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Ambala News: कोस मीनारों को देखभाल की दरकार Latest Haryana News

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सतनाम सिंह

अंबाला सिटी। जिले में बनी चार ऐतिहासिक कोस मीनार दूरी बताने में मार्गदर्शक थी। यह कोस मीनार एक तय दूरी पर हुई बनाई गई थी। इनका इतिहास करीब 400 वर्ष पुराना बताया गया है। इनमें से केवल एक कोस मीनार ही संरक्षित स्मारक घोषित है और बाकी तीन कोस मीनार असंरक्षित हैं। यह कोस मीनार अंबाला के कोट कच्छवा खुर्द, मच्छौंडा से उगाड़ा रोड, कांवला से मटेहड़ी जट्टा रोड और शहर के कपड़ा मार्केट में स्थित है।

यह है मीनारों की मौजूदा स्थिति

कोट कच्छवा खुर्द गांव में पहली कोस मीनार के अवशेष मौजूद हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की 1914 में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार यह मीनार ठीक हालत में खड़ी थी और इसे मरम्मत की आवश्यकता थी लेकिन आज यह पूरी तरह गिर चुकी है और इसके केवल अवशेष ही बचे हैं। दूसरी कोस मीनार मच्छौंडा गांव से उगाड़ा गांव जाने वाले मार्ग पर स्थित है।

यह कोस मीनार भी असरंक्षित है और इसका निचला हिस्सा बुरी तरह से क्षतिग्रस्त है। तीसरी मीनार के अवशेष कांवला गांव से मटहेड़ी जट्टां गांव जाने वाले मार्ग पर मौजूद है। यह मीनार भी पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है। चौथी मीनार अंबाला शहर के कपड़ा मार्केट में रेलवे स्टेशन के नजदीक स्थित है और 1918 से संरक्षित स्मारक घोषित है। यह पूरी तरह सुरक्षित है लेकिन विभाग द्वारा इसके मौलिक स्वरूप को ही बदल दिया है। मरम्मत के दौरान अष्ट भुजाकार हिस्से को पूरी तरह गोलाकार बना दिया गया है।

कोस मीनार का इतिहास करीब 400 वर्ष पुराना

अंबाला की कोस मीनारें आगरा से लाहौर मार्ग पर स्थित थी। मध्यकालीन मार्ग आगरा से लाहौर जाते समय आज जिले के कोट कच्छवा खुर्द गांव में पहली कोस मीनार के अवशेष मौजूद हैं। डीएवी कॉलेज अंबाला शहर से इतिहास विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. चांद सिंह ने बताया कि इन कोस मीनार का इतिहास करीब 400 वर्ष पुराना है। यह कोस मीनार दूरी बताने के लिए मार्गदर्शन का काम करती थी। यह कोस मीनार करीब एक कोस (4.3 किलोमीटर) की दूरी पर बनाई गई थी।

उन्होंने बताया कि कोस मीनार एक मध्यकालीन स्मारक है, जोकि छोटी ईंटों (लखोरी) से बना एक ठोस स्तंभ होता है। यह नीचे से अष्ट भुजाकार व ऊपर से गोलाकार होता है। अकबर से पूर्व कोस मीनारों के निर्माण में निश्चित दूरी व स्थापत्य में एकरूपता का अभाव था। अकबर व जहांगीर ने कोस मीनारों के निर्माण से संबंधित निर्देश दिए। मध्यकाल में इनके निर्माण की पुष्टि कुछ समकालीन विदेशी यात्रियों द्वारा भी की गई है।

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