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- Bhaskar Opinion | Jammu Kashmir Haryana 2024 Assembly Election Voting And Result
बारिश का मौसम जा रहा है। चुनावी मौसम छा रहा है। पहले बारिश ने कोहराम मचाया। अब चुनावी मैदान में हल्ला मचा है। आरोपों-प्रत्यारोपों की झड़ी लगी हुई है। कहीं मेघ मल्हार चल रहा है। कहीं मियाँ का मल्हार।
जम्मू-कश्मीर में मतदान के तीनों दौर पूरे हो चुके हैं। अब वहाँ केवल नतीजों का इंतज़ार है। वैसे यहाँ कोई भी हारे या जीते कोई और किसी की भी सरकार बने, लेकिन मतदान प्रतिशत का बढ़ना या उसका न घटना लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत रहा।
बहरहाल, कश्मीर में मतदान के सारे चरण पूरे हो जाने के बाद अब सारे नेता और उनका तमाम फ़ोकस कुछ दिन हरियाणा पर रहेगा। हालाँकि, यहाँ भी दो ही दिन का समय है। तीन अक्टूबर को हरियाणा में भी प्रचार थम जाने वाला है क्योंकि पाँच अक्टूबर को यहाँ वोटिंग है।
इस बीच प्रमुख राजनीतिक दलों ने महाराष्ट्र और झारखंड में चुनावी चौसर बिठाना शुरू कर दिया है। कश्मीर और हरियाणा के बाद सबसे बड़ा और ज़्यादा रोचक मुक़ाबला महाराष्ट्र में होने वाला है।
महाराष्ट्र के महायुति गठबंधन में भाजपा, शिंदे गुट की शिवसेना और अजित गुट की NCP शामिल हैं।
हालाँकि,यहाँ इस बार के विधानसभा चुनावों के नतीजे लोकसभा चुनाव से कुछ भिन्न हो सकते हैं। मराठा आंदोलन वाले जरांगे पाटील फ़िलहाल ठण्डे पड़ गए हैं। वे किस पार्टी को कितना नुक़सान पहुँचा पाएंगे, फ़िलहाल कहा नहीं जा सकता।
वैसे महा विकास अघाड़ी और महायुति दोनों ही तरफ़ से एक-एक धड़े का छिपा हुआ समर्थन जरांगे पाटील को मिलता रहा है। यही वजह है कि लोकसभा चुनाव के बाद इस बार जरांगे का प्रभाव कुछ हद तक कम होता दिखाई दे रहा है।
फिर भी मराठवाडा में ज़रूर कुछ प्रभाव दिखाई देगा। उधर झारखंड में चंपई सोरेन को भाजपा ने अपने पाले में लाकर ठहरे हुए पानी में हलचल पैदा करने की कोशिश ज़रूर की है, लेकिन यह कोशिश कितनी कामयाब होगी, कहा नहीं जा सकता।
महा विकास अघाड़ी में उद्धव गुट की शिवसेना, शरद गुट की NCP और कांग्रेस का गठबंधन है।
हलचल से याद आया- हाल में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने एक बयान देकर भारी हलचल मचा दी है। मंच पर उन्हें अचानक चक्कर आ गया, इसके तुरंत बाद ही वे बोले- 83 बरस का हो चुका हूँ, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हटाए बिना मरने वाला नहीं हूं।
हालाँकि, प्रधानमंत्री ने खरगे के हाल जाने और उनके स्वास्थ्य के बारे में भी पूछा भी, लेकिन भाजपा ने कहा- देखिए कांग्रेस और उसके नेता प्रधानमंत्री मोदी से किस हद तक नफ़रत करते हैं। पानी पी-पीकर उन्हें कोसने में जुटे रहते हैं।
बहरहाल, यह साल अपने उत्तरार्ध में पूरी तरह चुनावी हलचल से पूर्ण रहेगा। जम्मू-कश्मीर और हरियाणा के बाद महाराष्ट्र और झारखंड में चुनावी घमासान होने वाला है। हरियाणा में जो भी पक्ष जीतेगा, महाराष्ट्र में उसे नई ऊर्जा मिलेगी। आख़िर राजनीति में पिछली सफलताएँ ही अक्सर अगले मैदान में कारगर साबित होती रही हैं।
29 सितंबर को जम्मू-कश्मीर के कठुआ के जसरोटा में भाषण देते समय खड़गे की तबीयत खराब हो गई।
खैर, चुनावी वादे जो भी और जैसे भी हों, वास्तविक गरीब की यहाँ किसी को कोई चिंता नहीं है। उस आम गरीब के हाल किसी को पता नहीं है। कोई पता करना भी नहीं चाहता। वह निरीह घंटों रात में बैठे हुए, अगली सुबह और उसके बाद अगली रात का इंतज़ार करता रहता है।
उसके घर की सूनी-सी दीवार में एक ख़ाली खिड़की ही अब उसकी पूँजी है। महीनों, सालों से वह खिड़की उसे धोखा देती आई है। रौशनी अंदर आती है और अपने आप वापस चली जाती है। वो कोशिश करता रहता है- उस रोशनी को अपनी छाती में भर लेने की। लेकिन कोशिश सफल नहीं होती।
रौशनी कहीं भी ठहर नहीं पाती। आख़िर लोकतंत्रमें चुनाव के सिवाय और कोई दूसरा रास्ता भी कहाँ है रौशनी को हासिल करने का! लेकिन सच यह भी है कि पौ फटती है तो केवल किसी चुनाव के कारण नहीं, वह तो उस गरीब की सिसकियों से फटती है जो धीरे-धीरे सारी रात अंधेरे को कुतरती रहती है।
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