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- Pt. Vijayshankar Mehta’s Column If You Want To Run The Horses Of Your Mind Properly, Then Tighten The Reins Of Your Mind.
पं. विजयशंकर मेहता
हमारे 99 प्रतिशत विचार बेकार के होते हैं। और वे केवल हमारी अशांति को व्यवस्थित कर रहे होते हैं। मिटाते नहीं है बढ़ाते हैं, लेकिन व्यवस्थित ढंग से। इन विचारों में अधिकांश समय दूसरे होते हैं। आते-जाते लोगों को निहारना। जो बीत गया, उन यादों को ताजा करना। भविष्य के प्रति भयभीत होते रहना।
ये काम ये सारे विचार करते हैं, जो व्यर्थ हैं और इनको लाने-ले जाने का काम श्वास के माध्यम से मन करता है। हमारा अच्छा-खासा हितकारी मस्तिष्क भी मन के द्वारा फेंके गए विचारों के गुच्छों से आहत हो जाता है। इसलिए दिमाग के घोड़ों को सही दौड़ाना हो तो इसके लिए मन की लगाम को जमकर कसना होगा। क्योंकि विचार एक आजीवन प्रक्रिया है। इसका शिक्षा से कोई लेना-देना नहीं है।
आप अशिक्षित हों या बहुत पढ़े-लिखे हों, यह सिलसिला तो जीवन भर चलेगा। इसलिए इस प्रक्रिया को, जो मृत्यु के साथ ही समाप्त होगी- सदैव प्रशिक्षित करते रहिए, तराशते रहिए और मन के प्रति अत्यधिक सावधान रहिए।
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पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: दिमाग के घोड़े सही दौड़ाना हों तो मन की लगाम कसें
