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- Shekhar Gupta’s Column What Is The Meaning Of BJP’s Attack On The ‘deep State’
शेखर गुप्ता, एडिटर-इन-चीफ, ‘द प्रिन्ट’
हमारी राजनीतिक-रणनीति के इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना घट गई और हमने उस पर उतनी बहस नहीं की, जितनी करनी चाहिए थी। यह घटना ‘डीप स्टेट’ पर भाजपा ही नहीं बल्कि अमेरिकी विदेश विभाग की ओर से भी हमले के रूप में घटी। सरकारी नीति को प्रभावित करने वाले अपरिभाषित, भयानक और रहस्यमय राष्ट्रस्तरीय गुप्त नेटवर्क को ‘डीप स्टेट’ कहा जाता है।
भाजपा के एक्स हैंडल ने अमेरिकी ‘डीप स्टेट’ पर हमला करते हुए 16 भागों वाला ‘थ्रेड’ पोस्ट किया था, क्योंकि उसने भारत और मोदी सरकार के खिलाफ जंग छेड़ दी थी। इस तरह के हमले पर आपकी सामान्य प्रतिक्रिया यह हो सकती थी कि ‘कोई बात नहीं, अब ट्रम्प राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं और वे भी ‘डीप स्टेट’ पर हमला करते हैं। भाजपा विजेता का साथ देती दिखना चाहती है।’ लेकिन फर्क यह है कि भाजपा के पोस्ट में अमेरिकी विदेश विभाग पर यह आरोप भी लगाया गया है कि वह इस षड्यंत्रकारी नेटवर्क की अगुआई कर रहा है।
पोस्ट में कहा गया था कि ‘इस एजेंडा के पीछे हमेशा अमेरिकी विदेश विभाग का हाथ रहा है… ‘डीप स्टेट’ का मकसद भारत में अस्थिरता फैलाना है। फ्रांसीसी खोजी मीडिया ग्रुप ‘मीडियापार्ट’ ने उजागर कर दिया है कि ‘ओसीसीआरपी’ (ऑर्गेनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट) को अमेरिकी विदेश विभाग के ‘यूएस-एड’ से पैसे मिलते हैं… वास्तव में, ‘ओसीसीआरपी’ की 50% फंडिंग अमेरिकी विदेश विभाग से ही आती है।
पोस्ट में पेगासस विवाद, अदाणी समूह के बारे में कई खुलासों आदि का खास तौर से जिक्र किया गया है और ‘डीप स्टेट’ की जॉर्ज सोरोस सरीखी हस्तियों का भी उल्लेख किया गया है। यह बड़ी बात यह है कि भाजपा ने अमेरिकी विदेश विभाग पर सीधा हमला किया।
याद रहे कि ‘मीडियापार्ट’ वह धुर वामपंथी फ्रांसीसी मंच है, जिसने भारत के राफेल सौदे की खोजी रिपोर्टिंग की थी और कांग्रेस पार्टी तथा मोदी-आलोचकों को उन पर हमला करने का मसाला मुहैया कराया था। भाजपा अब तक तो इसे भारत और मोदी सरकार को बदनाम करने की किसी फ्रांसीसी वामपंथी चौकड़ी की चाल मानती रही होगी।
लेकिन अब उसने अमेरिका जैसे विश्वसनीय सहयोगी को निशाना बनाया है। ‘मीडियापार्ट’ का खुलासा यह बताता है कि अमेरिकी विदेश विभाग न केवल दुनियाभर में खोजी पत्रकारिता को पैसे दे रहा है (अघोषित रूप से) बल्कि प्रमुख पदों पर नियुक्तियों और मुद्दों पर वीटो भी लगा रहा है।
अगर किसी राजनीतिक दल को लगता है कि अमेरिकी सरकार के फंड से चलने वाली किसी गतिविधि के कारण उसकी सरकार को नुकसान पहुंच रहा है तो उस पर सवाल उठाना उसका अधिकार है। वैसे भारत की किसी सत्ताधारी पार्टी ने ‘विदेशी हाथ’ या खासकर अमेरिका पर कोई पहली बार हमला नहीं किया है।
इंदिरा गांधी के दौर में कांग्रेस अक्सर यह करती रहती थी। उस दौर में विपक्षी दलों को ‘सीआईए का एजेंट’ घोषित कर दिया जाता था। स्वतंत्र पार्टी के पीलू मोदी तो एक दिन ‘मैं सीआईए एजेंट हूं’ का बिल्ला लगाकर सदन में पहुंच गए थे। आगे चलकर राजीव गांधी और पीवी नरसिंहराव भी जब दबाव में होते थे तो अमेरिका पर हमला करने लगते थे।
राजीव ने तो ‘नानी याद करा देंगे’ तक की चेतावनी दे डाली थी। नरसिंहराव ने भी संसद में बहस के दौरान कुछ इसी तरह का बयान दे दिया था। बाद में विदेश मंत्रालय ने अमेरिकी दूतावास को सफाई दी थी कि ऐसा जबान फिसलने के कारण हुआ। लेकिन अमेरिकी राजदूत विलियम क्लार्क जूनियर ने हम कुछ संपादकों के साथ बातचीत में गुस्से में कहा था कि ‘क्या राव की जबान 15 मिनट तक फिसलती ही रही थी?’
