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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
कुछ महीने पहले, जब वे शिवाजी विश्वविद्यालय, कोल्हापुर द्वारा आयोजित परीक्षा के लिए केंद्र पर पहुंचे, तो बाकी छात्रों के लिए कौतूहल और सराहना का विषय बन गए। कुछ ने उनसे पूछ ही लिया कि वे परीक्षा देने आए हैं या अपने पोते के लिए सीट रोकने।
लेकिन जब उन्होंने बताया कि वे खुद परीक्षा देने आए हैं, तो मोबाइलधारी युवा पीढ़ी उनकी तस्वीरें खींचने लगी। कुछ ने इस घटनाक्रम पर तुरंत टिप्पणी की, तो कुछ ने सोशल मीडिया पर। कुछ ने शायद यह भी सोचा होगा कि आज जब पढ़ाई के बाद नौकरी खोजना इतना मुश्किल है, ऐसे में इन बुजुर्ग को नौकरी कैसे मिलेगी।
ऐसा इसलिए क्योंकि वसंत सिंघन 60 साल बाद किसी परीक्षा हॉल में पहुंचे थे और उनकी उम्र लगभग 80 वर्ष है। परीक्षा के बाद, जहां सारे छात्र पेपर की चर्चा में जुट गए, वहीं वसंत ने सीधे घर जाकर अगली परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी। वे वक्त बर्बाद नहीं करना चाहते थे। उनके समर्पण से उनकी पोती सिद्धी भी प्रेरणा लेती है, जो इसी विश्वविद्यालय में बीएससी की छात्रा थी।
वसंत ने सीखना कभी बंद नहीं किया। उनका जन्म 3 जून 1945 को हुआ था और इस किसान से चौथी कक्षा तक मोडी लिपि में पढ़ाई की। फिर 1962 में मैट्रिक पास की। इसके बाद बॉम्बे (अब मुंबई) में तीन साल का रेडियो मैकेनिक कोर्स किया। कुछ नौकरियां कीं लेकिन बात नहीं बनी।
फिर वे कोल्हापुर के बांबवडे गांव लौट आए और रेडियो की दुकान शुरू की। तब रेडियो की काफी मांग होती थी। दुकान में बैठे-बैठे ही उन्होंने मोडी लिपि और इस प्राचीन भाषा के बारे में काफी पढ़ा। आज वसंत इसके विशेषज्ञ माने जाते हैं। पिछले दशक में उनकी इस लिपि में दिलचस्पी बढ़ी और उन्होंने राज्यभर में इसकी वर्कशॉप देना शुरू किया।
इससे उन्हें मोडी लिपि की औपचारिक शिक्षा पाने की इच्छा जागी और बीते शुक्रवार उन्होंने अपनी एमए डिग्री हासिल की। वहीं उनकी पोती को उसकी बीएससी डिग्री मिली। अब वसंत, इतिहास और मोडी लिपि से जुड़े विषय में पीएचडी करना चाहते हैं।
मैंने ऐसी कई कहानियां सुनी हैं। जैसे एक मां-बेटे ने एक ही मंच से अपनी डिग्रियां हासिल कीं। जुलाई 2024 में, बैंगलोर के इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी से रंजनी निरंजन (48) को पीएचडी और उनके 22 वर्षीय बेटे राघव एसएन को इंटीग्रेटेड एमटेक की डिग्री मिली।
वहीं 2023 में, 46 वर्षीय कल्याणी राकेचा ने नीट-पीजी परीक्षा उत्तीर्ण कर, 817वीं रैंक पाई। जब वे पढ़ाई के लिए कक्षा में पहुंची, तो कई छात्रों ने उन्हें प्रोफेसर समझ लिया। दिलचस्प यह है कि उस समय राकेचा की बेटी संस्कृति, प्रतिष्ठित केईएम हॉस्पिटल में एमबीबीएस प्रथम वर्ष में थी और उनका बेटा आईआईटी की तैयारी कर रहा था। ये दोनों ही प्रवेश परीक्षा की तैयारी में, तब कल्याणी के सहयोगी रहे।
लेकिन वसंत की कहानी इन सबसे बढ़कर है क्योंकि उन्होंने इस उम्र में पीएचडी की इच्छा जताई है। हर परिवार को ऐसा अवसर नहीं मिलता। आप सोशल मीडिया पर ऐसी तस्वीरें तलाशेंगे, जहां परिवार को साथ में डिग्री मिल रही हो, तो दुनियाभर में कुछ सौ तस्वीरें ही मिलेंगी।
जब कोई बुजुर्ग और युवा साथ पढ़ते हैं, तो बुजुर्ग न सिर्फ युवा पीढ़ी के शब्द सीखते हैं, बल्कि युवा भी बुजुर्गों से अनुशासन सीखते हैं और जीवन में बेहतर चीजें हासिल करने के लिए प्रेरित होते हैं।
फंडा यह है कि सीखना कभी खत्म नहीं होता। अगर जीवन सामान्य है और कुछ चुनौतीपूर्ण सीखने नहीं मिल रहा है, तो कोई कोर्स करके या नया कौशल हासिल करके, समाज की बेहतरी में योगदान दे सकते हैं।
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एन. रघुरामन का कॉलम: सीखने के लिए भी उम्र की कोई सीमा नहीं