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मिन्हाज मर्चेंट का कॉलम: विदेश में भारतीयों के प्रति नस्ली घृणा क्यों बढ़ रही है Politics & News

मिन्हाज मर्चेंट का कॉलम:  विदेश में भारतीयों के प्रति नस्ली घृणा क्यों बढ़ रही है Politics & News

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6 घंटे पहले

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मिन्हाज मर्चेंट लेखक, प्रकाशक और सम्पादक

सोशल मीडिया पर लॉस एंजेलेस एयरपोर्ट का एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें एक भारतीय-अमेरिकी परिवार के खिलाफ नस्लवादी टिप्पणी की जा रही थी। हाल के वर्षों में दुनिया में भारतीयों की विजिबिलिटी बढ़ी है। वे शीर्ष पदों पर पहुंचे हैं। लेकिन इसके साथ ही एक्स जैसे मंचों पर भारतीयों के प्रति अपमान, मजाक और नफरत की प्रवृत्ति भी बढ़ती दिख रही है। नस्ली-घृणा सिर्फ ऑनलाइन ही नहीं है।

न्यूज रिपोर्ट के अनुसार कनाडा के एक भारतवंशी ने बताया कि ब्रैम्प्टन के बस स्टॉप पर उन्हें इस बात की चिंता रहती है कि क्या ड्राइवर उनके लिए बस रोकेगा? वो कहते हैं कि बस ड्राइवर तभी रुकता है जब वहां कोई श्वेत व्यक्ति हो; अन्यथा वह बस चलाकर आगे बढ़ जाता है। जहां पश्चिम के देशों में यहूदी-विरोध और इस्लामोफोबिया के प्रति जीरो-टॉलरेंस पॉलिसी है, वहीं भारतीयों पर होने वाले हमलों- जिन्हें अब इंडोफोबिया कहा जाने लगा है- को दरकिनार कर दिया जाता है।

लिंक्डइन पर एक छात्रा ने लिखा कि पिछले कुछ हफ्तों में मैंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों, खासकर एक्स पर भारतीयों के खिलाफ नस्लवाद और भेदभाव में चिंताजनक वृद्धि देखी है। ये पोस्ट चुटकुलों के रूप में किए जाते हैं, जिनमें भारतीयों को गंदा या स्कैमर बताया जाता है।

हालांकि ऐसी गलत धारणाएं 2000 के दशक में ही चलन में आ गई थीं, लेकिन अब तो ये बहुत अधिक सामान्य हो गई हैं और इसने भारतीय समुदायों के प्रति शत्रुतापूर्ण वातावरण को बढ़ावा दिया है। अलबत्ता इसके लिए कुछ हद तक ‘एनआरआई’ (यानी ‘न्यूली रिच इंडियंस’) भी जिम्मेदार हैं।

अपनी विदेश-यात्राओं के दौरान वे यदा-कदा शिष्टाचार का परिचय नहीं देते, जोर-जोर से बातें करते हैं या एयरलाइन के कैबिन क्रू के प्रति बुरा व्यवहार करते दिखाई देते हैं। अमीर या सफल भारतीयों की नई नस्ल का अनियंत्रित व्यवहार सिर्फ व्यापारियों तक ही सीमित नहीं है। यह क्रिकेट के मैदान पर भी दिख रहा है।

भारत के स्टार बल्लेबाज विराट कोहली ने 19 वर्षीय ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज सैम कोंस्टास को जानबूझकर कंधे से ठोकर मारी। उन पर मैच फीस का 20% जुर्माना लगाया गया और एक डी-मेरिट अंक भी दिया गया।

कोहली ने हाल ही में यह भी कहा है कि वे अपनी पत्नी और बच्चों के साथ लंदन में बसना चाहते हैं। भारत के शीर्ष क्रिकेटरों में चली आई यह अधिकार-सम्पन्नता की भावना- जिसमें आईपीएल से मिली दौलत का भी योगदान है- उन्हें अपनी प्राथमिकताओं को देश के प्रति अपने कर्तव्य से ऊपर रखने की अनुमति देती है।

कोहली और रोहित शर्मा दोनों ने अतीत में निजी कारणों से टेस्ट मैचों में नहीं खेलने का निर्णय लिया है। उनके कारण उचित हो सकते हैं, लेकिन यह विशेषाधिकार और एनटाइटलमेंट को भी दर्शाता है।

जैसा कि अमित मजुमदार लिखते हैं : सम्भव है यह समाज में बढ़ रही एक बड़ी बीमारी के लक्षण हों। आज हम देखते हैं कि डिलीवरी एजेंटों और उबर ड्राइवरों के साथ सहानुभूति और करुणा का व्यवहार नहीं किया जाता है और अंतरराष्ट्रीय उड़ानों में भारतीय विवाद करते पाए जाते हैं। इतना ही नहीं, हम इसके बारे में बेपरवाह होकर इस पर गर्व भी करते हैं।

दुनिया में भारत के बढ़ते रसूख और उसकी आर्थिक ताकत भी विदेशियों के मन में ईर्ष्या और विद्वेष को जन्म देती है, जो इंडोफोबिक हमलों के रूप में व्यक्त होती है। 1960 और 1970 के दशक में बड़े पैमाने पर भारतीय-प्रवासी पश्चिम पहुंचे थे। उनमें से अधिकांश ने पेशेवर और आर्थिक रूप से अच्छा प्रदर्शन किया है। उनके बच्चे- जिनमें से कई पश्चिम के देशों में ही जन्मे हैं- खुद को दो राष्ट्रीयताओं के बीच फंसा पाते हैं। उन्हें अक्सर स्कूल या काम पर नस्लवाद का सामना करना पड़ता है।

खुद इंग्लैंड के पूर्व प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने एक साक्षात्कार में स्वीकार किया कि उन्हें स्कूल में नस्लवाद का सामना करना पड़ा था। सोशल मीडिया के बढ़ते चलन ने नस्लवादियों को अपनी नफरत का प्रदर्शन करने का मौका दिया है। वे अपने स्मार्टफोन पर

‘तीसरी दुनिया के भारतीयों’ के प्रति आक्रोश व्यक्त करते हैं। किसी ने नहीं सोचा था कि भारत एक गरीब ब्रिटिश उपनिवेश से दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। कई लोगों का मत है कि भारत जैसे गरीब देश की हिम्मत कैसे हुई कि वह दुनिया का नेतृत्व करने की आकांक्षा रखे।

चाहे क्रिकेटर हों या अमीर भारतीय, वे पश्चिम में ईर्ष्या का कारण बनते हैं। जब अमीर भारतीय किसी फ्लाइट या विदेशी मॉल में बुरा व्यवहार करते हैं, तो यही ईर्ष्या नस्ली फब्तियों में बदल जाती है। सोशल मीडिया इसे और बढ़ावा देता है।

  • जहां पश्चिम के देशों में यहूदी-विरोध और इस्लामोफोबिया के प्रति जीरो-टॉलरेंस पॉलिसी है, वहीं भारतीयों पर होने वाले हमलों- जिन्हें अब ‘इंडोफोबिया’ कहा जाने लगा है- को दरकिनार कर दिया जाता है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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