बहरहाल, वो कुछ अलग ही दौर था। वह भारत का अमेरिका विरोधी शीतयुद्ध था। आज हम अलग युग में हैं, जब भारत के लगातार तीन प्रधानमंत्री और अमेरिका के पांच राष्ट्रपति दोनों देशों की दोस्ती को 21वीं सदी का सबसे महत्वपूर्ण द्विपक्षीय संबंध बता चुके हैं।
भारत और अमेरिका खुद को अगर मित्र-राष्ट्र नहीं कहते तो रणनीतिक सहयोगी तो कहते ही हैं। मोदी 2023 में जब राजकीय दौरे पर वाशिंगटन गए थे तब उन्होंने कहा था, हमने जो महत्वपूर्ण फैसले किए हैं उन्होंने हमारी विस्तृत एवं वैश्विक रणनीतिक साझीदारी में नया अध्याय जोड़ दिया है।
उधर राष्ट्रपति बाइडेन ने इसे दुनिया की सबसे अहम साझेदारियों में शुमार बताया था। दोनों देशों के 6,500 शब्दों वाले संयुक्त बयान में यह तक कहा गया था कि महासागरों से लेकर आसमान तक मानवीय उपक्रम का कोई कोना हम दो महान देशों की इस साझेदारी से अछूता नहीं बचा है।
भाजपा आज अमेरिकी विदेश विभाग पर जो हमला कर रही है, उसे उपरोक्त संदर्भ में ही देखा जाना चाहिए। वैसे दोनों पक्ष उच्चस्तरीय कूटनीति के तहत यह जरूर कह रहे हैं कि उनके रिश्ते में कोई समस्या नहीं पैदा हुई है। इसलिए सवाल यह है कि एक-दूसरे को बार-बार सबसे अहम रणनीतिक पार्टनर बताने वाली दो महाशक्तियां इस विरोधाभास को किस तरह पचा रही हैं?
अब कांग्रेस ने भी इसमें दखल देते हुए कहा है कि अदाणी को बचाने के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीतिक संबंध को खराब किया जा रहा है। यह भी इस सीजन का एक विरोधाभास ही है, क्योंकि ये डॉ. मनमोहन सिंह ही थे, जिन्हें अमेरिका के साथ ऐतिहासिक परमाणु समझौता करने के लिए अपनी ही पार्टी के पारंपरिक अमेरिका-विरोध से निबटना पड़ा था।
बाइडेन का विदा-वेला में… बाइडेन सरकार के आखिरी चंद महीनों में भारत और अमेरिका का रिश्ता दबाव में फंस गया। भाजपा ‘डीप स्टेट’ पर हमला करके जैसे को तैसा जवाब ते रही है। क्या ट्रम्प के गद्दीनशीं होने का इंतजार किया जा रहा है? क्योंकि ट्रम्प भी ‘डीप स्टेट’ पर लगातार हमला करते है। (ये लेखक के अपने विचार हैं)
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शेखर गुप्ता का कॉलम: ‘डीप स्टेट’ पर भाजपा के हमले के मायने