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एन. रघुरामन का कॉलम:आपकी ‘मैं कौन हूं’ वाली कहानी क्या है? Politics & News

एन. रघुरामन का कॉलम:आपकी ‘मैं कौन हूं’ वाली कहानी क्या है? Politics & News

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3 दिन पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

30 जुलाई 2024 की बात है। सुबह के 4 बज रहे होंगे। जागने में अभी वक्त था। बाहर पूरी रात तेज बारिश होती रही। 57 साल की उम्र में कोई भी सुबह-सुबह जल्दी बिस्तर से नहीं उठना चाहता, खासकर जब चारों तरफ पानी हो। लेकिन फोन की घंटी से उनकी नींद खुल गई।

उन्होंने जो सुना, उस पर भरोसा नहीं हुआ। दूसरी ओर से आवाज थी, ‘बीते कुछ घंटों में दो भूस्खलन ने मुंडक्कई और चूरालमाला को तबाह कर दिया है’ यह उसके पड़ोस में ही था। मुप्पाइनाड पंचायत में आंगनवाड़ी शिक्षिका एनएस विजयाकुमारी किसी बच्चे की तरह बिस्तर से कूदीं और चंद मिनटों में ही मूसलाधार बारिश में स्कूटर चलाकर चूरालमाला के लिए निकल पड़ीं।

वह अपने उस आस-पड़ोस की खोज में वहां सुबह 5 बजे के आसपास पहुंची, जहां अब सिर्फ कीचड़ और मलबा था। उन्होंने अधिकारियों को बताया कि वह प्रशिक्षित नागरिक सुरक्षा वॉलंटियर रही हैं। अगले तीन घंटों तक उन्होंने 17 शव निकालने में मदद की।

इस तरह वह वायनाड की आपदा के बाद शवों को ढूंढने और उन्हें लाने-ले जाने में मदद करने वाली अकेली महिला सिविल वॉलेंटियर बन गईं। अगले दो दिनों तक, विजयाकुमारी ने मेप्पादी में बनाए अस्थायी मुर्दाघर में नीलांबुर से लाए शवों और क्षत-विक्षत अंगों को खोजने-रखने में अथक परिश्रम किया। उन्होंने अपनी भावनाओं को काबू में रखा क्योंकि वह जानती थीं कि अपनों को खोजते हुए आने वाली महिलाओं को उनकी मौजूदगी से मदद मिलेगी।

उनमें यह दृढ़ता उस दिन अचानक नहीं आई। 37 साल पहले 20 साल की उम्र में भी उनमें यह दृढ़ता थी, जब पुलिस फोर्स में उनके चयन की सूचना वाला पत्र उनके पिता ने फाड़ दिया था। नहीं तो वह आंगनवाड़ी के बजाय पुलिस फोर्स में कहीं होती। उस दिन उनके सपने दम तोड़ सकते थे, लेकिन उन विचित्र परिस्थितियों में भी उन्होंने अपना रास्ता खोज लिया।

यूनिफॉर्म पहनकर, अपने गांव वालों की मदद करने का उनका सपना शायद उस दिन चकनाचूर हो गया होता, लेकिन उन्होंने पिछले हफ्ते वायनाड की भीषण त्रासदी के बाद शवों को पता लगाने में मदद करके कहीं न कहीं मदद के अपने सपने को जीया।

‘मैं कौन हूं’ की अपनी कहानी कहने के लिए आपको थोड़ी बहादुरी चाहिए क्योंकि ये पारदर्शी होनी चाहिए। उन कहानियों में आपकी गलतियों, गर्व नहीं कर पाने वाले क्षणों या आपके या परिवार की कुछ गलतियों को छिपाते नहीं हैं, उस कहानी का खुलापन गहरा और स्थायी विश्वास बनाता है।

इसमें डर भी है क्योंकि हमें चिंता होती है कि कहीं हमारे दोषों और खामियों का खुलासा करने से दूसरे हमें कमतर न आकने लगें। हमारे महान लीडर्स के बारे में मेरा शोध कहता है कि इसका विपरीत सच है। एक साक्षात्कारकर्ता ने कहा कि ‘अच्छे लीडर का सही टेस्ट यही है कि वे मन से स्वीकार करते हैं कि वे परफेक्ट नहीं है। यही उन्हें वास्तविक, भरोसेमंद और मेरी स्पष्टवादिता के योग्य बनाता है।’

आपकी ‘मैं कौन हूं’ वाली कहानी से लोग आपसे न सिर्फ एक लीडर की तरह बल्कि एक इंसान की तरह जुड़ते हैं। ये आपकी प्रमाणिकता को व्यक्त करती है। ये कहानियां आपके चरित्र, आपकी उम्मीदें, आपके विश्वासों और आपके सिद्धांतों को बहुत वास्तविक, मानवीय तरीके से परत दर परत पेश करके महीनों-सालों तक चलाती रह सकती हैं।

लोगों को खुद के लिए फैसला करने की जरूरत है – ना कि अपने पिता या किसी और से किसी तमगे की जरूरत है, पर इसके लिए खुद की एक कहानी से सामना होना चाहिए। इसी तरह आप दिल और विश्वास जीतते हैं, सुनी-सुनाई बातों और अफवाहों को हाशिए पर रखते हैं, मुखौटे और झूठ को दूर करते हैं, और अपनी वास्तविकता की गहराई से, अपने शब्दों में, वास्तविक रूप को प्रकट करते हैं।

फंडा यह है कि अगर आपकी ‘मैं कौन हूं’ वाली कहानी कहती है कि आप अच्छे इंसान हैं, तो सुनने वालों को लगता है कि आप भी उन्हीं का हिस्सा हैं, और वे अपने विश्वासपात्र दल में आपको स्थायी रूप से स्वीकार कर लेते हैं।

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