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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
वह हमेशा से चाहता था कि उसके पहले ऑफिस की कुर्सी पर सबसे पहले उसकी मां बैठें। वह उन्हें दिखाना और कहना चाहता था कि देखो मां, तुम्हारा बेटा यहां तक पहुंच गया। ताकि उन्हें गर्व हो कि उनकी कड़ी मेहनत का अब फल मिला है।
ऐसा इसलिए क्योंकि अपने बेटे को यहां तक पहुंचाने में उन्होंने पूरी जिंदगी संघर्ष किया है। उनकी तरह और भी कई मांएं हो सकती हैं। किसी और के घर बर्तन मांजते हुए उनके हाथों में छाले पड़ गए होंगे, दूसरों के कपड़े सिलते हुए हाथ में सैकड़ों बार सुई चुभी होगी।
लेकिन उन्होंने अपना दर्द कभी जाहिर नहीं किया क्योंकि उनका मानना था कि उनका प्यारा और बहादुर बेटा ही बुढ़ापे में उनका ख्याल रखेगा। उनके पिता भी गैर-जिम्मेदार नहीं थे, जो कुछ वो कर सकते थे, उन्होंने किया। मंडी में पीठ पर बोझा लादे दिनभर मेहनत करते, फिर भी बमुश्किल 100 रु. या उससे थोड़ा ही ज्यादा कमा पाते, जिससे सिर्फ आधा पेट ही भर पाता।
ऐसे परिवारों के लिए जिंदगी गुजर-बसर कर पाना सबसे बड़ी चुनौती होती है। ऐसे ईमानदार और संघर्ष करते परिवारों को ईश्वर हमेशा ऐसे बच्चों से नवाजता है, जो बाद में सितारे बनकर चमकते हैं। वे अपनी आंखों से अपने माता-पिता का संघर्ष देखते हैं। बच्चे अपनी मां के दरदरे हाथों को छूकर उनका अहसास करते हैं। उन्हें दिखता है कि लगातार बोझ ढोते-ढोते पिता की कूबड़ निकल रही है।
मैं न केवल ऐसे कई परिवारों को जानता हूं, बल्कि उन बेटों को भी करीब से जानता हूं जो हर रोज भगवान से प्रार्थना करते हैं कि मैं जल्दी से बड़ा हो जाऊं और माता-पिता की देखभाल कर सकूं। यहां तक कि जब ऐसे माता-पिता सबकुछ बच्चों पर लुटा देते हैं और यह पक्का करते हैं कि बच्चों को सबसे अच्छी शिक्षा मिले, तब ऐसे सितारे बाकियों की तुलना में ज्यादा तेजी से परिपक्व होते हैं।
लेकिन कुछ बच्चे अपनी जिंदगी के पहले पड़ाव पर पहुंचते हैं- अपनी पहली नौकरी, पहली डिग्री…ऐसी सफलता, जिसे देखकर पूरे परिवार को गर्व की अनुभूति हो, तब उस सफलता, उस उत्सव और गर्व के उन पलों का साक्षी बनने के लिए माता-पिता नहीं होते।
तमिलनाडु में मदुरई के पास मेलुर गांव के रहने वाले 23 वर्षीय वेत्रियोसेल्वम कबीलन ऐसे ही एक शख्स हैं, जिनका दिल इस शनिवार को भारी था, जब देहरादून की इंडियन मिलिट्री एकेडमी से कमीशन होने वाले नए-नवेले अधिकारियों में से लेफ्टिनेंट वेत्रियोसेल्वम एक थे।
वह स्थानीय सरकारी स्कूल में पढ़े, अन्ना यूनिवर्सिटी से सिवल इंजीनियरिंग में डिग्री ली और फिर सेना में आवेदन किया, इस बीच कड़ी मेहनत करते हुए परिवार की भी मदद करते रहे और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल के बचाव दल में काम करते हुए चेन्नई और कन्याकुमारी में आई बाढ़ में तकरीबन 200 लोगों की जान बचाई।
शनिवार को उनके पिता व्हीलचेयर पर बैठे हुए थे, वर्षों से दिहाड़ी मजदूरी करते-करते थक चुके उनके हाथ गोद में थे और शरीर थोड़ा झुका हुआ था, क्योंकि तीन महीने पहले हद से ज्यादा वजन उठाने के कारण उन्हें स्ट्रोक आया और उनका शरीर थोड़ा लकवाग्रस्त हो गया था। उस व्हीलचेयर के बाजू में कबीलन की दिवंगत मां पनमयीम्मल की फ्रेम में जड़ी हुई तस्वीर थी, जिनकी तीन साल पहले कैंसर और कोविड-19 से मौत हो गई थी।
शनिवार को पासिंग आउट परेड थी। सबके माता-पिता वहां मौजूद थे। एक-दूसरे को बधाई दे रहे थे। पर कबीलन को अपनी मां की कमी खल रही थी। वह अपनी मां को एक खूबसूरत हरे लिबास में देखना चाहता था। वह चाहता था कि उसकी मां उसके सिर पर वह कैप पहनाएं और उसे गले लगाएं।
वह अपनी मां से कहना चाहता था कि, मां, मैं न सिर्फ तुम्हें सारी बुरी शक्तियों से बचाऊंगा बल्कि भारत मां को भी उसके दुश्मनों और बुरी नजरों से बचाऊंगा। वह अपने रूमाल से उनके आंसू पोंछना चाहता था। उसने वास्तव में मां की फ्रेम जड़ी तस्वीर से आंसू पोंछे और ऐसा करते समय उसकी आंखें भी नम हो गईं।
फंडा यह है कि याद रखें, सितारे हमेशा घुप्प काली-घनी रात में चमकते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि उन्हें अपनी सफलता अपनों को दिखानी है, जो ऊपर अंधेरे आकाश के पीछे खामोशी से मुस्करा रहे हैं।
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एन. रघुरामन का कॉलम: सितारे अंधेरे में ज्यादा चमकते हैं