[ad_1]
{“_id”:”675f3aa57cf7aa882c0f0087″,”slug”:”in-shrimad-bhagwat-katha-the-friendship-of-lord-shri-krishna-and-sudama-was-described-as-inspirational-kurukshetra-news-c-45-1-knl1024-128485-2024-12-16″,”type”:”story”,”status”:”publish”,”title_hn”:”Kurukshetra News: श्रीमद भागवत कथा में भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की दोस्ती को बताया प्रेरणादायी”,”category”:{“title”:”City & states”,”title_hn”:”शहर और राज्य”,”slug”:”city-and-states”}}
पिपली। कथावाचक अनिल शास्त्री श्रद्धालुओं को भागवत कथा सुनाते हुए। संवाद
संवाद न्यूज एजेंसी
कुरुक्षेत्र। अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव के उपलक्ष्य में श्री गो गीता गायत्री सत्संग सेवा समिति के सहयोग में डीएवी स्कूल सेक्टर-तीन के नजदीक भागवत कथा का आयोजन किया गया, जिसका समापन महोत्सव के साथ ही हुआ। कथा वाचक अनिल शास्त्री ने भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की दोस्ती का वर्णन करते हुए उनकी दोस्ती को प्रेरणादायी बताया। कथा वाचक ने उपस्थित श्रोताओं को बताया कि उज्जैन (अवंतिका) में स्थित ऋषि सांदीपनि के आश्रम में बचपन में भगवान श्रीकृष्ण और बलराम पढ़ते थे, वहां उनके कई मित्रों में से एक सुदामा भी थे। सुदामा श्रीकृष्ण के खास मित्र थे। वे एक गरीब ब्राह्मण के पुत्र थे। सुदामा और श्रीकृष्ण आश्रम से भिक्षा मांगने नगर में जाते थे।
आश्रम में आकर भिक्षा गुरु मां के चरणों में रखने के बाद ही भोजन करते थे। परंतु सुदामा को बहुत भूख लगती थी तो वे चुपके से कई बार रास्ते में ही आधा भोजन चट कर जाते थे। एक बार गुरु मां ने सुदामा को चने देकर कहा कि इसमें से आधे चने श्रीकृष्ण को भी दे देना और तुम दोनों जाकर जंगल से लकड़ी ले लाओ। उसके बाद दोनों जंगल में लकड़ी लेने चले गए, वहां बारिश होने लगी और तभी दोनों एक शेर को देखकर कर वृक्ष पर चढ़ जाते हैं। ऊपर सुदामा और नीचे श्रीकृष्ण। फिर सुदामा अपने पल्लू से चने निकालकर चने खाने लगता है।
चने खाने की आवाज सुनकर भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, अरे ये कट-कट की आवाज कैसी आ रही है। कुछ खा रहे हो क्या, सुदामा कहता है नहीं, ये तो सर्दी के मारे मेरे दांत कट-कटा रहे हैं। श्रीकृष्ण कहते हैं अच्छा बहुत सर्दी लग रही है क्या। उसके बाद सुदामा कहता है हां, यह सुनकर श्रीकृष्ण कहते हैं कि मुझे भी बहुत सर्दी लग रही है। सुना है कि कुछ खाने से शरीर में गर्मी आ जाती है तो लाओ वो चने जो गुरुमाता ने हमें दिए थे। दोनों बांटकर खा लेते हैं।
सुदामा कहता है चने कहां हैं, वो तो पेड़ पर चढ़ते समय ही मेरे पल्लू से नीचे गिर गए थे। यह सुनकर श्रीकृष्ण समझ जाते हैं और कहते हैं ओह, यह तो बहुत बुरा हुआ। यह सुनकर नीचे की डाल पर बैठे भगवान श्रीकृष्ण अपने चमत्कार से हाथों में चने ले जाते हैं और ऊपर चढ़कर सुदामा को देकर कहते हैं कि पेड़ पर फल तो नहीं लेकिन मेरे पास ये चने हैं। सुदामा कहते हैं यह तुम्हारे पास कहां से आए, तब कृष्ण कहते हैं कि वह मुझे भूख कम लगती है ना। जब पिछली बार गुरुमाता ने जो चने दिए थे वह अब तक मेरी अंटी में बंधे हुए थे। ले लो अब जल्दी से खालो।
यह सुनकर सुदामा कहता है नहीं नहीं, मैं इसे नहीं ले सकता। तब श्रीकृष्ण पूछते हैं क्यों नहीं ले सकते। सुदामा रोते हुए कहता है कि क्योंकि मैं इसका अधिकारी नहीं हूं और मैं तुम्हारी मित्रता का भी अधिकारी नहीं हूं। मैंने तुम्हें धोखा दिया है कृष्ण।
मुझे क्षमा कर दो। कृष्ण कहते हैं अरे, जिसे मित्र कहते हो उससे क्षमा मांगकर उसे लज्जित न करो मित्र। इसी प्रकार एक बार श्रीकृष्ण सुदामा को वचन देते हैं कि मित्र जब भी तुम संकट में खुद को पाए तो मुझे याद करना मैं अपनी मित्रता निभाऊंगा। इस मौके पर मुख्य यजमान पंडित राजेश शर्मा, उर्मिला शर्मा, माम चंद, बेटी अंजना, डॉ. जीत सिंह, डॉ. राम अवतार सिंह सहित अन्य सदस्य मौजूद रहे।
[ad_2]
Kurukshetra News: श्रीमद भागवत कथा में भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की दोस्ती को बताया प्रेरणादायी