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सिरसा के पूर्व सैनिक ओमप्रकाश जाखड़।
सिरसा। वर्ष 1971 में हुए भारत-पाकिस्तान के युद्ध में हजारों सैनिकों ने अपनी जान पर खेलकर देश को जीत दिलाई थी। सीमित संसाधनों के बावजूद पराक्रम, शौर्य और राष्ट्रभक्ति के दम पर जवानों ने पाकिस्तानी फौज को आत्मसमर्पण करने पर मजबूर किया था, जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश अस्तित्व में आया था। इस जंग में हिस्सा लेने वाले पूर्व सैनिकों के जेहन में शौर्य और पराक्रम की वे घटनाएं अब भी जीवंत हैं।
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सिरसा शहर में शहीद भगत सिंह कॉलोनी निवासी पूर्व सैनिक 75 वर्षीय ओमप्रकाश जाखड़ ने बताया कि वह भारत- पाकिस्तान के वर्ष 1971 के युद्ध में जाट रेजिमेंट में हवलदार के पद पर तैनात थे। उन्होंने बताया कि हमने युद्ध पराक्रम के बल पर जीते थे। हथियारों के साथ हमने पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर किया था। हमारी सेना ने कोमिला हवाई अड्डा पर विजय पाई थी, जो पाकिस्तान सेना का हवाई अड्डा का हुआ करता था। यहां भारतीय सेना को देखकर पाक सेना के जवान हवाई अड्डे को छोड़ कर भाग गए थे। इसके बाद भारतीय जाट रेजिमेंट बटालियन ने उस पर कब्जा कर लिया था। हमारे जनरल ने आदेश दिया कि पाकिस्तान की सेना के वैसे किसी भी जवान को मारना नहीं है जो अपना हथियार डाल दे। पाकिस्तानियों को भारतीय सेना ने चाराे ओर से घेर लिया था और उनको युद्ध बंदी बना लिया था। उस समय पाकिस्तान सेना के जनरल नियाजी ने सरेंडर करने के बाद दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए थे। दस्तावेज में लिखा था- हम पाकिस्तानी सेना के 93,000 जवान सरेंडर कर रहे हैं और भारतीय सेना के आगे हथियार डाल रहे हैं। इसके बाद बांग्लादेश देश का गठन हुआ था।
पराक्रम की निशानियों की बेकद्री कर रहा बांग्लादेश, इस पर संज्ञान लेना जरूरी
पूर्व सैनिक ओमप्रकाश जाखड़ ने बताया कि अगर आज के मौजूदा हालातों की बात करें तो बांग्लादेश में हालात बहुत खराब है। वहां हिंदुओं पर अत्याचार हो रहा है। सेना के पराक्रम से जुड़ीं निशानियों की भी बेकद्री हो रही है। इस पर भारतीय सेना और भारत सरकार को संज्ञान लेना चाहिए।
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विजय दिवस : भारतीय सेना को देख हवाई अड्डा छोड़कर भाग रहे थे पाकिस्तानी सैनिक, हमने घेरकर समर्पण कराया