंतर भी कम नहीं हैं। उनकी राजनीतिक-ट्रैजेक्टरी एक-दूसरे से बहुत अलग है। मोदी आधी सदी से राजनीति में हैं।
वे संघ के प्रचारक से धीरे-धीरे राजनीति में आगे बढ़े। इसके विपरीत, ट्रम्प एक सफल कारोबारी थे। वे राजनीति में तेजी से उभरे और उन्होंने मौजूदा हायरेर्की का कोई मुलाहिजा नहीं किया। मोदी भाजपा के भीतर से उठे थे, जबकि ट्रम्प रिपब्लिकन पार्टी में एक ‘आउटसाइडर’ के रूप में आए।
मोदी ने खुद को हिंदुत्व के प्रतीक के रूप में पेश किया, जबकि ट्रम्प ने डील-मेकर के रूप में। मोदी विचारधारा से प्रेरित हैं, ट्रम्प व्यावसायिक हितों से। दोनों नेताओं ने अपने इर्द-गिर्द एक पर्सनैलिटी-कल्ट बुना है, लेकिन जहां मोदी अभी भी उनकी पार्टी की संरचना का हिस्सा हैं, वहीं ट्रम्प राजनीतिक मशीनरी को अस्त-व्यस्त कर देने पर आमादा रहते हैं।

अराजकता की यह प्रवृत्ति ही ट्रम्प को इतना खतरनाक रूप से अप्रत्याशित बना देती है। सत्ता में अपने एक दशक के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने समय-समय पर सत्ता की राजनीति के पारंपरिक नियमों को बदलने की कोशिश की है, कभी-कभी चौंकाने वाले निर्णय भी लिए हैं, लेकिन इसके बावजूद वे राजनीतिक मर्यादा की लक्ष्मण-रेखा के भीतर रहे हैं।
इसके विपरीत, ट्रम्प बदस्तूर राजनीतिक व्यवहार के मानदंडों से बाहर कदम रखने की कोशिश करते हैं। अपने कार्यकाल के एक हफ्ते के भीतर ही उन्होंने कई तीखे बयान और कार्यकारी आदेश जारी करके विरोधियों को चुनौती के स्वर में ललकारा है।
चाहे इमिग्रैंट्स को निर्वासित करने का मामला हो या मैक्सिको की खाड़ी का नाम बदलने का- ट्रम्प जानबूझकर राजनीतिक माहौल को गरमाना चाहते हैं। उनकी शैली में राजनीतिक शुचिता के लिए कोई जगह नहीं है। जबकि मोदी व्यापक स्वीकार्यता के लिए ज्यादा उत्सुक हैं।
गौर करें कि कैसे मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान के माध्यम से गांधी या लौह पुरुष के रूप में सरदार पटेल की विरासत को अपनाने की कोशिश की है। इसकी तुलना में ट्रम्प का अपने देश के अतीत से लगभग कोई जुड़ाव नजर नहीं आता। और यही बात हमें अपने मूल प्रश्न पर लौटाकर ले आती है कि इस बार ट्रम्प और मोदी में कैसे निभेगी?
भारतीय नेतृत्व की इच्छा राजनीतिक मंच पर खुद को स्थापित करने की है, वहीं ट्रम्प सबको धमकाने के लिए कमर कसे हुए हैं। यह आसान रिश्ता साबित नहीं होगा, क्योंकि अमेरिका वैश्विक महाशक्ति है, जबकि भारत अभी भी दुनिया में अधिक मान्यता के लिए संघर्ष कर रहा है। ट्रम्प के लिए भारत एक बड़ा बाजार जरूर हो सकता है, लेकिन पूरी तरह से ‘अमेरिका फर्स्ट’ ढांचे के भीतर। वहीं मोदी को उम्मीद होगी कि अमेरिका हमें एक भरोसेमंद रणनीतिक सहयोगी के रूप में देखे।
हो सकता है कि मोदी ट्रम्प को याद दिलाना चाहें कि उन्होंने 2019 में उनका समर्थन किया था। लेकिन ट्रम्प किसी स्वघोषित रियलिटी शो में बिग बॉस की तरह हैं और इस शो में उनके लिए केवल अपनी आवाज मायने रखती है। भारत सहित पूरी दुनिया अनिश्चितता से देख रही है कि इस राजनीतिक सोप ओपेरा का अगला एपिसोड क्या होगा।
कूटनीतिक शिष्टाचार या विनम्रता में ट्रम्प की रुचि नहीं। वे चीजों को लेन-देन के दृष्टिकोण से देखते हैं और अच्छे शब्दों या अतीत की मित्रता से प्रभावित नहीं होते। वे हमारे साथ जो भी सौदा करेंगे, पूरी तरह से अपनी शर्तों पर करेंगे। (ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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राजदीप सरदेसाई का कॉलम: क्या इस बार मोदी और ट्रम्प के बीच अच्छा तालमेल बनेगा?