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1 घंटे पहले
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रश्मि बंसल लेखिका और स्पीकर
साल का पहला-दूसरा हफ्ता। वैसे तो दिन वही लेकिन एक अलग फीलिंग होती है। शायद इस साल कुछ अलग होगा, कुछ नया होगा। मैं मन लगा कर पढ़ाई करूंगी। मैं रोज जिम जाऊंगी। मैं सबके साथ हंसते-मुस्कराते हुए बात करूंगी। हां, नया साल यानी कि नई शुरुआत मगर…
चार दिन के बाद बस वहीं के वहीं पाते हैं हम अपने आप को। कुछ नहीं बदला। और बदलेगा भी कैसे? जब तन भारी, और मन भी। बदलने की चाह होते हुए अंदर से थके हुए, हताश। तो कुछ ऐसी बातें याद दिलाना चाहती हूं, जो आपके नए साल को सचमुच नया बनाएंगी।
मुंह केअंदर क्या जा रहा है : पुरानी कहावत है, जैसा अन्न, वैसा मन। इस प्रिंसिपल को हम काफी हद तक भूल चुके हैं। एक समय था जब घर में लोग ज्यादा और खाने को कम होता था। अब स्थिति उलट है। ऊपर से दस मिनट में मन को लुभाने वाले पकवान जोमैटो-स्विगी से हाजिर हैं। तो फिर इस साल अपने खाने पर जरा ध्यान दीजिए। इस साल ताजी से ताजी सब्जी खानी है। अपने हाथों से ककड़ी-गाजर-टमाटर टटोल कर, प्यार से तोल-मोलकर, झोले में डालनी है। सलाद- सब्जी-फ्रूट से पेट साफ, मन साफ। धीरे-धीरे धीरे, बीपी और शुगर की दवाइयां भी हाफ।
मुंह से बाहर निकल क्या रहा है : दुनिया की प्रॉब्लम आधी हो जाती, अगर हम ऐन वक्त पर चुप रहते। पति-पत्नी का झगड़ा हो या ऑफिस की पॉलीटिक्स। जो बात तैश में कह दी, बाद में उसका अफसोस होगा। क्योंकि वही चीज बेहतर तरीके से कही जा सकती है।
तो उन इमोशंस का क्या करें? : अंदर अगर आग सुलगेगी तो रूह को चोट पहुंचेगी। बाहर निकालिए, कलम के जरिए। कोरा कागज लीजिए, उसमें उड़ेल दीजिए अपने गम, अपनी शिकायत। अब वो बात कहना जरूरी नहीं जुबान से। ठंडे दिमाग से कह भी दी तो सुनेगा कोई ध्यान से। ये हुई ना बात!
अपने अंदर झांककर देखो : छोटा सा आईना उठाइए। उसमें नजर से नजर मिलाइए। 5 सेकंड, 10 सेकंड, 30 सेकंड, 1 मिनट। उन गहराइयों में क्या दिख रहा है? शायद आप एक मिनट भी अपने आप को देख नहीं पाए। या फिर रोना आ गया। उन गहराइयों में छिपा है एक नन्हा, जिसे ‘इनर चाइल्ड’ कहा जाता है। एक ऐसा बच्चा जिससे सालों से प्यार नहीं सिर्फ दुत्कार मिला। तो बस, आज से इस नन्ही-सी जान को आप कहेंगे – “मैं तुमसे बिल्कुल वैसे ही प्यार करता हूं जैसे तुम हो”। इन शब्दों के लिए आत्मा तरस रही है। जैसे हो तुम,वैसे सही हो। जिंदगी एक तोहफा है,उसे कुबूल करो।
आस-पास घुलो-मिलो : अकेलापन आज सब को काट रहा है, खासकर युवा पीढ़ी को। तो कॉलेज में लाते हैं अव्वल नंबर, मगर जब जॉब लगती है तो बेसिक कम्युनिकेशन नहीं आती। इसके लिए एक रामबाण, रोज चुनो एक इंसान। चाहे आप उसे जानते हों, या नहीं। दो-चार मिनट कुछ बात करो तो सही। आज मौसम काफी गर्म है, क्या दादीजी की तबीयत नरम है? हर कोई अपनी बात सुनाना चाहता है, तो खुश है जब सुननेवाला कोई आता है।
इसके आगे क्या : हर साल हम सोचते हैं कैसे जीएंगे, लेकिन एक दिन तो सब को जाना ही है। उस दिन के बारे में सोचना भी जरूरी है। कौन-सी ऐसी चीजें हैं जो कल पर टाल रहे हो… इस साल वो कर डालो। चाहे बचपन की सहेली से मिलने का मन हो या मैराथन दौड़ने का, अब और इंतजार नहीं।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)
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रश्मि बंसल का कॉलम: जिंदगी एक खूबसूरत तोहफा है, इसे कुबूल करो…