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- Navneet Gurjar’s Column Neither The Opposition Nor The Party Spokespersons Could Understand The Statement Of The Sangh Chief!
26 मिनट पहले

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नवनीत गुर्जर
भागवत यानी संघ प्रमुख मोहन भागवत। हफ्ते भर से उनकी कथा चल रही है। अखबारों में। टीवी पर। बहसों में। चर्चाओं में। हर तरफ। चारों दिशाओं में। विचार नहीं मिलते फिर भी तमाम विपक्षी भाई लोग, भागवत कथा के पक्ष में खुलकर आ गए हैं।
संघ के घोर विरोधी कहे जाने वाले मुस्लिम संघ भी कह रहे हैं कि हां, ये हर कहीं खुदाई, तोड़-फोड़ का काम बंद होना चाहिए। भागवत सही कह रहे हैं। बाकी दूसरे पक्ष के कई लोग, बेचारे भागवत जी को गरिया रहे हैं कि वे होते कौन हैं? कह रहे हैं कि वर्षों हमारे मंदिर तोड़े गए। मूर्तियां भंग की गईं। धर्मस्थल अपवित्र किए गए। तब ये भागवतजी कहां थे?
दरअसल, भागवत जी ने पिछले दिनों पुणे में कहा सिर्फ इतना था कि भाइयो! हर मस्जिद के नीचे शिवलिंग की खोज मत करो। यह भी कहा कि कुछ लोग अपनी नेतागीरी चमकाने के लिए ये सब करते फिरते हैं। अब यह तो नहीं कहा जा सकता कि उनका इशारा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ की तरफ रहा होगा, क्योंकि लगभग इसी तरह का बयान भागवत दो-ढाई साल पहले भी दे चुके हैं। तब इतना हल्ला नहीं हुआ था जितना अब हो रहा है। दरअसल, भागवत के बयान को न विपक्ष समझ पाया और न ही पक्ष के प्रवक्ता लोग!
भागवत के बयान का यह मतलब कतई नहीं है कि वे या उनका संघ अचानक उदारमना हो गया है। या वे हिंदुत्व या उग्र हिंदुत्व के शेर की सवारी छोड़ने जा रहे हैं। वे अच्छी तरह जानते हैं कि शेर की सवारी छोड़ी तो वही शेर उन्हें खा जाएगा।
भागवत दरअसल अपने लोगों को समझाना चाहते हैं कि हर गली-मोहल्ले में, हर मस्जिद या मीनार के नीचे शिवलिंग की खोज शुरू हो गई तो इससे एक तरह की अराजकता फैल सकती है। इस तरह की अराजकता संघ के उग्र व्यक्तित्व पर चढ़ी उदारता की परत को धो सकती है।

संघ की सहेली भाजपा की केंद्रीय सत्ता की छवि भी कुछ हद तक धूमिल हो सकती है। वे नहीं चाहते कि जो कुछ बांग्लादेश में हिंदुओं या अल्पसंख्यकों के साथ हो रहा है, वही सब हिंदुस्तान में भी अल्पसंख्यकों के साथ होने लगे।
विपक्ष समझ रहा है कि भागवत उनकी विचारधारा से मेल खा रहे हैं जबकि ऐसा नहीं है। दरअसल, विपक्ष सम्भल मामले से सहमत नहीं है और ऐसे समय में भागवत का बयान आया तो उसे लगा यह उसके लिए ब्राह्मी बूटी है। बस, लगे हुए हैं भागवत-भागवत रटने में।
वैसे भागवत के बयान को समझे बिना उनका विरोध करने वाले भी बहुतेरे हैं। साधु-संत तो विरोध कर ही रहे हैं… और भी कई लोग बदले सुर में विरोध कर रहे हैं। बदले सुर में इसलिए कि अब खुलकर बोलने वाले विश्व हिंदू परिषद या बजरंग दल तो ज्यादा लाइम लाइट में रहे नहीं!
स्वर्गीय अशोक सिंघल राम मंदिर का सपना लिए चल बसे, लेकिन उनके जीते जी यह सपना साकार हो नहीं सका। लेकिन उनके बाद विश्व हिंदू परिषद दुबलाती गई और अब कम ही दिखाई पड़ती है। यही बजरंग दल के साथ हुआ।
वह भी अब ज्यादा कहीं दिखाई नहीं पड़ता। ये होते तो खुलकर भागवत के सामने आते। यही वजह है कि साधु-संत ही खुलकर भागवत और उनके बयान का विरोध कर पा रहे हैं। बाकी ज्यादातर तो पूंछ दबाकर विरोध करने पर विवश हैं। आखिरकार, भागवत संघ प्रमुख हैं। उनका खुलकर विरोध कोई कैसे कर सकता है भला!
जहां तक भाजपा का सवाल है, संघ और भाजपा में भी अब वैसा पवित्र प्रेम नहीं रहा। पहले कभी था। पवित्र प्रेम से आशय राधा और कृष्ण की तरह का प्रेम। ‘कृष्ण के पांव में पड़ गए छाले, राधिका धूप में चली होगी।’ इसे कहते हैं पवित्र प्रेम, जो कम से कम राजनीति या राजनीतिक संस्थाओं, पार्टियों में तो संभव नहीं ही है।
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नवनीत गुर्जर का कॉलम: संघ प्रमुख के बयान को न विपक्ष समझ पाया, न ही पक्ष के प्रवक्ता लोग!