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क्या है हलाला और इद्दत? उत्तराखंड में UCC लागू होने के बाद इन प्रथाओं को बंद किया गया – India TV Hindi Politics & News

क्या है हलाला और इद्दत? उत्तराखंड में UCC लागू होने के बाद इन प्रथाओं को बंद किया गया – India TV Hindi Politics & News

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Image Source : PEXELS
हलाला और इद्दत प्रथा बंद हो जाएंगी

नई दिल्ली: उत्तराखंड में आज से यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू हो गया है, जिसके बाद कई नियमों में बदलाव हो गया है और कई प्रथाएं पूरी तरह बंद हो गई हैं। बता दें कि उत्तराखंड देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने वाला पहला राज्य बन गया है। गौरतलब है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड शादी, तलाक, मेंटिनेंस, संपत्ति का अधिकार, गोद लेने और उत्तराधिकार जैसे क्षेत्रों को कवर करता है। उत्तराखंड में UCC लागू होने से हलाला और इद्दत जैसी प्रथा बंद हो गई हैं। 

क्या है हलाला?

इस्लाम में हलाला एक प्रथा है, जिसमें अगर किसी महिला को उसका शौहर (पति) तलाक दे देता है और उसके बाद महिला, उसी शौहर से दोबारा निकाह (शादी) करना चाहे तो महिला को किसी अन्य व्यक्ति से निकाह करना होगा और फिर उससे भी तलाक लेना होगा। इसके बाद ही महिला का अपने पूर्व शौहर से दोबारा निकाह हो सकता है। इसी प्रथा को हलाला कहते हैं।

इद्दत प्रथा क्या है?

इद्दत प्रथा के तहत एक महिला अपने शौहर की मौत या उससे तलाक के बाद कुछ समय तक किसी अन्य पुरुष के साथ निकाह नहीं कर सकती। इद्दत की अवधि अलग-अलग परिस्थितियों में अलग-अलग होती है। अगर कोई प्रेगनेंट महिला विधवा होती है या तलाक लेती है तो उसकी इद्दत का समय तब तक रहता है, जब तक वह बच्चे को जन्म ना दे दे। इद्दत के दौरान महिलाओं का दूसरे पुरुषों से पर्दा करना भी जरूरी है। इस दौरान महिला के सजने और संवरने पर भी पाबंदी होती है।

उत्तराखंड में UCC लागू होने से क्या-क्या और बदल जाएगा?

  • यूसीसी लागू होने के बाद शादी का रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य हो जाएगा।
  • किसी भी धर्म, जाति या संप्रदाय के लिए तलाक का एक समान कानून होगा।
  • हर धर्म और जाति की लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल होगी।
  • सभी धर्मों में बच्चा गोद लेने का अधिकार मिलेगा, दूसरे धर्म का बच्चा गोद नहीं ले सकते।
  • उत्तराखंड में हलाला और इद्दत जैसी प्रथा बंद हो जाएगी।
  • एक पति और पत्नी के जीवित होने पर दूसरा विवाह करना पूरी तरह से प्रतिबंधित होगा।
  • जायदाद में लड़के और लड़कियों की बराबरी की हिस्सेदारी होगी।
  • लिव-इन रिलेशनशिप के लिए रजिस्ट्रेशन करवाना जरूरी है।
  • लिव-इन रिलेशनशिप वालों की उम्र 18 और 21 साल से कम है तो माता-पिता की सहमति लेनी होगी।
  • लिव इन से पैदा होने वाले बच्चे को शादी शुदा जोड़े के बच्चे की तरह अधिकार मिलेगा।
  • यूनिफॉर्म सिविल कोड से शेड्यूल ट्राइब को बाहर रखा गया है।

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