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पीजीआई में चल रहे करोड़ों के घोटाले मामले में सीबीआई की एफआईआर दर्ज।
चंडीगढ़ में देश के प्रतिष्ठित स्वास्थ्य संस्थान पीजीआई (पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च) में गरीब और जरूरतमंद मरीजों को मिलने वाली सरकारी ग्रांट में 1.14 करोड़ रुपए के बड़े घोटाले का खुलासा हुआ है। इस मामले में सीबीआई ने पीजीआ
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सीबीआई की जांच में सामने आया है कि यह पूरा घोटाला पीजीआई की गोल मार्केट में स्थित एक फोटोकॉपी की दुकान से ऑपरेट किया जा रहा था। दुकान के मालिक का पीजीआई की प्राइवेट ग्रांट सेल के कर्मचारियों से लगातार संपर्क था। इन्हीं के जरिए फर्जी बैंक खाते जुटाए गए, जिनमें मरीजों को मिलने वाली ग्रांट की रकम ट्रांसफर की जाती थी। साथ ही मरीजों के नाम पर मिलने वाली महंगी दवाएं अवैध रूप से बाजार में बेच दी जाती थीं।
मामले की गंभीरता को देखते हुए पीजीआई प्रशासन ने स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ एंड कम्युनिटी मेडिसन के प्रोफेसर व अध्यक्ष डॉ. अरुण अग्रवाल की अध्यक्षता में एक आंतरिक जांच समिति गठित की।
दुकान मालिक और पीजीआई कर्मी मिले शामिल
सीबीआई ने फोटोकॉपी दुकान के मालिक दुर्लभ कुमार और उसके पार्टनर साहिल सूद को भी आरोपी बनाया है। इनके अलावा जिन पीजीआई कर्मियों के खिलाफ केस दर्ज किया गया है, उनमें
- जूनियर एडमिनिस्ट्रेटिव असिस्टेंट (रिटायर्ड) धर्मचंद,
- मेडिकल रिकॉर्ड क्लर्क सुनील कुमार,
- लोअर डिवीजन क्लर्क प्रदीप सिंह,
- चेतन गुप्ता,
- हॉस्पिटल अटेंडेंट नेहा,
- और प्राइवेट ग्रांट सेल का कर्मचारी गगनप्रीत सिंह शामिल हैं।
पीजीआई चंडीगढ़।
प्राइवेट ग्रांट सेल में सामने आईं गंभीर गड़बडिय़ां
जांच के दौरान सीबीआई ने पीजीआई, संबंधित विभागों और विभिन्न बैंकों से रिकॉर्ड जुटाए। इनमें पीजीआई की प्राइवेट ग्रांट सेल में गंभीर वित्तीय अनियमितताएं पाई गईं। यह सेल स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष, राष्ट्रीय आरोग्य निधि, हंस कल्चर सोसाइटी सहित अन्य सरकारी व गैर-सरकारी संस्थाओं से मिलने वाली ग्रांट का प्रबंधन करती है। इसी सेल के जरिए गरीब मरीजों को आर्थिक मदद और दवाएं दी जाती हैं।
ऐसे उजागर हुआ घोटाला
घोटाले का खुलासा तब हुआ जब लाभार्थी मरीज कमलेश देवी (फाइल नंबर 18796) के पति ढाई लाख रुपए की स्वीकृत ग्रांट से दवा लेने प्राइवेट ग्रांट सेल पहुंचे। वहां उन्हें बताया गया कि फाइल नष्ट कर दी गई है और डिजिटल रिकॉर्ड भी डिलीट है। जांच में सामने आया कि 22,01,839 रुपए आरटीजीएस के जरिए निवास यादव नामक निजी व्यक्ति के खाते में ट्रांसफर कर दी गई थी, जिसका मरीज से कोई संबंध नहीं था।
इसके बाद पीजीआई प्रशासन ने अपने स्तर पर जांच करवाई, जिसमें और भी मामलों का खुलासा हुआ। एक अन्य मरीज अरविंद कुमार (फाइल नंबर 20404) को मिलने वाली राशि में से 90 हजार रुपए हॉस्पिटल अटेंडेंट नेहा के खाते में ट्रांसफर किए गए थे। निजी बैंक खातों में डलवा रहे पैसे
जांच समिति को 11 ऐसे मैडेट फॉर्म मिले, जिनमें दर्ज लोग न तो मरीज थे और न ही उनके रिश्तेदार। इन लोगों को गलत तरीके से मरीज का परिवारजन बताकर 19 लाख 759 रुपए उनके निजी बैंक खातों में ट्रांसफर कर दिए गए।
इतना ही नहीं, दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित पांच मरीजों के इलाज के लिए राष्ट्रीय आरोग्य निधि और अन्य संस्थाओं से मिले 61.75 लाख रुपए में से 38 लाख 946 रुपए बिना किसी डॉक्टर की पर्ची के सीधे दवा विक्रेताओं के खातों में भेज दिए गए। हैरानी की बात यह है कि इन पांच मरीजों में से दो की पहले ही मौत हो चुकी थी।
70 मामलों में गड़बडिय़ां, फाइलें गायब
2017 से अक्टूबर 2021 तक के रिकॉर्ड की जांच में 70 और मामलों में पैसों से जुड़ी गड़बड़ियां सामने आईं। इनमें 17 मामलों में दवा सप्लायरों के असली बिलों में छेड़छाड़ कर दो बार भुगतान लिया गया। वहीं 37 मरीजों की असली फाइलें रिकॉर्ड से पूरी तरह गायब पाई गईं।
दवा कंपनियों की भूमिका भी जांच के दायरे में
सीबीआई इस घोटाले से जुड़े अन्य लोगों की भी जांच कर रही है। साथ ही एचएलएल लाइफ केयर, आर. कुमार मेडिकोस, कुमार एंड कंपनी और मारुति मेडिकोस की भूमिका की भी पड़ताल की जा रही है, हालांकि अभी इन कंपनियों को आरोपी नहीं बनाया गया है।
आपसी मिलीभगत से किया गया घोटाला
सीबीआई के अनुसार आरोपी चेतन गुप्ता, सुनील कुमार, प्रदीप सिंह, गगनप्रीत सिंह, धर्मचंद और नेहा ने आपसी मिलीभगत से फर्जी क्लेम फाइलें प्रोसेस कीं। फर्जी लाभार्थियों के खातों में डाली गई रकम बाद में दुर्लभ कुमार, साहिल सूद और उनके रिश्तेदारों के खातों में ट्रांसफर कर दी जाती थी, जिसे आरोपी आपस में बांट लेते थे।
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चंडीगढ़ PGI में 1.14 करोड़ का घोटाला: CBI ने की 6 कर्मी समेत 8 पर FIR, फोटोकॉपी दुकान से मरीजों की ग्रांट में खेल – Chandigarh News

